Friday 24 June 2016

Secret Himalayas 9 रहस्यमयी हिमालय 9

वह समाधि से जाग चूका था | योगी बाबा अभी भी ध्यानस्थ थे | नौजवान  सच्चिदानन्द का कोई पता नहीं था |
वह व्यक्ति अद्भुत खुमारी से भरा हुआ था | एक तृप्तिदायक अहसास उसके रोम रोम में मौजूद था | वह कभी तो  योगी अभेदानन्द के चेहरे को निहारता तो कभी उसका मन चकित सा उस  अहसास के बारे में सोचता |
तभी योगी बाबा की आवाज़ गूंजी उसके कानों में “ जाग गये |”
उसने कोई उतर नहीं दिया उसका जी  बोलने को नहीं कर रहा था | मौन में वह अद्भुत शान्ति मह्शूश कर रहा था |
फिर कुछ देर बाद उसने योगी बाबा से पुछा “ बाबा यह क्या था और इसके पहले ऐसा अहसास जीवन में कभी क्यों नहीं हुआ |”
“ तुम इस जीवन में कभी अपने भीतर उतरे हीं नहीं तो कैसे अहसास हो , मैं तो कारण मात्र हूँ जो कि माध्यम बन गया तुम्हें भीतर ले जाने को यधपि यह तुम्हारे हीं पूर्व जन्मों के संचित साधनाओं का फल है जो तुम इस अहसास को पा सके |” योगी बाबा ने कहा
“अपने भीतर उतरना ये कैसे होता है बाबा” उस व्यक्ति ने पूछा
“ अभी तुम जिस आनन्द में गोते खा रहे हो यह भीतर का आनन्द हीं है |” बाबा ने उतर दिया
“ देखो भौतिक जगत में तुम जीवित हो , तुम गति करते हो तुम्हारे भीतर संवेदनाएं उठती हैं , तुम सुख दुःख मह्शूश करते हो , तुम अपने जीवित होने का प्रमाण देते हो | कभी कोशिश की तुमने ये पता करने की कि ये सब कैसे संचालित होता है |” योगी बाबा ने कहा
“ नहीं किन्तु कभी कभी मेरे मन में ये प्रश्न अवश्य आते हैं |” उसने उतर दिया
“ तुम जीवित कैसे हो |” योगी बाबा ने उससे पूछा
“ भोजन , जल , वायु से |” उसने उतर दिया
“ वाह ! तब तो किसी मुर्दे के मुंह में भोजन , जल दे दिया  जाए और किसी युक्ति  से उसके अंदर हवा भरने लगा जाए तब तो वह जीवित हो जाएगा |” योगी अभेदानन्द ने मुस्कुराते हुए कहा |
उसे कोई उतर देते नहीं बना
योगी बाबा बोलने लगे
“देखो हमारा शरीर  जीवित हैं परमात्मा की शक्ति से आत्मा रूप में वही परमात्मा हमारे भीतर विराज कर हमें  जीवित रखे हुए है | और मन के माध्यम से भी वही संचालित करता है हमे | हमारा मन हमेशा बाहर की ओर दौड़ता है क्योंकि यह इसका स्वभाव है | हमारा मन वहीँ जाता है जहाँ हमारा अनुभव है | तुमने अपनी जिन्दगी में जो अनुभव नहीं किये या देखे हों  वहां यह मन कभी नहीं पहुँच पाता | हम बाहर के लोक से जुड़े हुए हैं अपनी पाँचों इन्द्रियों के माध्यम से | इन पाँचों इन्द्रियों की पांच  तन्मात्राएँ हैं जिसे यह मन बहुत कस के पकड़ता है |”
“ये पांच तन्मात्राएँ क्या हैं भगवन |” उसने बीच में हीं पूछा
“ आँख से सम्बन्धित  रूप , जिह्वा से सम्बन्धित  रस , घ्रानेंद्रिय ( नाक ) से सम्बन्धित  गंध , श्रोतेंद्रिय ( कान ) से सम्बन्धित  शब्द , और त्वचा से सम्बन्धित  स्पर्श कुल मिला कर जिन्दगी का यही अनुभव होता है रूप , रस , गंध , शब्द और स्पर्श | इन पाँचों तन्मात्राओं का सम्बन्ध पांच इन्द्रियों के अलावा पांच तत्वों से भी है | अनुभव और भी होते हैं जो इन्द्रिय से परे हैं जैसे जीवन में प्रेम | तो इन इन्द्रियों से तुम ईश्वर को नहीं पकड पाओगे अगर ईश्वर को पकड़ना है तो हृदय में उसके प्रति प्रेम पैदा हो तभी कुछ कुछ वह अनुभव में आता है |

मन की शक्ति अद्भुत है क्योंकि उसके पीछे परमात्मा की शक्ति है | भीतर उतरने के लिए इसी मन का सहारा लिया जाता है | देखो तुम्हारा मन इन्हीं पांच इन्द्रियों और  तन्मात्राओं के अनुभवगत तथ्यों में  तुम्हें   भटकाए हुए  रखता है  | तुम आँख बंद करते हो और तुम्हारा मन देखे हुए दृश्य उत्पन्न कर देता है | तुम समझ सकते हो मन की शक्ति | ठीक उसी युक्ति को भीतर उतरने में मदद ली जाती है तुम्हारा मन जब भीतर जाता है तब भीतर के दृश्यों को तुम्हारे सामने ले  कर आने  लगता है जिसे ध्यान का अनुभव कहते हैं | यह मन सम्पूर्ण शरीर के भीतर विचरण करता है और अंततः अपने स्त्रोत परमात्मा तक पहुँच जाता है | वहां पहुँचते हीं यह उसी में विलीन हो जाता है | यही है अपने भीतर उतरने या ध्यान  का विज्ञान |” योगी अभेदानन्द रहस्यों से पर्दा उठा रहे थे |
वह मन्त्र मुग्ध हो कर सुन रहा था |
“ पांच तन्मात्राओं का सम्बन्ध पांच तत्वों से कैसे है |” उसने पूछा
“ हमारा शरीर पञ्च तत्वों से बना हुआ है यथा पृथ्वी , अग्नि , वायु , जल और आकाश , पृथ्वी की तन्मात्रा गंध है इसके अंदर रूप, रस ,शब्द और स्पर्श भी मौजूद हैं | जल की तन्मात्रा रस है और  इसमें गंध अनुपस्थित है | अग्नि की तन्मात्रा रूप है और इसमें गंध और रस   अनुपस्थित है | वायु की तन्मात्रा स्पर्श है और इसमें रस ,रूप और गंध अनुपस्थित है | आकाश की तन्मात्रा शब्द है और इसमें शेष चारो अनुपस्थित हैं | आकाश से वायु , वायु से अग्नि , अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पति हुई है | इसी क्रम में उत्पति के कारण क्रमश : तन्मात्राओं का लोप या उपस्थिति अन्य तत्वों में है |
गूढ़ ज्ञान की वर्षा हो रही थी इसी बीच नवजवान साधक सच्चिदानन्द का प्रवेश गुफा में हुआ |


 जारी  ............

