Sunday 28 October 2018

शक्तिपात और रोग उपचार


जब कोई व्यक्ति जो सिद्ध हो अपने पुरे जोर शोर से मन्त्र शक्ति के द्वारा किसी दुसरे व्यक्ति पर अपने शक्ति  को उडेलता है इसे हम अध्यात्म की भाषा में शक्तिपात  कहते हैं | कोई भी सिद्ध गुरु शक्तिपात कर सकता है | शक्तिपात में उड़ेले जाने वाली शक्ति की मात्रा शिष्य  या उस व्यक्ति के  सहन शक्ति या क्षमता पर निर्भर करता है | भारत में कई योग्य गुरुओं  के द्वारा शक्तिपात की घटना को अंजाम दिया गया है | रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानन्द पर शक्तिपात किया था | योगी कथामृत में भी परमहंस योगानन्द ने शक्तिपात के घटना का वर्णन किया है |
जब किसी शिष्य की अध्यात्मिक गति किसी कारण वश या प्रारब्ध के कर्मों के कारण रुक जाती है तो गुरु करुणा करते हुए शिष्य पर उसके अध्यात्मिक गति को सही राह पर लाने के लिए शक्तिपात करता है | कभी कभी गहन रोगों के चिकत्सा करने के लिए भी गुरु अपने शक्ति का इस्तेमाल करते हुए शक्तिपात करता है तथा शिष्य को रोग से मुक्त करता है | शक्तिपात के द्वारा रोगों से मुक्ति दी जा सकती है |
शक्तिपात किसी पर भी किया जा सकता है चाहे वह व्यक्ति शिष्य हो या साधारण आदमी इसके लिए शिष्य होना कोई जरूरी शर्त नहीं है |

शक्तिपात करने के तरीके
आमने सामने बिठा कर – इसमें गुरु अपने शिष्य को सामने बिठा देता है तथा शिष्य के सहस्त्रार चक्र या आज्ञा चक्र पर  अंगूठे से स्पर्श करता है | स्पर्श पाते हीं शिष्य  अद्वैत आनन्द में लीन हो जाता है | इस तरह का प्रयोग जिस शिष्य की अध्यात्मिक गति रुकी हुई हो उसके लिए ख़ास कर के किया जाता है |
तस्वीर के द्वारा – किसी व्यक्ति कोई आवश्यक नहीं की वह शिष्य हीं हो की तस्वीर सामने रख कर त्राटक एवं मन्त्र शक्ति के द्वारा तस्वीर के माध्यम से व्यक्ति पर शक्तिपात किया जाता है | इस तरह का शक्तिपात ख़ास कर रोगी व्यक्ति के लिए किया जाता है | ऐसे शक्तिपात करने से रोगी धीरे धीरे पूर्ण स्वस्थ हो जाता है |
आवाज़ सुन कर – किसी व्यक्ति के आवाज़ को सुन कर उसके आवाज़ के माध्यम से भी उस  शक्तिपात किया जा सकता है |
कल्पना में ध्यान के द्वारा – किसी भी व्यक्ति की एक काल्पनिक तस्वीर बना कर कोई आवश्यक नहीं की व्यक्ति गुरु से मिला हो या उसकी तस्वीर गुरु ने देखी  हो गुरु काल्पनिक तस्वीर बना कर गहन ध्यान की अवस्था में व्यक्ति पर शक्तिपात करता है |
कुछ मित्रों का आग्रह था की शक्तिपात पर भी कुछ लिखें मेरी जानकारी अनुभव  और ज्ञान के अनुसार मैंने उपरोक्त लेख लिखें हैं आप अपने अनुभवों की कसौटी पर इसे जाचें |

