Sunday 24 May 2015

आज्ञा चक्र – 2

गतांक  से  आगे .........
       आज्ञा  संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है आदेश | आज्ञा चक्र का शाब्दिक अर्थ है नियन्त्रण केंद्र | ज्योतिष में आज्ञा चक्र वृहस्पति का का केंद्र है जो की गुरु का प्रतीक है | वृहस्पति देवताओं के गुरु हैं इसलिए इस चक्र को एक और नाम से जाना जाता है “गुरु चक्र ” |
       आज्ञा चक्र  एक ऐसा माध्यम है जिससे गुरु का हमेशा अपने शिष्य  से संपर्क बना हुआ रहता है | यह वह स्थान है जिससे दो व्यक्तियों का मन हीं मन सम्पर्क बन सकता है | इसी चक्र में बाह्य गुरु से सम्पर्क होता है | यह वह केंद्र है जहाँ ध्यान के गहन अवस्था में जब की बाह्य जगत से सम्पर्क टूट जाता है और शून्य की स्थिति आने पर   इसी केंद्र के माध्यम से आंतरिक गुरु का निर्देश प्राप्त होता रहता है |
       यह शून्य की एक ऐसी स्थिति है जब नाम आकृति विषय और उदेश्य किसी का भान नहीं होता है | इस पूर्णत : निश्चल स्थिति में मन बिलकुल प्रकाशहीन हो जाता है , चेतना अकर्मण्य हो जाती है और अहं का ध्यान भी नहीं रहता है | यह अनुभव मृत्यु की तरह होता है और इस अनुभव से परे जाने के लिए आज्ञा चक्र में आवाज़ सुनना आवश्यक हो जाता है | अब आप समझ गएँ होंगे गुरु क्यों महत्वपूर्ण है | इस अवस्था में आपसे गुरु के आलावा और कोई भी सम्पर्क नहीं साध सकता , ऐसी स्थिति में गुरु हीं आज्ञा चक्र के माध्यम से शिष्य को निर्देशित करते हैं |
       आध्यात्म के क्षेत्र में नए लोगों के साथ तो अभी ऐसी अवस्था नहीं आएगी किन्तु थोडा पारंगत होने पर ऐसी अवस्था में संभलना थोडा मुश्किल होता है | अगर ऐसी अवस्था आ जाये और गुरु भी न हों तो अपने अंदर के गुरु को सुनें और सभी कुछ ईश्वर पर समर्पित कर दें , शत प्रतिशत निदान मिलता है पक्का |
       

इसे अंतर्ज्ञान चक्षु के नाम से भी जाना जाता है ,यही वह मार्ग है जिसके माध्यम से व्यक्ति चेतना के सूक्ष्म और अतीन्द्रिय आयाम में पहुँचता है | इस चक्र का सबसे प्रसिद्ध नाम है तीसरा नेत्र या तीसरी आँख तथा प्रत्येक संस्कृति एवं सभ्यता में निहित गुह्य विद्याओं में इसकी चर्चा पाई जाती है | इसे एक ऐसे अतीन्द्रिय आँख के रूप में चित्रित किया जाता है जो दोनों आँखों के मध्य में है और बाहर की ओर न देख कर अंदर की ओर देख रहा हो ( याद करें शिव की तस्वीर ) |
       पुरुषों के अपेक्षा स्त्रियों का तीसरा नेत्र अधिक सक्रीय होता है इसीलिए स्त्रियाँ ज्यादा संवेदनशील , भावुक तथा ग्रहणशील प्रवृति की होती हैं | लेकिन ऐसा न समझें की पुरुषों का कम संवेदनशील होता है ये चक्र | एक प्रयोग करें अभी दोनों आँखें बंद कर लें और स्वयं या किसी दुसरे को  कहें की  आपके दोनों भ्रूमध्य के बिच ऊँगली लाये किन्तु स्पर्श बिलकुल न करे आप पायेंगे की बंद आँखों में भी ऊँगली की प्रतीति मह्शूश हो रही है |
       शेष अगले भाग में ........

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