Wednesday 22 February 2017

रहस्यमयी हिमालय 14 Secret Himalaya 14

वह व्यक्ति आँखें बंद करके गहन चिन्तन में चला गया | बचपन से अभी तक की कुछ स्मृतियाँ मानस पटल पर उभरने लगी | वह अपने भीतर हीं अनुसंधान करने लगा | वह टटोलने की कोशिश करने लगा कि बचपन से ले कर अभी तक कौन सी चीज उसमे नहीं बदली है |
घंटों अंदर टटोलने के बाद सहसा उसके मन में एक बात कौंधी | अरे ! अपने भीतर यह टटोल कौन रहा है | बचपन से ले कर आज तक की घटनाओं को मन के पटल पर देख कौन रहा है | अरे ! यह तो मैं ( अहंकार और मन युक्त नहीं ) हूँ | मैं हीं तो हर क्षण मौजूद हूँ साक्षी बन के सारी घटनाओं का | जीवन के उतार चढाव को यह मैं हीं देखता रहा | यह मैं मेरे सुख का भी गवाह है और मेरे दुखों का भी | जब तक मेरा शरीर जागृत रहता हूँ यही हर क्षण मौजूद रहता है | यह बदलता नहीं | यह सब कुछ देखता रहता है किन्तु इसे मैं ( अहंकार और मन युक्त ) देख नहीं पाता | यही तो है अपरिवर्तनशील | सुखों और दुखों , जीवन के प्रत्येक घटनाओं का यही तो गवाह है | यह देखता रहता है बिना प्रभावित हुए भावनाओं या किसी अन्य गुणों के | ( यह एक ध्यान प्रयोग भी है इसे करें )
वह प्रसन्न था | चिन्तन चल रहा था |

कुछ देर बाद उसकी आँखें खुली | उसने योगी बाबा पर दृष्टिपात किया प्रसन्नता पूर्वक मानों कोई खजाना उसके हाथ लगा हों |
महायोगी अभेदानन्द भी ध्यान से बाहर आ गये | और मुस्कुराते हुए उसे देखा | बिना उसके कुछ बोले हीं योगी बाबा ने कहा
हाँ तुम ठीक हो यह तुम्हारे अंदर की शास्वतता हीं है जो कभी नहीं बदलती जिसे भाषा की अभाव में अभी भी मैं कह रहे हो वही कभी नहीं बदलता | किन्तु यह अहसास जो तुम कर रहे हो यह बिलकुल छोटा अहसास है इस कड़ी को पकड कर तुम उस विराट में प्रवेश कर सकते हो | यह अहसास तो सिर्फ समुद्र किनारे की सीपियाँ हैं असली रत्नों का संसार तो आगे की यात्रा तय करने पर प्राप्त होगा |”
उसकी आँखें महायोगी अभेदानन्द के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रही थी |
तभी गुफा के अंदर बारह तेरह वर्ष के एक तरुण ने प्रवेश किया |
योगी बाबा ने उससे मुखातिब होते हुए उससे पूछा हाँ बटुकनाथ कहो कैसे आना हुआ |”
उस तरुण का नाम बटुकनाथ था उसने कहा कुछ नहीं प्रभु वह आपको पूज्य गुरु स्वामी ब्रह्मानन्द ने याद किया है |”
हाँ वह तो महायोगी ब्रह्मानन्द के मानसिक तरंगों से मुझे ये सूचना मिल चुकी है किन्तु तुम यहाँ ! योगी बाबा ने कहा
प्रभु आपके दर्शनों की अभिलाषा भी हो रही थी सोचा चल कर दर्शन कर लूं |” बटुकनाथ के ये शब्द निकलते हुए उसकी आँखें गीली थी |
किन्तु कुछ हीं समयोपरांत मैं तो स्वयं महा योगी ब्रह्मानन्द के समक्ष उपस्थित होने हीं वाला था |
देखो तुम्हें आकाश गमन विद्या सिद्ध हो चूका है इसका ये मतलब नहीं कि तुम मात्र मानसिक आनन्द और जिज्ञासा वश इसका उपयोग करो |”
योगी बाबा ने थोड़ी कठोरता से मीठी झिडकी लगाईं बटुकनाथ नामक उस तरुण सन्यासी को |
योगी बाबा ने उस व्यक्ति के तरफ उन्मुख होते हुए कहा
यह तरुण साधक बटुकनाथ है | आठ वर्ष की उम्र में यह मुझे मिला था हिमालय के जंगलों में | यह राह भटक कर वीरान जंगल में खो चूका था | क्रन्दन करते हुए अवस्था में मैंने इसे जंगलों में पाया था | इसके माता पिता नहीं हैं | अपने जीवन के पांच वर्षों में इसने काफी साधनाएं की हैं | बटुक भैरव की इसपे बहुत अधिक कृपा है इसलिए इसका नाम बटुक नाथ रख दिया गया |
चलो चलते हैं |”