Thursday 27 September 2018

बहुत हीं शक्तिशाली ध्यान प्रयोग |


समस्त जीवन का आधार  क्या  है  ? पृथ्वी पर जीवन का आधार क्या है ?
विज्ञान कहता है समस्त पृथ्वी पर जीवन का आधार सूर्य है | सूर्य से हीं सारी  पृथ्वी तथा अन्य  अन्य  संचालित होते हैं यह सत्य है | फिलहाल हम विज्ञान की बात को हीं मानते  हैं | अध्यात्मिक जगत भी सूर्य को अत्यधिक महता देता है किन्तु समस्त जगत के कारण में अध्यात्म ईश्वरीय सता जिसे सनातन में ब्रह्म की उपमा दी गयी है उसे मानता है | समस्त जगत का कारण  ब्रह्म है जो सर्वत्र व्याप्त है | हालाकि विज्ञान भी इसे मानता है किन्तु अभी उहापोह की स्थिति है |
समस्त जीवन का कारण  सूर्य की रश्मियाँ हैं विज्ञान के अनुसार किन्तु सत्य इससे भी परे है खैर हम ध्यान पर आते हैं |
निचे वर्णित ध्यान प्रयोग भाव प्रधान है और  बहुत हीं शक्तिशाली है बहुत  हीं शक्तिशाली कहने से डरने की आवश्यकता  नहीं है इस ध्यान प्रयोग से नुक्सान कुछ भी होने  वाला नहीं है और लाभ यह तो आप कर के हीं देखें और बताएं | इस ध्यान को करने से समस्त रोगों में लाभ मिलेगा , अपनी ऊर्जा परम पर होगी , आत्मविश्वाश में गजब का फायदा मिलेगा | दिव्य ऊर्जा की अनुभूति होगी |
 लम्बे अभ्यास के बाद कई सिद्धियाँ भी प्रकट हो सकती हैं , यथा |

यह ध्यान किसी भी समय किया जा सकता है किन्तु सूर्योदय के पूर्व या सूर्योदय के समय करने पर अत्यधिक लाभ मिल सकता है |
प्रथम चरण
आराम से सुखासन में बैठ जाएँ | निचे कोई ऊनी , सूती  का आसन बिछा लें | रीढ़ की हड्डी सीधी कर लें तनी हुई नहीं |
आँखें बंद कर लें | दो चार लम्बी गहरी सांस लें और छोड़ दें | आहिस्ता आहिस्ता आराम से |
ध्यान को आज्ञा  चक्र पर लायें  | तीन से पांच मिनट तक |
अब ध्यान को  सर के चोटी पर ले जाएँ तीन से पांच मिनट तक ध्यान को सर के चोटी पर टिकाये  रखें |
अब सूर्य का ध्यान करें प्रकाश से युक्त सूर्य आपके सर पर चमक रहा है और सूर्य की रश्मियाँ ( किरणें ) आपके सर पर गिर रहीं हैं ऐसा भाव करें |
पन्द्रह से बीस मिनट तक ऐसा भाव करें |
दूसरा चरण
ध्यान को आज्ञा चक्र पर लायें तीन से पांच मिनट तक |
उसके बाद
ध्यान को नाभि ( मणिपुर चक्र ) के पास ले आयें |  दो मिनट तक ध्यान को नाभि पर टिकाने के बाद
कल्पना करें आपके नाभि क्षेत्र में एक उगते हुए  लाल सूर्य को देखें | इस उगते हुए लाल सूर्य से प्रकाश की किरणें निकल कर आपके सारे शरीर में फ़ैल रही है ऐसी कल्पना करें |
पन्द्रह से बीस मिनट तक ऐसी  कल्पना करें 
पुनः ध्यान को आज्ञा चक्र पर लायें दो से पांच मिनट तक |
इसके बाद आप ध्यान से निकल सकते हैं  |
यह प्रकाश की किरणें आपके सारे रोगों को दूर करेगी | आपमें आत्मविश्वाश को  बढ़ाएगी , आपमें आनन्द का संचार करेगी | और भी अनेकों लाभ पहुंचाएगी |
ॐ ॐ ॐ

चेतना प्रसारण


पुरे ब्रह्मांड में अपनी सकारात्मक ऊर्जा फैलाएं यह आपके   हाथ में हैं | हिमालय के हिम गुफाओं में बैठे अनेकों सूक्ष्म शरीर में अवस्थित संत ये काम करते हैं | और आप भी ये काम कर सकते हैं | ऐसा करने से सकारात्मकता और नकारात्मकता में बैलेंस बना रहता है | अगर आप अपनी सकारात्मकता ब्रह्मांड में फैलायेंगे तो  इसका लाभ आपको भी मिलेगा औरों को तो लाभ मिलेगा हीं |