Secret Himalayas 8 रहस्यमयी हिमालय 8

योगी बाबा ने आँखें खोली और उस व्यक्ति से कहा “ भोजन कर लिया तुमने |”
“ जी भगवन |” उस व्यक्ति ने कहा
“ देखो तुम्हारा जो ये शरीर है न  ! कभी विचार किया तुमने ये किसलिए है |” योगी बाबा ने पूछा
“ जी कभी कभी ये विचार आता है मेरे मन  में कभी कभी ये भी सोचता हूँ कि मैं कौन हूँ  |” उस व्यक्ति ने कहा
“ यूँ हीं नहीं आता सबके मन में ऐसे विचार इसका सम्बन्ध पूर्व जन्म से है | तुम पूर्व जन्म में एक उच्च कोटि के साधक थे किन्तु महामाया की बिछाई जाल में तुम फंस गये और अपने को संभाल नहीं सके | तुम पथभ्रष्ट हो गये |” योगी बाबा ने कहा
“पूर्वजन्म ...”
“हाँ पूर्वजन्म ! पूर्वजन्म एक सत्य है समय आने पर मैं तुम्हे तुम्हारे पूर्वजन्म में भी ले जाऊँगा |” योगी बाबा ने कहा
बगल में बैठा हुआ नौजवान साधक सच्चिदानन्द बहुत हीं तल्लीनता से दोनों की बातें सुन रहा था |
“देखो ये शरीर जो है न परमात्मा का दिया हुआ अचूक वरदान है मनुष्यों को | किन्तु परमात्मा के द्वारा प्राप्त मिले इस वरदान के बावजूद भी मनुष्य न जाने परमात्मा से और क्या क्या अपेक्षाएं रखता है | शास्त्रों में एक बात कही गयी है ‘ यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे ’ अर्थात जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है | तुम्हें तुम्हारा ये शरीर इसलिए मिला हुआ है ताकि तुम भी इस शरीर को माध्यम बना कर परमात्मा हो जाओ और क्या कहूँ  | मनुष्य शरीर छोड़ कर किसी और शरीर में ये संभवाना नहीं |” योगी बाबा ने कहा |
“ किन्तु हे महात्मन मैं इस शरीर से उस परमात्मा को कैसे जानूँ ?” उस व्यक्ति ने पूछा
“ साधना , ध्यान , भगवत भक्ति के द्वारा आत्मतत्व परमात्मतत्व को जाना जा सकता है | इसके लिए गुरु की कृपा भी आवश्यक है |” ऐसा कह कर योगी बाबा अभेदानन्द ने अपने हाथ के  अंगूठे को उसके सर के चोटी पर थोडा स्पर्श करा दिया |

वह व्यक्ति ध्यान में चला गया |
ध्यानावस्था में उसे योगी बाबा की आवाज़ सुनाई दी |
“ तुम क्या देख रहे हो |” योगी बाबा ने पूछा
“ सुनहला और दिव्य प्रकाश भगवन |” उसने मन  हीं मन दोहराया |
“ अपना ध्यान और प्रगाढ़ करो |” योगी बाबा ने कहा
“ योगी बाबा आप !! मेरे शरीर में |” वह व्यक्ति अपने आज्ञा चक्र पर प्रकाश पुंज के अंदर योगी बाबा अभेदानन्द का चेहरा देख कर चौंक गया |
“योगी किसी के भी शरीर में प्रवेश कर सकते और उचित निर्देशन कर सकते हैं अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा चाहे वे शरीर में हों या न हों |” योगी बाबा ने कहा
“अच्छा अपनी दृष्टि और सूक्ष्म करो और ध्यान लगाओ क्या दिखाई देता है तुम्हें तुम्हारे शरीर में प्रकाश के अलावा |” योगी बाबा ने कहा |
वह व्यक्ति और गहरे ध्यानस्थ हो गया |और अपने शरीर की यात्रा करने लगा |
“ बाबा... बाबा ”ख़ुशी से चहक कर मन हीं मन बोल उठा | “ मुझे अपने शरीर में अनगिनत उर्जा के  चक्र नजर आ रहें हैं सर से पाँव तक |”
“ठीक है  अब  प्रमुख रूप से शक्तिशाली उर्जा के  कितने चक्र तुम्हें  दिखाई देते  हैं इसकी खोज करो |”
“ बाबा जी मुझ पर  अजीब सी मस्ती छा रही है मैं बता नहीं सकता | मैं धीरे धीरे किसी अनजान लोक में खोता जा रहा हूँ मेरे प्रभु | मेरी सारी चेतना सिमट कर सर के उपरी भाग पर चली जा रही है | योगी बाबबबबब.......|”
पूरी तरह बाबा को पुकार भी नहीं पाया अपनी चेतना में डूब गया था वह |
“सच्चिदानन्द यह समाधिस्थ हो चूका है लाओ इसे यहाँ लेटा दो |” योगी बाबा ने नौजवान साधक को संबोधित करते हुए कहा |

“जी गुरुवर |” कह कर उस व्यक्ति को सच्चिदानन्द ने बाबा के आसन पर बाबा के बगल में लिटा दिया | 
जारी .............