योगी बाबा ने उस व्यक्ति के तरफ उन्मुख होते हुए कहा

रहस्यमयी हिमालय 13

योगी बाबा अपने आसन पर विराजमान हो चुके थे | वह व्यक्ति अभी भी अपने घर परिवार सगे सम्बन्धियों के बीच  कहीं खोया हुआ था |
महा योगी अभेदानन्द ने उसको संबोधित करते हुए कहा “ अभी भी घर परिवार के बीच  में हीं हो |”
वह मौन रह गया योगी बाबा को अपलक निहार रहा था |
“ अच्छा बताओ तुम्हें अपने घर परिवार की याद क्यों आई और अभी भी उसमे खोये हुए हो | बता सकते हो इसका कारण |”
उसने कहा “ उनसे जुडी स्मृतियों के कारण मोह भी इसका कदाचित कारण है प्रभु |”
योगी बाबा ने कहा “ ये सही है कि तुम जिनके साथ अच्छे बुरे दिन गुजारते हो उनके साथ की वो स्मृतियाँ तुम्हें उदास या खुश  कर जाती हैं | अपने प्रियों का याद आना उनके प्रेम  और मोह दोनों के कारण होता है | तुम अगर मनन करोगे तो पाओगे तुम्हारा मन जो उदास है सिर्फ तुम्हारे मानस पटल पर चल रहे भूत काल के स्मृति छवियीओं के कारण , जबकि उनका वजूद हैं हीं नहीं | तुम क्या याद कर के दुखी हो रहे वही जिनका वजूद हीं  नहीं |”
बात उसके पले नहीं आ रही थी वह उन स्मृतियों में हीं खोया हुआ था |
“ अच्छा बताओ ये समय जो गुजर रहा है इसे कैसे  परिभाषित करोगे |”
“ वर्तमान समय |” उसने कहा
“किन्तु जिस क्षण में तुमने जबाब दिया वह तो देखते हीं देखते भूत काल हो गया ! समय के सूक्ष्मता को पहचान कर तुम आत्मा तक पहुँच सकते हो | समय अपरिवर्तन शील है बदलती सिर्फ बाहरी  परिस्थियाँ  है | सूर्य , चन्द्र , पृथ्वी सभी गतिशील एवं परिवर्तित होते रहते हैं इनकी गतियों से हीं मनुष्य समय का निर्धारण करता है | समय स्थिर और स्थिर है |  ”
वह ध्यान पूर्वक महायोगी के कथनों को समझने की कोशिश कर रहा था |
“हमारे मन का स्वभाव है या तो यह भूत काल में रहेगा या फिर भविष्य काल में जबकि मौजूद सिर्फ वर्तमान काल हीं है यह आश्चर्य का विषय है | किन्तु यह मन वर्तमान काल में ठहरता हीं नहीं | वर्तमान काल मतलब स्थिर समय | स्थिर समय में परमात्मा से संयोग का अवसर होता है अगर मन वर्तमान में ठहर जाए | समय के सूक्ष्म आयाम को पहचान कर इसमें ठहर जाओ |”
वह सिर्फ योगी बाबा के रूप को निहार रहा था रूप निहारने के क्रम में उसका मन कुछ क्षणों के लिए वर्तमान में ठहर गया था | परिणामस्वरूप आंनद ने उसके मष्तिष्क में कुछ क्षणों के लिए डेरा जमाया  |

