Friday 22 May 2015

ध्यान अमृत


मैं ध्यान पर इतना जोर क्यों देता हूँ !

भैया अध्यात्म के मार्ग में अपना ये शरीर हीं प्रयोग करने का equipment बन सकता है | यहाँ हाथों हाथ लेना और देना होता है शरीर सारे अनुभूतियों का साक्षी होता है | तो ध्यान शुरू करते हैं खुद से और लगे हाथ अनुभूतियाँ भी होती है | अनुभूतियाँ हमारे भीतर रूचि पैदा करती हैं परमात्मा के प्रति | अध्यात्म में और कोई भी ऐसा मार्ग नहीं जो हाथो हाथ रिजल्ट दे | ध्यान तवरित परिणाम देता है बस ध्यान करने की जरूरत है | और एक बात लोग कभी कभी कुछ अनुभूतियों से डर भी जाते हैं मैं आश्वस्त करता हूँ आपको की डरने की कोई आवश्यकता नहीं है | आज तक ध्यान से किसी का कोई नुक्सान नहीं हुआ है | तो ध्यान करें और हाथो हाथ परिणाम मिलेगा इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है |


कुछ मित्र मुझसे पूछते हैं ध्यान कैसे करें !

भाई कुछ नहीं करना है !
आँखें बंद करके अपने भीतर खोने का अभ्यास करें !
प्रथम अवस्था में मन में चल रही आपकी कल्पनाओं का साक्षात्कार होगा !
आप देखेंगे कि मन क्या क्या कल्पना करता है और किन किन कल्पनाओं में खोया रहता है !
कुछ न करें बस कल्पनाओं को देखते रहें कल्पनाओं के प्रति सजग रहें |
सजग मात्र होने से हीं कल्पनाएँ शांत होने लगती है |
फिर विचारों को देखें मतलब विचारों के प्रति भी सजग हो जाएँ |
ये भी गायब हो जायेंगी धीरे धीरे |
फिर धीरे धीरे अपने भीतर उतरें |
गहन अन्धकार में | गहन शान्ति में ! गहन आनन्द में !

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