Friday 17 June 2016

Secret Himalayas रहस्यमयी हिमालय 7

शाम ने  रात्री से बाँहें छुड़ा ली थी वह आगे निकल चुकी थी | घना अँधेरा अपने पैर बढ़ा चूका था | रात्री आसमान में उगे तारों का स्वागत कर रही थी | चाँद भी पूर्वी  क्षितिज पर बादलों में  लुका छिपी कर रहा  था  | मद्धिम चांदनी बिखर रही थी | वह सप्तमी का चाँद था | गंगा  की लहरों पर   चाँद का प्रकाश चांदी के आभा जैसा टिमटिमा रहा था | पतितपावनी ममतामयी  माँ गंगा  जो युगों युगों से पूर्वजों को तारती चली आ रही है , कलकल करती हुई मैदानों में अपना वात्सल्य बिखेरने को दौड़ पड़ी थी |
योगी बाबा स्वामी अभेदानन्द अभी भी ध्यानस्थ थे | वे दोनों बाबा की गुफा में पहुंचे और कम्बल के बिछाए आसन पर निचे  बैठ गये |
योगी  बाबा ने आँखें खोली मंद मंद मुस्कान उनके चेहरे को और भी कांतिमय बना रहा था | गुफा में कोई प्रकाश का स्त्रोत नहीं था फिर भी जीरो वाट के प्रकाशित  बल्ब के जितना रजतमयी श्वेत प्रकाश गुफा में बिखरा हुआ था | ऐसा प्रतित हो रहा था कि ये प्रकाश योगी बाबा के शरीर से हीं निकल रहा हो | मंद मंद मीठी और दिव्य सुगंध मन को शीतलता प्रदान कर रहें थे |
तभी बाहर से  देवी सदृश एक  नवयुवती एक  हाथ में भोजन का थाल तथा दुसरे में फलों का एक डलिया ले कर गुफा में प्रवेश की | उसने महायोगी अभेदानन्द के चरणों में प्रणाम अर्पित कर सारी सामग्री उनके निकट रख दिया | और पुन : बाहर निकल गयी |
“ भूख लग गयी होगी |” योगी बाबा ने उस व्यक्ति से पूछा |
वह व्यक्ति कुछ बोला नहीं किन्तु उसका मौन स्वीकार का समर्थन कर था |
“ अच्छा जाओ गंगा में हाथ मुंह धो लो |” योगी बाबा का आदेश हुआ |
दोनों गुफा से निकल पड़े गंगा में हाथ मुंह धोया और वापस गुफा में आ कर अपने स्थान पर विराजित हुए  |
“ लो थाली पकड़ो भोजन कर लो |” बाबा ने उस व्यक्ति को थाली देते हुए कहा |
“सच्चिदान्द तुम भी कुछ भोजन कर लो |” योगी बाबा ने कहा
सच्चिदानन्द ने फलों की डलिया से एक दो फल निकाले और खाने लगें |
उस व्यक्ति ने भी  बाबा से थाली ले ली थी और भोजन की तैयारी करने लगा | थाली में दो कचौरी , दो तीन सब्जी , दो मिठाई , थोडा सा दही और शक्कर तथा एक चमचमाती हुई चमच थी |
“किन्तु बाबा जल तो है हीं नहीं भोजन के साथ आवश्यकता पड़ी तो बीच बीच में |” उस व्यक्ति ने उत्सुकतावश बाबा से पूछा |
योगी बाबा ने कहा “ भोजन के साथ साथ जल नहीं ग्रहण करना चाहिए यह यौगिक और आयुर्वेदिक  निर्देश है इससे जठराग्नि कमजोर होती है और पाचन सही नहीं होता | भोजन के  आधा एक घंटे बाद जल ग्रहण करना चाहिए |” ( यह सत्य है भोजन के एक घंटा पहले जल ग्रहण करना चाहिए  और भोजन के आधा एक घंटा बाद जल ग्रहण करना चाहिए  , बहुत आवश्यक हो तो बीच बीच में एक एक घूँट जल या छांछ लेना चाहिए  हैं वह भी  दो तीन बार से ज्यादा नहीं  )
दो कचौरियां देख कर तो उसका मन  खिन्न हो गया था और सभी वस्तुएं भी कम मात्रा  में हीं थी जबकि भूख उसे जोरों से लगा हुआ था | ( जब कोई सिद्ध  संत महात्मा प्रसाद में कुछ खाने को दे तो बिना संकोच ग्रहण कर लेना चाहिए जबकि इस व्यक्ति का मन खिन्न हो गया था )
योगी बाबा तब तक ध्यानस्थ हो चुके थे |

उस व्यक्ति ने  भोजन करना प्रारम्भ किया | दिव्य स्वाद  था उस भोजन का  अद्भुत जो उसने कभी  चखी न थी उसका भूख और दुगुना हो गया | वह एक तरफ तो भोजन कर रहा था तो दूसरी तरफ निरंतर महायोगी के आभामयी  चेहरे पर दृष्टि  गडाये हुए थे | वह निरंतर अपने हाथों से मुंह में कौर भी डाल रहा था और योगी बाबा के चेहरे से निकलती आभा को अपनी आँखों से पी भी रहा था | लगभग दस मिनट तक वह भोजन करता रहा | जब उसके भूख को तृप्ति मिली तो वह चौंका और अपनी थाली पर नजर डाली भोजन सामग्री अभी भी उसके थाली में मौजूद थी जबकि उसका पेट भोजन कर के जबाब दे चूका था | वह थोडा आश्चर्यचकित था किन्तु ज्यादा नहीं क्योंकि उसके लिए सबसे आश्चर्यचकित करने वाली घटना पहले घट चुकी थी उपर की उंचाई से हिमालय के दिव्य दर्शन करना |
भोजन समाप्त करने के बाद जो असल में समाप्त नहीं हुआ था किन्तु उसकी इच्छा तृप्त हो चुकी थी स्वामी सच्चिदानन्द की ओर अपना दृष्टिपात किया जो की अपना फल खा कर समाप्त कर चुके थे  |
सच्चिदानन्द ने उस व्यक्ति से पूछा “ भोजन कर चुके !”
“ जी अब और इच्छा नहीं है मैं तृप्त हो गया |” उस व्यक्ति ने कहा
“अच्छा बाहर चलो थाली ले कर बाहर गंगा में हाथ मुंह  धो लेना | बची हुई कोई सामग्री फेंकना नहीं | ”
बाहर निकलने के बाद सच्चिदानन्द ने एक चट्टान की ओर इशारा करते हुए उससे कहा “ थाली वहां रख दो |”
उसने वह थाली उस चट्टान पर रख दी
और दोनों गंगा की ओर बढ़ चले हाथ मुंह धोने |
हाँथ मुंह धोने के बाद लौटते वक्त उस व्यक्ति ने उस चट्टान की ओर नजर दौडाया जहाँ थाली राखी थी किन्तु अब थाली वहां मौजूद नहीं थी गायब हो चुकी थी |
वे दोनों  पुन: गुफा में आ कर योगी बाबा के निकट पूर्ववत बैठ गये |

जारी .........................

Wednesday 15 June 2016

Secret Himalayas रहस्यमयी हिमालय 6

हिमालय स्थित जंगल का भ्रमण दोनों कर रहें थे | शाम का समय था | बहुत हीं मनोहारी दृश्य उत्पन्न हो रहे थे | सूर्य पश्चिम की ओर बर्फीले हिमालय की ओट में जाने को तैयार था | जाते जाते सूर्य देवता बर्फ पर अपनी सतरंगी चादर लहरा रहे थे | वातावरण में दिव्य सुगंध था | कल कल करती माँ भगीरथी समुद्र देवता से मिलने को तेजी से भाग रही थी | नाना भाँती के रंगीन पंक्षी चहचहाते हुए अपने अपने नीड़ों की  ओर लौट रहे थे |
नवजवान साधक सच्चिदानन्द और वह व्यक्ति भ्रमण करते करते माँ गंगा के किनारे एक चट्टान पर आमने सामने बैठ कर प्रकृति का लुत्फ़ उठाने लगे |
तभी उस व्यक्ति ने साधक सच्चिदानन्द से पूछा “ क्या आप कभी उस गुप्त रहस्यमयी लोक में गयें हैं जहाँ अनेकों अनेक साधक तपस्यारत हैं |”
“ कई बार मेरा जाना हुआ है वहां मैंने कई साधनाएं उस लोक में निवास कर किया है किन्तु मैं अभी पारंगत नहीं हूँ इस लिए गोमुख के उपर दिव्य हिमालय की कन्दरा में रह कर अपनी साधना पूरी करता हूँ | अभी यहाँ महासंत अभेदानन्द के बुलावे पर आया हूँ |”

