Wednesday 27 May 2015

आज्ञा चक्र - 4

आप प्राय : तस्वीरों में आज्ञा चक्र का स्वरुप देखते होंगे | आज्ञा चक्र का प्रतीक है दो पंखुड़ियों वाला कमल | शास्त्रों के अनुसार इसका रंग पीला हल्का भूरा तथा स्लेटी सा है | कुछ का अनुभव है की यह चन्द्रमा या चांदी जैसा सफ़ेद है परन्तु वस्तुतः इसका रंग दिखाई नहीं देता | एक बात   स्मरण करा दूं रंगों के सम्बन्ध में आप धारणाएं बना कर ध्यान में प्रवेश न करें बल्कि आपकी जो अनुभूति हो वह सर्वोपरी है |
       बायीं पंखुड़ी पर हं तथा दायीं पंखुड़ी पर क्षं अंकित है | हं और क्षं चमकीले सफ़ेद रंग में हैं और ये शिव शक्ति के बीज मन्त्र हैं | एक चन्द्रमा या इडा नाडी का तथा दूसरा सूर्य या पिंगला नाडी का प्रतीक है |इस चक्र के निचे परस्पर तीन नाड़ियाँ  आकर मिलती हैं जिसका वर्णन मैं कर चुका हूँ |
       कमल के अंदर एक पूर्ण  वृत  है जो शून्य का प्रतीक है | वृत के अंदर एक त्रिकोण है जो  शक्ति की रचनात्मकता तथा प्रकटीकरण का प्रतिनिधित्व करता है | त्रिकोण के उपर एक काला शिवलिंगम है | इस लिंग का स्वरुप लैंगिक नहीं है जैसा की सभी सोचते हैं | यह आपके सूक्ष्म शरीर का प्रतीक है | तंत्र और गुह्य शास्त्रों के अनुसार सूक्ष्म शरीर आपके व्यक्तित्व का प्रतीक है |
       मूलाधार में लिंगम ध्रूमवर्णी तथा अस्पस्ट है | इसे ध्रूम लिंगम भी कहा जाता है और इसकी तुलना चेतना के उस स्तर से करते हैं जिस स्तर का हम नैसर्गिक जीवन बिता रहे होते हैं | इस समय हम क्या हैं और कौन हैं इसका ज्ञान नहीं होता है | आज्ञा चक्र में स्थित काले लिंगम को इतराख्या लिंगम कहते है | आज्ञा चक्र में हम क्या हैं इसका स्वरुप बोध होता है | सहस्त्रार में चेतना प्रकाशित रहती है इसलिए आज्ञा चक्र का लिंगम भी प्रकाशित रहती है |
       जब कोई मानसिक रूप से अविकसित व्यक्ति ध्यान करता है तो उसे शिवलिंगम धुंवे की तरह दिखाई देता है |  यह प्रतीक बार बार ध्यान में आता जाता रहता है | गहरे ध्यान में जब मन शांत रहता है तो लिंगम काला दिखाई देता है | इस काले लिंगम पर ध्यान करने से प्रकाशमान सूक्ष्म चेतना में ज्योतिर्लिंगम प्रकट होता है | इसलिए आज्ञा चक्र का काला लिंगम जीवन के उच्च अध्यात्मिक क्षेत्रो की कुंजी है |

       शिवलिंगम के उपर परंपरागत प्रतीक ॐ है | ॐ आज्ञा चक्र का प्रतीक एवं बीज मन्त्र है |  परम शिव आज्ञा चक्र के देवता हैं तथा वे एक प्रकाश की माला की तरह चमकते हैं | देवी है हांकिनी जिनके छ : मुख हैं तथा जो अनेक चन्द्रमा की भाँती दिखाई देती हैं | एक बात याद दिला दूं ये कोरी कल्पनाएँ नहीं हैं बल्कि जब आप ध्यान में प्रवेश करते हैं तो ये हकीकत हो जातीं हैं और इसी तरह का  वास्तविक अनुभव प्राप्त होता है |
       प्रत्येक चक्र की अपनी अपनी तन्मात्राए  , ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ होती हैं | आज्ञा चक्र की तन्मात्राओं ,ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों सभी का रूप मन है | यहाँ मन को सूक्ष्म माध्यमों से ज्ञान व संकेत प्राप्त होते हैं न कि उन इन्द्रियों से जो अन्य चक्रों के लिए ज्ञानेन्द्रिय का कार्य करती है | आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात अंतर्ज्ञानी की छटवीं इन्द्रिय क्रियाशील हो जाती है |  जिससे मन को ज्ञान व दिशा निर्देश मिलता है | ये इन्द्रियां मन की ज्ञानेन्द्रियाँ हैं | इसी तरह मन बिना सूक्ष्म शरीर के अच्छी तरह काम कर सकता है | मन को आज्ञा चक्र का कर्मेन्द्रिय माना जाता है | बिलकुल ध्यान देने योग्य बात आज्ञा चक्र के जागरण का माध्यम एकदम मानसिक है अत: तन्मात्रा भी मन है | इसलिए आप ये नहीं कह सकते की मन आपका शत्रु है बल्कि मन हीं आपका  परम मित्र है जिसके सही प्रयोग से आप परम को पा सकते हैं और परम को पाने के बाद  मन की समाप्ति हो जाती है | विशुधि चक्र के साथ आज्ञा चक्र द्वारा विज्ञानमय कोष का निर्माण होता है जिससे अतीन्द्रिय विकास प्रारम्भ होता है |
       जो इस जागे हुए चक्र पर ध्यान करते हैं उन्हें एक जलता हुआ लैंप उगते हुए सूर्य की भाँती दिखाई देता है | जागे हुए चक्र पर ध्यान करने से परकाया प्रवेश की शक्ति आ जाती है मनुष्य भविष्यद्रष्टा बन जता है | ऐसे व्यक्ति सारे शास्त्रों और पुराणों का ज्ञाता बन जाता है | अलग अलग चक्रों पर ध्यान करने से जो अनुभूतियाँ होती हैं वे सभी अनुभूतियाँ इस चक्र पर ध्यान करने से होती हैं |
       शेष अगले भाग में ................

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4 comments:

  1. this is really a great article

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  2. धन्यवाद जी

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  3. Aap ka bahut abhari hu mai , meri khud ki anubhuti hai .agya chakra ko maine dekha bilkul sahi mai aisa hi hai.this is true.
    dhanyawad.

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    1. आपका भी धन्यवाद

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