बहुत हीं आसान उपाय है ऐसा करने का |
आराम से बैठ जाएँ | सुखासन में | रीढ़ की हड्डी सीधी हो,  तनी हुई नहीं |
निचे कोई आसन बिछा लें ऊनी या सूती कुछ भी |
आँखें बंद कर लें |
दो चार लम्बी गहरी साँसें लें और छोड़ दें | आराम से आहिस्ता आहिस्ता जोर लगाकर  नहीं |
अपने ध्यान को आज्ञा चक्र ( दोनों भौं के बीच में ) पर टिका दें तीन से  पांच मिनट तक |
पांच मिनट बाद ,
अपने ध्यान को सर के चोटी पर अपना ध्यान ले जाएँ |
दो से तीन मिनट तक वहां ( सर के चोटी पर ) ध्यान टिकाने के बाद ,
कल्पना करें पुरे ब्रह्माण्ड का , अन्तरिक्ष का इसमें अपनी पृथ्वी का तस्वीर भी देखें |
कल्पना करें एक पवित्र श्वेत ( सफ़ेद ) ईश्वरीय  प्रकाश पुरे ब्रह्माण्ड में फ़ैल रहा है , जिससे अपनी पृथ्वी भी ढकी जा रही है |
बीस से तीस मिनट तक इस कल्पना में डूबे  रहें |
पुन: ध्यान को आज्ञा चक्र पर लायें | तीन से पांच मिनट तक अपना ध्यान आज्ञा चक्र पर रखें |
फिर , अपना  समय लेते हुए अपना ध्यान खोल सकते हैं |
ईश्वरीय श्वेत प्रकाश की कल्पना करने उसमे डूबने पर आप कई बार रोमांचित हो सकते हैं |
यह साधारण सा ध्यान प्रयोग आपके जीवन में क्रान्ति ला सकती है | कर के तो देखें |
ॐ ॐ ॐ

निराशा के क्षणों में एक ध्यान प्रयोग करें |


जीवन में कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं जब निराशा के बादल छटने का नाम नहीं लेते ऐसे में अपना दृढ आत्मविश्वाश बनाये रखें और परमात्मा पर विश्वाश रखें | निराशा के बादल छंट जायेंगे चिंता न करें | फिर से सूरज उगेगा फिर से प्रकाश छाएगा जीवन में | मैं जानता हूँ  ये सब कहना आसान  है किन्तु जो वैसे समय को झेलता है वाही जानता है क्या बीत  रही है | फिर भी निराश हताश नहीं हुआ जा सकता जीवन में उम्मीद की किरण होनी चाहिए | बच्चे दौड़ते दौड़ते गिर जाते हैं फिर उठ कर दौड़ने लगते हैं सिर्फ माता की चुचकार सुन कर | वैसे हीं जीवन में हताश हों तो सब झाड पोछ कर उठ खड़े होइए फिर से जीवन की दौड़ में शामिल होइए | जब घोर निराशा का बादल छाया हो तो –
कहीं एकांत में बैठ जाएँ और मन हीं मन यह प्रश्न दुहरायें “ हे ईश्वर  क्या तुम मेरे साथ हो “ बार बार दुहरायें दस मिनट तक दुहराते रहें भीतर से हीं कुछ आवाज़ मिलेगा | एक अजीब शान्ति मह्शूश करेंगे आप | दिखने में यह प्रयोग साधारण है किन्तु आपके भीतर आशा का संचार कर सकता है फिर से जीवन दान दे सकता है यह प्रयोग |
एक ध्यान प्रयोग करें
आराम से सुखासन में बैठ जाएँ

आँखें बंद कर लें
सारा ध्यान साँसों पर हो
एक लम्बी गहरी साँस लें और छोड़ दें , पुनः एक लम्बी गहरी साँस लें और छोड़ दें कम से कम पांच सात बार करें यह |
अब ध्यान को छाती की पसलियों के बीच में ले जाएँ यहाँ अनाहत चक्र है | यहाँ ध्यान को केन्द्रित करें | हो सकता है हृदय की धडकन सुनाई दे अपना ध्यान यहीं केन्द्रित रखें | करीब बीस से तीस मिनट तक | इमानदारी से यह प्रयोग करेंगे तो कुछ न कुछ समाधान अवश्य मिलेगा |


एक ध्यान प्रयोग ( विशुद्धि चक्र पर )

आराम से सुखासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी हो |
दो चार लम्बी गहरी साँसें लें और छोड़ दें | आराम से आहिस्ता आहिस्ता |
आँखें बंद हों |
ध्यान को आज्ञा चक्र ( दोनों भौं के बीच में ) पर ले आयें |
तीन से पांच मिनट तक आज्ञा चक्र पर मन को ठहराए रहें |