“ किन्तु महायोगी बाबा तो यहाँ से कहीं गये नहीं फिर आपको कैसे पता चला कि महायोगी बाबा आपको बुला रहें हैं |” उस व्यक्ति ने पूछा
“ देखो ध्यान की शक्ति से योगियों का दिमाग ट्रांसमीटर और रिसीवर दोनों का कार्य करता है | अगर योगी चाहें तो किसी को भी अपना सन्देश सूक्ष्म दिमागी  तरंगों के माध्यम से पहुंचा सकते हैं और जिसके लिए वह सन्देश तरंग रूप में हो वह ग्रहण कर लेता है चाहे ग्रहण करने  वाला योगी या ध्यान साधक न भी हो तब भी | इसी तरह के एक सन्देश तरंगों के द्वारा तुम्हें भी महायोगी बाबा ने बुलाया और तुम दल से उनके हीं निर्देशन पर भटक कर उनके पास पहुँच गये |” सच्चिदानन्द ने कहा
वह व्यक्ति आश्चर्यचकित था किन्तु अपने भाव छिपाते हुए उसने फिर पूछा “ योगी बाबा ने मुझे क्यों बुलाया है |”
“ यह तो योगी बाबा हीं बताएँगे तुझे |” स्वामी सच्चिदानन्द ने कहा |
शाम घिर आई थी अँधेरा होने को था | 
“ चलो योगी बाबा के गुफा की ओर चलते हैं |” स्वामी सच्चिदानन्द ने कहा
दोनों गुफा की ओर चल पड़े

जारी .........................

Secret Himalayas रहस्यमयी हिमालय 5

तभी एक नौजवान सा सन्यासी योगी बाबा के गुफा में प्रवेश किया | काली काली जटाएं , गठीला बदन , ऊँची कद काठी करीब छ: फीट के लगभग | ललाट पर एक अद्भुत चमक | आँखों में तेज |
उसने प्रवेश करते हीं योगी बाबा के पैरों पर शाष्टांग प्रणाम किया | तभी उसने दृष्टि वहां बैठे उस व्यक्ति पर डाली  | वहां “ आदित्य गुफा के नजदीक एक  शहरी दल दो तीन दिनों से पड़ाव डाले हुए है | उस दल का कोई व्यक्ति वहां उस दल से बिछड़ गया है लोग उसी की तलाश और इन्तजार कर रहें हैं | तुम उसी दल के भटके हुए वह  व्यक्ति हो मैं यह सूचना देने तुम्हें आया हूँ | “ नवजवान  साधक ने कहा
योगी बाबा उस व्यक्ति के तरफ इंगित करते हुए कहें “ इसे इसके दल के पास ले जाओ | इसे दल से मिलवा दो |”
और हाँ बेटा दल को सूचना दे कर तुम फिर यहाँ आ जाना | अब जाओ |” योगी बाबा ने उस व्यक्ति से कहा |
“जी जैसा आदेश | “ यह कह कर वह व्यक्ति उस नवजवान साधक के साथ निकल पड़ा |
वहां से चार पांच किलोमीटर पर आदित्य गुफा था जहाँ दल ने पड़ाव डाला था | दूर से लोगों ने उस व्यक्ति को नवजवान साधक के साथ आते हुए देखा | दल में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी | वह व्यक्ति दल के सभी लोगों के साथ मिला | और बाद में आने का आश्वासन दे कर फिर से उस नवजवान साधक के साथ योगी बाबा के गुफा की ओर चल पड़ा | जैसे उसके पैरों में पंख लगे हुए थे |

“ तुम आ गये |” योगी बाबा ने उसे संबोधित करते हुए कहा |
“ जी प्रभु |” उस व्यक्ति ने जबाब दिया |
“  सच्चिदानन्द जरा इसे भ्रमण करा लाओ |” उस नवजवान साधक के नाम को संबोधित करते हुए योगी बाबा ने उसे आदेश दिया |
वह व्यक्ति योगी सच्चिदानन्द के साथ भ्रमण को निकल पड़ा |
रास्ते में चलते चलते उस व्यक्ति ने योगी बाबा के बारे में योगी सच्चिदानन्द से पूछा “ ये बाबा कौन हैं |”
सच्चिदानन्द उस व्यक्ति के तरफ देख कर मुस्कुराए और कहा | “ यहाँ इस हिमालय में बहुत से स्थल हैं जो की गुप्त हैं , जो साधारण व्यक्तियों के लिए दृश्य नहीं हैं | वहां सदियों सदियों से ऋषि महर्षि अपनी साधना करते हैं | कुछ साधनाएं तो उस अदृश्य लोक में हो सकती है किन्तु कुछ साधनाओं के लिए यह दृश्य लोक आवश्यक है | तुम जिस संत के बारे में पूछ रहे हो वे उसी अदृश्य लोक के महासंत स्वामी अभेदानन्द हैं | अभी दृश्य लोक में इस स्थान पर रह कर इस गुफा में साधना कर रहें हैं लेकिन कोई सांसारिक व्यक्ति उन्हें नहीं देख सकता | तुम पर उनकी अगाध कृपा है इसलिए तुम उन्हें देख पाए |” सच्चिदानन्द ने कहा
“क्या मैं उस अदृश्य लोक के साधकों का दर्शन कर सकता हूँ |” उस व्यक्ति ने पूछा
“ तुम तो उस लोक के साधकों का दर्शन अपने सूक्ष्म शरीर से प्रकाश रूप में कर चुके हो महासंत अभेदानन्द की मदद से |”

उस नवजवान साधक का उतर सुन कर वह व्यक्ति अवाक रह गया और मन हीं मन सोचने लगा इसे कैसे मालूम हुआ | 
जारी .........................

Friday 10 June 2016

Secret Himalayas रहस्यमयी हिमालय 4

योगी  बाबा ने  कहा “ हम सभी अपने पूर्वजन्मों के संस्कार , अतृप्त वासनावों  , इच्छाओं के कारण पुन: पुन: शरीर धारण करते रहते हैं | हमारे संस्कार , कर्मों तथा इच्छाओं के बीज मन के माध्यम से एक शरीर से पुनर्जन्म के बाद दुसरे शरीर में प्रवेश करते हैं | शरीर का तो नाश हो जाता है आत्मा और मन सूक्ष्म रूप से विचरण करते रहते हैं और नये शरीर की तलाश करते रहते हैं |  मन हीं इन सबका वाहन है | हम अपने कर्मों का संचय इन्द्रियों ( आँख , नाक , कान , जिह्वा तथा त्वचा ) के माध्यम से करते हैं और कर्मों का फल भुगतते हैं | इन सभी इन्द्रियों में श्रेष्ठ मन हीं है क्योंकि मन अपने चरम पर पहुँच कर समाप्त हो जाता है और परमात्मा के दर्शन होते हैं | और पंच इन्द्रियों के पीछे भी मूल रूप से मन हीं होता है | इसलिए भगवान श्री कृष्ण  गीता में अर्जुन से कहते हैं इन्द्रियानां मनसअस्मि ( इन्द्रियों में मैं मन हूँ )  इन्द्रियों के माध्यम से भोगने वाला हमारा मन हीं है | “
“और पूरा हिमालय क्षेत्र एक अद्भुत प्रकाश से जो ढका था वह क्या था |” उसने पूछा
“दीर्घ काल से , युगों युगों से यह हिमालय क्षेत्र साधको , सिद्धों , संतो का कर्म  क्षेत्र रहा है | आज भी कई सिद्ध अपने कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर के माध्यम से यहाँ तपस्यारत हैं | वह प्रकाश उन्हीं महापुरुषों का आभामंडल था |”योगी बाबा ने कहा

