Friday 24 June 2016

Secret Himalayas 8 रहस्यमयी हिमालय 8

योगी बाबा ने आँखें खोली और उस व्यक्ति से कहा “ भोजन कर लिया तुमने |”
“ जी भगवन |” उस व्यक्ति ने कहा
“ देखो तुम्हारा जो ये शरीर है न  ! कभी विचार किया तुमने ये किसलिए है |” योगी बाबा ने पूछा
“ जी कभी कभी ये विचार आता है मेरे मन  में कभी कभी ये भी सोचता हूँ कि मैं कौन हूँ  |” उस व्यक्ति ने कहा
“ यूँ हीं नहीं आता सबके मन में ऐसे विचार इसका सम्बन्ध पूर्व जन्म से है | तुम पूर्व जन्म में एक उच्च कोटि के साधक थे किन्तु महामाया की बिछाई जाल में तुम फंस गये और अपने को संभाल नहीं सके | तुम पथभ्रष्ट हो गये |” योगी बाबा ने कहा
“पूर्वजन्म ...”
“हाँ पूर्वजन्म ! पूर्वजन्म एक सत्य है समय आने पर मैं तुम्हे तुम्हारे पूर्वजन्म में भी ले जाऊँगा |” योगी बाबा ने कहा
बगल में बैठा हुआ नौजवान साधक सच्चिदानन्द बहुत हीं तल्लीनता से दोनों की बातें सुन रहा था |
“देखो ये शरीर जो है न परमात्मा का दिया हुआ अचूक वरदान है मनुष्यों को | किन्तु परमात्मा के द्वारा प्राप्त मिले इस वरदान के बावजूद भी मनुष्य न जाने परमात्मा से और क्या क्या अपेक्षाएं रखता है | शास्त्रों में एक बात कही गयी है ‘ यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे ’ अर्थात जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है | तुम्हें तुम्हारा ये शरीर इसलिए मिला हुआ है ताकि तुम भी इस शरीर को माध्यम बना कर परमात्मा हो जाओ और क्या कहूँ  | मनुष्य शरीर छोड़ कर किसी और शरीर में ये संभवाना नहीं |” योगी बाबा ने कहा |
“ किन्तु हे महात्मन मैं इस शरीर से उस परमात्मा को कैसे जानूँ ?” उस व्यक्ति ने पूछा
“ साधना , ध्यान , भगवत भक्ति के द्वारा आत्मतत्व परमात्मतत्व को जाना जा सकता है | इसके लिए गुरु की कृपा भी आवश्यक है |” ऐसा कह कर योगी बाबा अभेदानन्द ने अपने हाथ के  अंगूठे को उसके सर के चोटी पर थोडा स्पर्श करा दिया |

वह व्यक्ति ध्यान में चला गया |
ध्यानावस्था में उसे योगी बाबा की आवाज़ सुनाई दी |
“ तुम क्या देख रहे हो |” योगी बाबा ने पूछा
“ सुनहला और दिव्य प्रकाश भगवन |” उसने मन  हीं मन दोहराया |
“ अपना ध्यान और प्रगाढ़ करो |” योगी बाबा ने कहा
“ योगी बाबा आप !! मेरे शरीर में |” वह व्यक्ति अपने आज्ञा चक्र पर प्रकाश पुंज के अंदर योगी बाबा अभेदानन्द का चेहरा देख कर चौंक गया |
“योगी किसी के भी शरीर में प्रवेश कर सकते और उचित निर्देशन कर सकते हैं अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा चाहे वे शरीर में हों या न हों |” योगी बाबा ने कहा
“अच्छा अपनी दृष्टि और सूक्ष्म करो और ध्यान लगाओ क्या दिखाई देता है तुम्हें तुम्हारे शरीर में प्रकाश के अलावा |” योगी बाबा ने कहा |
वह व्यक्ति और गहरे ध्यानस्थ हो गया |और अपने शरीर की यात्रा करने लगा |
“ बाबा... बाबा ”ख़ुशी से चहक कर मन हीं मन बोल उठा | “ मुझे अपने शरीर में अनगिनत उर्जा के  चक्र नजर आ रहें हैं सर से पाँव तक |”
“ठीक है  अब  प्रमुख रूप से शक्तिशाली उर्जा के  कितने चक्र तुम्हें  दिखाई देते  हैं इसकी खोज करो |”
“ बाबा जी मुझ पर  अजीब सी मस्ती छा रही है मैं बता नहीं सकता | मैं धीरे धीरे किसी अनजान लोक में खोता जा रहा हूँ मेरे प्रभु | मेरी सारी चेतना सिमट कर सर के उपरी भाग पर चली जा रही है | योगी बाबबबबब.......|”
पूरी तरह बाबा को पुकार भी नहीं पाया अपनी चेतना में डूब गया था वह |
“सच्चिदानन्द यह समाधिस्थ हो चूका है लाओ इसे यहाँ लेटा दो |” योगी बाबा ने नौजवान साधक को संबोधित करते हुए कहा |

“जी गुरुवर |” कह कर उस व्यक्ति को सच्चिदानन्द ने बाबा के आसन पर बाबा के बगल में लिटा दिया | 
जारी .............

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