अब  इसके बाद
ध्यान को विशुद्धि चक्र ( कंठ में एक हड्डी उभरी हुई है वहां पर ) पर ले आयें |
अब मन हीं मन हं ( HAM ) मन्त्र का उच्चारण करें | ध्यान रहे जाप मानसिक हो बिलकुल बोल कर नहीं |
20 से 25 मिनट तक कंठ  पर यानी विशुद्धि चक्र पर ध्यान को रखें |
पुनः ध्यान को आज्ञा चक्र पर ले आयें | दो मिनट तक ध्यान को आज्ञा चक्र पर रखें |
इसके बाद ध्यान से बाहर आ सकते हैं |
इस ध्यान प्रयोग के सतत अभ्यास से वाणी में मधुरता आती है | जो व्यक्ति संगीत का अभ्यास करते हैं उन्हें ये ध्यान प्रयोग अवश्य करना चाहिए | साधक को भूख प्यास पर विजय मिलने लगती है | ऐसा विशुद्धि चक्र के निकट स्थित कूर्म  नाडी के सक्रीय होने से होता है भूख प्यास पर विजय | विशुद्धि चक्र के निकट एक और केंद्र है जिसका कार्य एक रेडिओ की तरह होता है आम स्थिति में यह केंद्र सक्रीय नहीं होता किन्तु विशुद्धि चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से यह केंद्र सक्रीय होने लगता है | यह चक्र जब सक्रीय होने लगे तो आप दुसरे के मन की बात समझने लगते हैं | दूसरा क्या सोच रहा है आप जान सकते हैं किन्तु यह अवस्था लम्बे अभ्यास के बाद आता है |
देखने में यह प्रयोग साधारण है किन्तु इसका अभ्यास कर के  खुद इस प्रयोग की महिमा जान सकते हैं |
इति सत्यम ! इति शुभम | 

पहले सगुण ध्यान क्यों

काफी लोगों का यह प्रश्न होता है कि आप ध्यान की विधियों में कल्पना करने को क्यों कहते हैं जबकि ध्यान का मतलब तो शून्यता होता है । तो सुनो बाप मेरे ये हमारा मन बहुत चंचल और चतुर है इसको इसी के रास्ते ठिकाने लगाना पड़ता है । यह मन हमेशा दृश्य उतपन्न करता है सुख के दृश्य दुःख के दृश्य हमेशा गतिमान रहना मन का स्वभाव है । तो ध्यान के दरम्यान भी हम इस मन को दृश्य उत्पन्न करने को कहते हैं फर्क यह होता है कि तब मन स्वतन्त्र रूप से दृश्य नहीं उतपन्न करता तब हमारे हिसाब से दृश्य उतपन्न करता है ।

 हम जैसा कहते हैं वैसे दृश्य सामने आता है । अंत मे क्या होता है मन को जब तक उन दृश्य में खोना होता तब तक खोया रहता है फिर मन चकरा जाता है कि इसके बाद अब क्या यही घड़ी महत्वपूर्ण होती है मन को जब कुछ समझ मे नहीं आता तो क्षणिक शून्यता में आ जाता है । इसलिए ध्यान के समय हर क्षण सजग रहना चाहिए और इस क्षणिक शून्यता की स्थिति को पहचानना चाहिए । जैसे जैसे हम ध्यान में इस शून्यता को पहचानते हैं यह शून्यता क्षणिक से थोड़े थोड़े समय के लिए बढ़ता जाता है । यह शून्यता नैनो सेकेंड में होता है अगर हम ध्यान के समय सजग नहीं होते हैं तो यह शून्यता पकड़ में नहीं आएगा । इसलिए प्रारम्भ में कोई निर्देशित करता हो तो उसके निर्देश के हिसाब से ध्यान करना होता है । किसी के निर्देशन में ध्यान करने से इतनी सजगता बनी रहती है की हमारा ध्यान निर्देश देने वाले के आवाज़ पर स्थिर होता है और हम आवाज़ के प्रति सजग होते हैं । इसलिए ध्यान का शुरुआत अगर किसी के निर्देशन में हो तो अति उत्तम । तो मैं बात कर रहा था शून्यता की । ध्यान में कल्पना के द्वारा मन को अपने अनुकूल चलाया जाता है फिर मन क्षणिक शून्यता में आता है । यह सगुण से निर्गुण में रूप से अरूप में उतरना हुआ । सीधे निर्गुण या अरूप में उतरना बहुत कठिन है । कबीर दास निर्गुण उपासक थे किंतु राम नाम का नाव उन्हें भी पकड़ना पड़ा ।
तो ये कुछ बाते थी जो आपलोगों से शेयर किया ।
हो सकता है यह पोस्ट एक बार पढ़ने से समझ मे न आये तब दो तीन बार सजगता के साथ पढियेगा ।
ध्यान में आप सबों की गति हो ।
ॐ ॐ ॐ