“ और वे प्रकाश बिंदु जो कई तो स्थिर थे और कई गतिमान थे वह क्या था |” उस व्यक्ति ने पूछा
 “ वे वही परम सिद्ध संत और महापुरुष थे जो अपनी साधना में मग्न थे और तुम्हें स्थिर प्रकाश बिंदु के रूप में दिखाई दे रहे थे जिनका आभामंडल तुमने देखा  | और वे गतिशील ( रोकेट की तरह ) प्रकाश बिंदु ऐसे सिद्ध पुरुष थे जो भारत वर्ष और विदेशों में साधना रत नए साधकों की मदद हेतु आवागमन करते रहते हैं | कोई भी नया साधक जो साधनारत हो उसके साधना में गति हो उसकी मदद ये संत करुणावश करते रहते हैं | यह सत्य है | और  कोई  आवश्यक  नहीं की  कोई  साधक की  हीं  मदद हेतु  वे  जाएँ  बल्कि संकट के क्षणों में जो कोई भी परमात्म शक्ति पर  विश्वाश करता है या ना भी करता हो  और मदद के लिए पुकारता है उसके लिए ये शीघ्रता से दौड़ जाते हैं सिर्फ भाव शुद्ध होने चाहिए | ” योगी बाबा ने कहा
और मैं वहां आकाश में कैसे गया ? यह सूक्ष्म शरीर क्या  है ?” उस व्यक्ति ने पूछा

योगी बाबा उसके तरफ देख कर मुस्कुराए ! 
जारी ...............
चित्र Google Image से साभार प्राप्त 

Secret Himalayas रहस्यमयी हिमालय 3

परम योगी ने मुस्कुराते हुए कहा “ स्नान कर आये ?”
“ जी ” उसने कहा
“आओ मेरे करीब बैठो |” योगी बाबा ने कहा
वह उनके आसन पर आकर  उनके नजदीक बैठ गया |
योगी बाबा ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा “ आँखें बंद करो |”
उस व्यक्ति ने आँखें बंद कर ली | वह देखता क्या है वह और योगी बाबा दोनों खुले आकाश से सम्पूर्ण हिमालय को निहार रहें हैं | दिव्य हिमालय की अद्भुत छटा थी | वह इतनी उंचाई पर थे की सम्पूर्ण हिमालय  भारतीय क्षेत्र  , नेपाल का क्षेत्र और तिब्बती क्षेत्र पूरा का पूरा दिखाई दे रहा था |( जिस तरह गूगल मैप Google Map  पर देखते हैं )
अंतर इतना था की उस उंचाई से दिव्य महात्मा के संग हिमालय  दर्शन करते हुए उस व्यक्ति को और भी अद्भुत चीजें दिखाई दे रही थी | जैसे सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र विभिन्न रश्मियों से ओत प्रोत था | सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र साफ़ साफ़ एक अलग भीनी भीनी  प्रकाश से आच्छादित दिखाई दे रहा था | साथ हीं कहीं कहीं प्रकाश बिंदु टिमटिमाते हुए दिखाई दे रहे थे जैसे की तारे जमीं पर हों | कुछ प्रकाश बिंदु चलते फिरते भी नजर आ रहे थे | साथ हीं उसने देखा जैसे दिवाली के दिन  आसमान में रोकेट ( आतिशबाजी ) सर्र र र ........ से एक जगह से दूसरी जगह  भागता  है उसी तरह जमीं पर प्रकाश बिंदु सर्रर्र र्र .................. से एक जगह से दूसरी जगह भाग रहे थे | अंतर इतना था रोकेट आतिशबाजी की तरह भागते प्रकाश बिंदु सिर्फ हिमालय क्षेत्र तक  सिमित नहीं थे बल्कि हिमालय क्षेत्र से निकल कर भारत के दक्षिणी , पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों की तरफ भी जा रहे थे और कुछ उधर से  हिमालयी क्षेत्र में भी  प्रवेश कर रहे थे | वह व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो कर दिव्य  हिमालय का अवलोकन कर रहा था |

सहसा हीं उसकी तन्द्रा टूटी और अपने आप को योगी बाबा से यह पूछने से न रोक सका |
उसने पूछा – “ क्या यह वास्तविक है ! क्या मैं सचमुच सशरीर इस ऊंचाई से सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र को देख रहा हूँ |”
योगी बाबा ने कहा – “ चलो निचे चलते हैं | अपनी आँखें बंद कर लो |”
जैसे हीं उसने अपनी आँखें बंद की उसने पाया वह तो उसी गुफा में मौजूद है और योगी बाबा अभी भी उसकी हाथें पकडे हुए थे |
उसने कहा – “ यह सब क्या था भगवन |”
योगी बाबा ने कहा – “ यह तुम्हारे पूर्व जन्मों के संस्कार और कर्म हैं जो तुमने अपने सूक्ष्म शरीर से यह अनुभूति की |” 
सूक्ष्म शरीर ! पूर्व जन्मों का कर्म क्या है यह सब क्या सचमुच में पूर्व जन्म होता है | और आसमान से निचे दिखने वाले वे प्रकाश बिंदु क्या थे उसने योगी बाबा के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी |

जारी .....................

