Tuesday 26 May 2015

आज्ञा चक्र -3


आज्ञा चक्र -3

आज आज्ञा चक्र के स्थिति और वैज्ञानिकता पर थोडा प्रकाश डालता हूँ |आज्ञा चक्र मस्तिष्क में भ्रू मध्य के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के एकदम उपर मेरुरज्जु में स्थित है | प्रारम्भ में आज्ञा चक्र के स्थान को जानना थोडा कठिन है | इसलिए भ्रू मद्य में उसके क्षेत्रम पर ध्यान किया जाता  है मतलब ये है कि प्रारम्भिक अवस्था में ठीक आज्ञा चक्र पर ध्यान नहीं हो सकता क्यूंकि उसके स्थिति का पता नहीं चलता इसलिए उसके पुरे क्षेत्र पर ध्यान लगाया जाता है |चित्र देखें –


      



तस्वीर से आप सभी समझ गए होंगे आज्ञा चक्र और उसके क्षेत्र के सम्बन्ध में फिर समझाता हूँ आज्ञा चक्र के वास्तविक स्थित का पता लगाने के लिए पहले अनुमान से उसके क्षेत्र में प्रवेश कर के सम्पूर्ण क्षेत्र में ध्यान लगाते हैं फिर टटोलते टटोलते हमें आज्ञा चक्र के वास्तविक स्थिति का पता चलता है | निरंतर दो महीने ध्यान करने पर स्थिति ज्ञात की जा सकती है |
       भारत में भ्रू मध्य पर तिलक चंदन कुमकुम सिन्दूर आदि लगाने की परम्परा है | सिन्दूर में पारा होता है और उसे भ्रू मध्य  पर लगाते हैं तो वहां स्थित नाडी में लगातर उद्दीपन होता है जो नाडी सीधे भ्रू मध्य से मेरुरज्जु तक जाती है | आज तिलक टिके आदि लगाने के वास्तविक अर्थ को भुला जा रहा है और इसे पाखंड से जोड़ा जाता है जो की गलत है | ये ऐसे नुस्खे या माध्यम हैं जिससे आज्ञा चक्र के प्रति चेतन और अचेतन सजगता को निरंतर बनाए रखा जा सकता है |
       आज्ञा चक्र तथा पीनियल ग्रन्थि दोनों एक हीं चीज हैं | पियुषिका ग्रन्थि सह्त्रार चक्र है | पीनियल और पियुषिका ग्रन्थि में जो सम्बन्ध है ठीक वैसा सम्बन्ध  हीं आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र में हैं |  आहया चक्र सहस्त्रार तक पहुँचने का एक मार्ग है | आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात सहस्त्रार के जागरण को संभालना कठिन नहीं होता इसलिए सहस्त्रार जागृत हो इससे पूर्व आज्ञा चक्र को जागृत करना अनिवार्य है |
       पीनियल ग्रन्थि पियुषिका ग्रन्थि पर एक ताले की तरह काम करती है जिव बिज्ञान के जानकार इसे जानते होंगे | जब तक पीनियल ग्रन्थि स्वस्थ है तब तक पियुषिका ग्रन्थि का कार्यकलाप नियंत्रित रहता है |किन्तु लोगों मेर 8 – 10 के उम्र में हीं पीनियल ग्रन्थि का क्षरण होने लगता है इसके बाद  से पियुषिका कार्य करना प्रारम्भ करती है | जिससे विभिन्न प्रकार के हारमोन का स्त्राव प्रारम्भ हो जाता है , और यौन चेतना संवेदनाओं ,सांसारिक व्यक्तित्व को उभारने का काम करते हैं | और यही वह समय होता है जब  हम अध्यात्मिक जीवन  से दूर होने लगते हैं  | कुछ योगाभ्यास ऐसे त्राटक और शाम्भवी मुद्रा के द्वारा पीनियल ग्रन्थि का कायाकल्प संभव है |
शेष अगले भाग में .......
 विषय अगर कठिन प्रतित हो रहा हो तब टिप्पणियों के माध्यम से अपने विचारों से अवगत कराएं जिससे इसे  मैं और  सरल बनाने की कोशिश करूँगा |
अगर  कोई मित्र इन  लेखों  का अंग्रेजी अनुवाद कर सकते हैं तो उनका स्वागत है टिप्पणी कर के इच्छा जाहिर कर सकते हैं |

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