“ अच्छा ये बताओ तुमने कभी ये गौर किया कि बचपन से ले कर तुममे अभी तक कौन सी वस्तु कभी नहीं बदला जरा मनन करने के बाद जबाब दो |” 

रहस्यमयी हिमालय 12

शाम ढल चुकी थी रात्री बाँहें पसार  चुकी थी |
नौजवान योगी सच्चिदानन्द ध्यान में मग्न थे | वह व्यक्ति गुफा के दिवार का सहारा ले कर पीठ के बल उठंग कर बैठा हुआ था | उसकी आँखें कहीं खोई हुई थी | देखने पर साफ़ पता चलता था कि वह उस गुफा में मौजूद हो कर भी मौजूद नहीं था | उसके चेहरे पर उदासी साफ़ झलक रही थी |
इसी बीच महायोगी अभेदानन्द ने ध्यान से निकल कर  अपनी आँखें खोली | उस व्यक्ति के चेहरे पर अपनी नजर टिकाते हुए उससे पूछा “ मैं देख रहा हूँ तुम यहाँ हो कर भी यहाँ  मौजूद नहीं हो |”
उसने सकपकाते हुए  कहा “ नहीं बाबा जी यहीं तो हूँ |”
“ मैं देख रहा हूँ तुम सशरीर यहाँ उपस्थित हो कर भी तुम अपने घर में अपने परिवार के बीच मौजूद हो | लगता है तुम्हें अपना घर बार , सगे सम्बन्धी , परिवार याद आ रहें हैं |”
उसकी आँखों से दो बूँदें लुढक आई | और मौन रह गया |
योगी बाबा ने उसे संबोधित करते हुए कहा “घर जाना चाहते हो |”
“नहीं नहीं बाबा जी मैं यहाँ खुश हूँ | अध्यात्मिक जीवन में मेरी उन्नति हो आपकी कृपा से  ऐसी आकांक्षा रखता हूँ |”
“ अच्छा आओ तुम्हें तुम्हारे घर पर ले चलूं |” योगी बाबा ने कहा
योगी अभेदानन्द ने उसके हाथ पकडे और उससे कहा “ आँखें बंद कर लो क्योंकि अब जिस गति से हम विचरण करेंगे वह विज्ञान के द्वारा भी किसी वाहन ने नहीं प्राप्त किया है | जब मैं कहूँ तभी आँखें खोलना |”
उसने अपनी आँखें बंद कर ली महायोगी अभेदानन्द ने उसका हाथ पकड़ा और वे दोनों सशरीर उसके घर के सामने उपस्थित थे |
योगी बाबा ने कहा “ आँखें खोलो|” 
उसके तो मारे प्रसन्नता के चेहरा खिल गया |
महायोगी ने कहा “ जाओ घर से हो आओ मैं तुम्हारा इन्तजार करूँगा | जब सभी से मिलना हो जाएगा तब मुझे याद करना मैं तुम्हारे  पास आ जाऊँगा  |”
“ आप मेरे घर नहीं आयेंगे |” उसने पूछा
“ अभी मेरा गृहस्ततों के घर में प्रवेश करना वर्जित है |” योगी बाबा ने कहा
अब उसकी तन्द्रा टूटी | उसने पूछा तो क्या हम सशरीर यहाँ मौजूद हैं क्या ये हम दोनों का सूक्ष्म शरीर नहीं है |”
योगी बाबा ने कहा “ हाँ हम सशरीर यहाँ मौजूद हैं | यह हम दोनों का भौतिक शरीर हीं है | योगी चाहे तो अपने साथ कई व्यक्तियों को अपनी मदद से जहाँ चाहें वहां पहुंचा सकते हैं सशरीर |”
अब उसके सामने एक नया  रहस्य मुंह बाए खड़ा था |
योगी बाबा ने कहा “ जाओ |”
वह अपने घर में प्रवेश किया पहले तो उसके परिवार वाले आश्चर्य से भर गये | अभी रात्री के समय ये यहाँ कैसे उपस्थित हो गया किन्तु ये भूल कर उसके परिवार वाले भावुक हो गये उसे देख कर | भावुक वह भी हो चला |
उसकी वृद्ध माँ ने उससे  कहा
“ बेटा तुम तो छुटियाँ गुजारने गये थे हिमालय की तरफ तुम्हारे साथ गये सभी लोग वापस आ गयें किन्तु तुम क्यों वापस नहीं आये | तुम्हारे मित्रगण कह रहे थे किसी साधू के पास तुम ठहरे हुए थे | खैर चलो अब वापस आ गये हो अपना काम धंधा संभालो |”
उसने अपनी माँ से कहा “ माँ मैं अब यहाँ नहीं रह पाऊंगा मुझे जीवन के ढेर सारे रहस्य जानने हैं और परमपिता परमात्मा की कृपा से मुझे बहुत हीं सिद्ध संत भी मिल गये हैं | उन बाबा जी कृपा हुई तो मैं हमेशा तुम लोगों के सम्पर्क में रहूँगा | मेरी चिंता न करना |”
उसकी माँ यह सुन कर रोने लगी | उसने बार बार चुप कराने की कोशिश की किन्तु वह देर तक रोती रही और वह अपनी माँ को कुतुहुलता से देखता रहा |
अपने परिवार के लोगों के द्वारा  बार बार जाने से  मना करने के बाद भी जब वह नहीं माना तब अंतत: उसकी माँ ने कहा “ जा बेटे जिसमे तेरी ख़ुशी “| ( अपने संतान के सुख के आगे माताएं हमेसा नतमस्तक हुईं हैं इतिहास गवाह है और यह अकाट्य सत्य है | माताओं ने  अपनी ख़ुशी की परवाह कभी नहीं की संतानों के आगे इसलिए भगवान के बाद का स्थान माँ का है  )