                          रहस्यमयी हिमालय 4 के लिए यहाँ क्लिक करें
तस्वीर  साभार  - Google Image  से 

Thursday 9 June 2016

Secret Himalayas रहस्यमयी हिमालय 2


वह  घंटों  वहीँ  बैठा रहा | उस  योगी  के  दिव्य  स्वरूप  को  निहारता  रहा  | कुछ देर  बाद योगी  ने आँखे  खोली | योगी  के  आँख  खुलते  हीं वह  कुछ कहना  चाहा  किन्तु  उस  दिव्य  संत  ने  हाथों  के इशारे  से  उसे  चुप  रहने  को  कहा  | योगी  ने  पुन : आँखें बंद की  और कुछ क्षणों  बाद फिर  से  आँखें  खोली | दिव्य  संत  ने  उस  व्यक्ति  से  पूछा – “ राह  भटक  कर  अपने  दल  से  बिछुड़  गये  हो |”
“ जी ” उस  व्यक्ति  ने  कहा
“ तुम  राह  नहीं  भटके  हो  बल्कि  किसी  के  अदृश्य  निर्देशन  के द्वारा मेरे पास पहुंचे हो |”  योगी ने कहा ( सिद्ध संत पहले आपकी भाषा में बातें करेंगे फिर बाद में अपनी )
” जी मैं कुछ समझा नहीं |”  उस व्यक्ति  ने  कहा
“ समय  आने  पर  सारी  बातें  तेरे  समझ  में  आ  जायेगी  |” योगी बोल पड़े
“ अच्छा  ऐसा कर  बगल में गंगा बह रही है जा स्नान कर के आ जा | और वहां ( ऊँगली से ईशारा करते हुए ) कुछ फल रखे हुए हैं स्नान के  बाद आ कर खा लेना |” ऐसा कह कर योगी क्षण में ध्यानस्थ हो गये |
वह व्यक्ति बाहर निकला बाहर मनोरम दृश्य था | कल कल करती हुई भगीरथी न जाने कितने युगों से बह रही है इस धरा पर | मैदानी क्षेत्रो में लोग इसी माँ गंगा के शरण में तो आते हैं अपने पाप धोने | कितने पावन शहर बसे हुए हैं इस ममतामयी के तट पर अपने भारत में  ऋषिकेश , हरिद्वार , बनारस सभी |  और ये हिमालय बाबा न जाने कितने साधकों को अपने गोद में आश्रय दिया है इन्होने | अपनी गोद में न जाने कितने कीमती जड़ी बूटियों को छिपा कर रखें है इस पवित्र हिमालय ने जो न जाने कितने असाध्य रोगों को ठीक कर सकता है | कुछ ऐसा हीं विचार उसके मन  में चल रहा था |

       मन में विचार करते हुए वह गंगा के तट पर पहुंचा | उसने अपने हाथों से गंगा जल को स्पर्श किया बिलकुल हिम (बर्फ ) के मानिंद ठंडा शीतल ! उसने अपने सारे वस्त्र उतारे और स्नान किया | स्नान कर के वह बाहर निकला | तभी उसने  हांथों में नए वस्त्र लिए एक व्यक्ति को वह वहां खड़ा देखा |
वस्त्रों को उस व्यक्ति को देते हुए उस आदमी ने कहा “ उस गुफा वाले बाबा ने दियें हैं आपके लिए आप इसे पहन लें |”
वह व्यक्ति थोडा आश्चर्यचकित होते हुए अपने  वस्त्र बदले और गुफा की ओर प्रस्थान किया |
गुफा के अंदर प्रवेश कर के उसने देखा वह आदमी तो वहां था हीं नहीं जिसने उसने उसे वस्त्र दिए थे | योगी बाबा अभी भी ध्यानस्थ थे |
योगी बाबा ने जिस स्थान पर फलों के लिए बताया था वहां से उसने कुछ फल सेब , नाशपाती और कुछ सूखे मेवे काजू , किशमिश , छुहाड़ा आदि ले कर वह खाने लगा | उसकी दृष्टि अभी भी उस रहस्यमयी योगी के चेहरे को अपलक निहार रही थी |  

जारी .........................
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रहस्यमयी हिमालय Secret Himalayas

हिमालय का दिव्य वातावरण ! चारो तरफ बर्फ के सफ़ेद चादर से ढके हुए विशाल  पर्वत | सभी तरफ एक सिहरन पैदा करने वाली शान्ति | पर्वतों के बिच कल कल करती हुई बहती मंदाकिनी | हरे भरे घने देवदार के वृक्षों की दिव्य सुगंध चारो तरफ |
       पर्वत में एक छोटी सी गुफा | गुफा में दस बाई पन्द्रह फीट का जगह मात्र | गुफा के अंदर छोटी छोटी शिलाओं को जोड़ कर बनाया गया चार बाई तीन का एक आसन | आसन पर कम्बल बिछा हुआ है | उस आसन पर विराजमान एक योगी | गहन ध्यानस्थ समाधि अवस्था में | योगी के सर पर काली काली जटाएं विराज रही हैं | भाल पर एक अद्भुत तेज | चेहरे पर शान्ति | आँखें बंद अंदर के किसी लोक का दीदार करती हुई |

       एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो सैलानी था अपने दल से बिछड़ कर मार्ग भटक गया है | वह अंदर से आकुल व्याकुल है | भटकता हुआ गुफा के पास से निकल रहा है पता नहीं उसके मं में क्या सूझा वह गुफा के अंदर झांक बैठा | गुफा के अंदर एक ध्यानस्थ योगी को देख कर वह आश्चर्यचकित हुआ तथा मन  हीं मन उसे हिम्मत भी आई सोचा चलो कोई तो मिला | अपने अंदर हिम्मत जुटा कर वह गुफा में प्रवेश कर गया | गुफा के अंदर घुसते हीं उसे अजीब सी शान्ति ने तथा मस्ती ने घेर लिया |
       ध्यानस्थ योगी को टोकने की हिम्मत तो उसे नहीं हुई | वह चुपचाप वहीँ निचे पालथी लगा कर बैठ गया |और अपलक उस योगी को निहारने लगा | मन  हीं मन सोचने लगा मैंने अनेकों लोगों से  सुना तथा अपने धर्म ग्रन्थों में पढ़ा भी है  सिद्ध योगियों के बारे में कहीं ये भी उनमे से एक तो नहीं |  मन में तरह तरह के  ख्याल आने लगे | उसने रामायण तथा महाभारत जैसे धर्मग्रन्थों का हल्का अध्यन किया था | सोचने लगा कहीं ये रामायण काल के  महर्षि वशिष्ठ तो नहीं या राजर्षि विश्वामित्र तो नहीं | कौन है ये महापुरुष जिनके सान्निध्य मात्र से से रोम रोम में पुलकन का आभास हो रहा है | ( आज के युग में अगर महापुरुषों , सिद्धों को पहचानने में दिक्कत हो तो ये कसौटी है उनके समीप सिर्फ पहुँचने पर अद्भुत शांति और आनन्द का आभास होगा उनके शरीर से निकलने वाली दिव्य उर्जा मात्र आपको तृप्त कर देगी )
       उसका मन हिरण की तरह कुलांचे मार रहा था घंटो वह बैठा रहा | चाह कर भी वहां से जाने की इच्छा के वावजूद वह वहां से हिल न पाया जाने कौन सा आकर्षण उसे बांधे हुए था |

जारी .........................
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Manipura chakra 2 मणिपुर चक्र 2

       बौद्ध तथा अनेक तांत्रिक परम्पराओं में कुण्डलिनी का वास्तविक जागरण मणिपुर चक्र से हीं माना जाता है न कि मूलाधार से |कई तांत्रिक परम्पराओं में मूलाधार तथा स्वाधिष्ठान की चर्चा तक नहीं की गयी है | क्योंकि उनके अनुसार ये चक्र पशु जीवन के उच्च स्तरों से सम्बन्धित है | मतलब हुआ पशु जीवन में चक्र  जागरण  का सबसे ऊँचा स्तर स्वाधिष्ठान चक्र है , पशुओं के लिए सहस्त्रार जागरण दुर्लभ है | यहीं इसी बात से  मानव जीवन और मानवीय शरीर की महता सिद्ध होती है | और हमें समझ में आता है कि  मानवीय शरीर क्यों आवश्यक है | तो प्रथम जागरण का केंद्र मणिपुर हीं है ऐसा इसलिए कि इस चक्र के जागरण के बाद अधोगामी होने की संभावना नहीं रहती | यहाँ तक जिस किसी भी साधक का चक्र जागृत हो गया हो तो उसके बाद अब कुण्डलिनी निचे नहीं गिर सकती | जबकि स्वाधिष्ठान तक पहुँच कर कुण्डलिनी के फिर से निचे गिरने की संभावना रहती है | 

मणिपुर तक जागरण पहुँचने के बाद जागरण सुनिश्चित होता है | मणिपुर में सजगता को स्थिर रखना तथा जागरण को जारी रखना थोडा कठिन होता है | इसलिए साधक को यहाँ पहुँच कर साधक को अपने प्रयास में लगनशील होना तथा दृढप्रतिज्ञ होना आवश्यक है | यदि सांसारिक कार्यों को करते हुए भी आपका जीवन अध्यात्मिक है , आप वगैर किसी संकोच के रूचि लेते हुए योगाभ्यास और ध्यान करते हैं | और उच्चतर जीवन के प्राप्ति हेतु गहरी प्यास है और इसके लिए गुरु की तलाश कर रहें हैं तो अब आपकी कुण्डलिनी मूलाधार में नहीं है | बल्कि वह एक उच्च केंद्र मणिपुर तक पहुँच गयी है |
       आगे जारी .................
ध्यान करते रहें अपने नित्य दैनिक के कर्मों में से सिर्फ  पैंतालिस मिनट , एक घंटा निकाल कर आप ध्यान करते हैं तो आपको स्वाद आने लगेगा , रस मिलने लगेगा अध्यात्म का | और स्वाद आने भर की देर है फिर उसके बाद तो बाकी कार्य परमात्मा सम्पन्न करेगा | ॐ के जाप से ध्यान का रस मिलना प्रारम्भ हो जाता है |

ॐ 

Wednesday 8 June 2016

Joy of meditation ध्यान का आनन्द

एक नवयुवक एक महात्मा  के पास गया | महात्मा भी थे उच्च कोटि के उम्र लगभग नब्बे के करीब | युवक महात्मा के पास पहुँच कर उनके सामने  हाँथ जोड़ कर विनती की | उसने कहा – “ महात्मन ध्यान क्या है , समाधि क्या है , परमात्मा क्या है |” युवक के आँखों में प्यास थी | उसकी जिज्ञासा और प्यास देख कर महात्मा ने कहा – “ इसमें देर किस बात की लो जान लो |” ऐसा कह कर महात्मा ने अपने पैर के  दायें अंगूठे से युवक के सर के चोटी ( जहाँ ब्राह्मण चुटिया रखते हैं , सहस्त्रार ) पर स्पर्श कराया | युवक निढाल हो कर गिर पड़ा | उसे अपनी सुध बुध न थी | घंटों वह उस अवस्था में पड़ा रहा | जब उसकी चेतना वापस आयी तब महात्मा उसके आँखों में देख कर मुस्कुरा रहे थे | युवक भाव शून्य नेत्रों से महात्मा को निहारता रहा घंटों |

       कुछ देर बाद महात्मा ने युवक से पूछा और कुछ ? युवक ने अपने हाथ जोड़ कर कहा नहीं | फिर युवक के मन का कीड़ा कुलबुला गया और महात्मा से पूछ बैठा -  “यह क्या था |” महात्मा ने कहा मैंने – “ अपने तपो बल से तुम्हारे उपर क्षणिक शक्तिपात किया था ताकि तुम परमात्मा की शक्ति को मह्शूश कर  सको |  अब तुम एकांत रहते हुए सदा  मौन तथा ब्रह्मचर्य  का पालन करते हुए  अपने दोनों भ्रू मध्यों के बीच आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाते रहना | जब तुम आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाओगे तब मैं तुम्हारे सम्पर्क में रहूँगा |” इतना कह कर महात्मा ने युवक को जाने का इशारा किया | युवक वहां से प्रस्थान कर गया |
       करीब आधी रात्री को वह युवक गंगा के किनारे बैठ कर महात्मा के कहे अनुसार ध्यान लगाने लगा | कुछ देर तो कुछ भी पता न चला सिर्फ अन्धकार हीं अन्धकार दिखे | किन्तु थोडा प्रयास के बाद एक छोटा सा प्रकाश का बिंदु उसे नजर आया | वह उसी बिंदु पर ध्यान केन्द्रित करने लगा | वह देखता है कि वह छोटा प्रकाश पुंज कभी तो बिलकुल छोटा और कभी बढ़ कर सिक्के के अकार का हो जाए बिलकुल श्वेत चांदी के रंग का प्रकाश | वह यह खेल को घंटो देखता रहा | एकाएक वह छोटा प्रकाश पुंज बढ़ कर बड़ा अकार ले लिया और उसमे महात्मा का चेहरा नजर आया | महात्मा ने उस प्रकाश पुंज के अंदर से पूछा – “ क्यों सब ठीक चल रहा है न !”
       उस युवक का गला रुन्द्द आया कुछ भी बोलते न बन पड़ा | वह रोता रहा घंटो रोता रहा | उसका ध्यान कब टूट गया उसे पता हीं नहीं चला |

-    कल्पना पर आधारित किन्तु सत्य से ओत प्रोत कथा 

Tuesday 7 June 2016

Manipura chakra मणिपुर चक्र

मणिपुर दो शब्दों से बना है मणि और पुर मतलब हुआ मणियों का नगर | तिब्बत के परम्परा में इसे मणिपद्म भी कहते हैं जिसका अर्थ हुआ मणियों का कमल | मणिपुर सक्रियता , शक्ति ,इच्छा तथा उपलब्धियों का केंद्र है | इसकी तुलना सूर्य के तेज गर्मी व् शक्ति से की जाती है जिसके अभाव में इस धरा पर जीवन की कल्पना संभव नहीं | ठीक उसी तरह मणिपुर चक्र भी विभिन्न अवयवों , संस्थानों तथा जीवन की प्रक्रियाओं को नियमित करते तथा शक्ति प्रदान करते हुए सम्पूर्ण शरीर में प्राण उर्जा के प्रवाह का जिम्मेदार है | 

शक्ति की कमी होने पर यह चक्र एक शक्तिशाली ज्वाला की भाँती न हो कर दहकते हुए एक लाल अंगार की तरह हो जाता है | ऐसी स्थिति में व्यक्ति निष्क्रिय व् शक्तिहीन होता जाता है | ऐसा व्यक्ति व्याधियों व् अवसाद से ग्रस्त हो जाता तथा उसमे प्रेरणा की कमी एवं उतरदायित्वों के प्रति लापरवाही देखने को मिलती है | इसलिए मणिपुर का जागरण न केवल साधक के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है वरन उनके लिए भी आवश्यक है जो जीवन के सम्पूर्ण आनन्द की अनुभूति हेतु उत्सुक  है |
       कुण्डलिनी का मूल निवास मूलाधार , घर स्वधिस्थान और प्रथम जागरण का केंद्र मणिपुर है |

ॐ सत्यं परम धिमहि !
खूब  ध्यान  कीजिये  ध्यान  करने  से  कोई  हानि  नहीं  होती  बिना  भयभीत  हुए  ध्यान  करें  अगर  गुरु नहीं  हैं  तो  परमात्मा  का हाथ  आपके  उपर  है  इस  भाव  को  दृढ कर के  ध्यान  में  बैठे | परमात्मा  के  लिए  ध्यान  में  आंसू  बहायें  | अच्छा  संगीत  सुनें instrumental बांसुरी  , सितार , जलतरंग , संतूर  आदि |

आगे जारी .................

Saturday 4 June 2016

How to calm mind during meditation. ध्यान के दरम्यान मन शांत कैसे करें

मन  बहुत  चंचल है | जब  ध्यान  करने  बैठो उसी वक्त यह ज्यादा परेशान करता  है शांत हीं नहीं होता |  इसका  ईलाज है  कारगार  ईलाज  ! आखिर मन  के उपर  भी  उसका  बाप  आत्मा जो  बैठा  है  ईलाज  कैसे नहीं  मिलेगा  | ऐसे में अधिकाँश साधक आत्म सुझाव ( Auto suggestion ) का सहारा लेते हैं | जैसे की मन  हीं मन वे  दुहराते हैं ” मेरा मन  शांत हो  रहा  है .............मेरा मन  शांत  हो  रहा  है ........|” लेकिन कई बार  यह भी कार्य  नहीं करता तब क्या करें ? ऐसे में एक रामबाण ईलाज है !
शान्ति  से सुखासन में बैठ  जाएँ |
रीढ़ की हड्डी  सीधी  तनी हुई नहीं |

तीन बार  अनुलोम  विलोम प्राणायाम  कर  लें ( नहीं भी करेंगे तो चलेगा )
अब एक  गहरी  लम्बी सांस अंदर खींचते हुए ॐ ................का उच्चारण करें साँसों को छोड़ते हुए |
फिर  एक  बार ॐ .............................
ॐ  का उच्चारण करते रहें |
आपके ॐ के उच्चारण  से शरीर में स्पंदन होने लगेगा |
इस  स्पंदन को मह्शूश करें |
ॐ का उच्चारण सिर्फ मुंह से नहीं हृदय से करें |
अपने अहं को ॐ में विलीन कर दें |
शरीर और मन में ॐ के प्रकम्पन को मह्हूश करें |
आप  देखेंगे आपका मन  शांत  हो  गया है |

ॐ ॐ ॐ 

Thursday 2 June 2016

swadhisthana chakra 4 स्वाधिष्ठान चक्र – 4

स्वाधिष्ठान का सम्बन्ध स्थूल शरीर में प्रजनन तथा मूल संस्थान से है , परन्तु शारीरिक रूप से यह प्रोटेस्टेंट के स्नायुओं से सम्बन्धित है | स्वाधिष्ठान चक्र रीढ़ के हड्डी के निचे काक्सिस के स्तर पर स्थित है | यह हड्डियों के एक छोटे बल्ब की तरह है जो गुदाद्वार के ठीक उपर है | शरीर क्रियाविज्ञान के दृष्टिकोण से यह पुरुषों और स्त्रियों दोनों के मूलाधार चक्र के अत्यंत नजदीक है |
स्वाधिष्ठान का रंग काला है क्योंकि यह मूल अज्ञान का प्रतीक है | किन्तु पारम्परिक रूप से इसे छ : पंखुड़ियों के सिंदूरी कमल के रूप में चित्रित किया जाता है | हर पंखुड़ी पर बं , भं ,मं , यं ,रं और लं चमकीले रंगों में अंकित है | इस चक्र का तत्व जल है जिसका प्रतीक है – कमल के अंदर एक सफ़ेद अर्ध चन्द्र | यह अर्ध चन्द्र दो वृतों से मिल कर बना है जिनसे दो यंत्रों की संरचना होती है | बड़े वृत्त से बाहर की और पंखुडियां निकलती हुई दिखाई देती है जो भोतिक चेतना का प्रतीक है | अर्ध चन्द्र के अंदर वाले छोटे वृत में उसी  प्रकार की पंखुडियां हैं पर वे केंद्र की और मुड़ी हुई हैं | यह अकार विभिन्न कर्मो  के भंडार गृह का प्रतीक है | 

अर्ध चन्द्र के अंदर इन दो यंत्रों को सफ़ेद रंग का एक मगर अलग अलग करता है | यह मगर अचेतन जीवन की सम्पूर्ण मनोलीला का माध्यम है अर्थात सुप्त कर्मों का प्रतीक है | मगर के उपर स्वाधिष्ठान चक्र का बीज मन्त्र ‘ वं ’ अंकित है |
       मंत्र के बिंदु के अंदर देव विष्णु और देवी राकिनी का निवास है | विष्णु के चार हाथ हैं और उनका रंग चमकीला है | उनके वस्त्र पीले एवं अत्यंत हीं सुंदर हैं | राकिनी का रंग नीले कमल की तरह है एवं वे दिव्य वस्त्र एवं आभूषणों से सजी हुईं हैं | अपने उपर उठे हाथों में उन्होंने अनेक शस्त्र धारण कर रखें हैं | अमृतपान करने से उनका मन  आनन्दित है | वे वनस्पतियों की देवी हैं | स्वाधिष्ठान चक्र का सम्बन्ध वनस्पतियों से है | अत : कुण्डलिनी  के साधक को निरामिष हीं रहना चाहिए |
       स्वाधिष्ठान का लोक भुव: है जो अध्यात्मिक जागृति का मध्य स्तर है | इस चक्र से स्वाद की तन्मात्रा या संवेदना सम्बन्धित है | ज्ञानेन्द्रियाँ जिह्वा , कर्मेन्द्रियाँ यौन अवयव ,किडनी तथा मूत्र संस्थान हैं | स्वाधिष्ठान की मुख्य वायु व्यान है जो पुरे शरीर में स्थित है | स्वाधिष्ठान और मणिपुर चक्र प्राणमय कोष के निवास स्थान हैं |

       स्वाधिष्ठान पर ध्यान लगाते रहने से मनुष्य अपनी आंतरिक दुष्प्रवृतियों जैसे काम , क्रोध , लोभ आदि से तुरंत मुक्त होने लगता है | उसकी वाणी अमृत की तरह तथा काव्यमय एवं ज्ञानयुक्त होती है |