कुछ घंटे अपने परिवार के बीच  गुजारने के बाद  वह निकल पड़ा घर से | अब उसका मन जीवन के रहस्यों को समझना चाहता था |
घर से निकलने के बाद वह अपने मुहल्ले के नुक्कड़ पर आ गया था | वहां कई दुकानें थी चाय आदि के होटल भी जहाँ वह कभी दोस्तों के साथ चाय वगैरह पिया करता था | अभी  ज्यादा रात्री नहीं गुजरी थी | दुकानों पर अभी भी चहल पहल मौजूद थी | चाय की दूकान पर वह देखा उसके कई मित्र बैठ कर गप्प ठहाका लगा रहे थे | वह उनके बीच चला गया | उसके सभी मित्र उसे देख कर हतप्रभ रह गये | खुश भी हुए | उन मित्रों को यह पता था कि वह कहाँ था इतने दिन | उनमे से एक मित्र ने उससे पूछा
“ अब आ गये हो तुम जहाँ काम करते थे वहां के  मालिक को हमने मना कर रखा है वह इस बात पर राजी है कि अगर वह आ गया तो उसे काम पर रख लेंगे | कल चले जाना उसके पास |”
उसने कहा “ तुम मित्रों का बहुत बहुत अहसानमन्द हूँ मैं जो तुमलोगों ने मेरे बारे में सोचा किन्तु अब मेरे जीवन का कुछ और उदेश्य है | मैं ज्यदा देर यहाँ तुम लोगों के साथ नहीं रुक पाऊंगा मैं वहीँ जा रहा हूँ हिमालय के बीच |”
“तो तुमने पका निर्णय कर लिया है |” उसके एक मित्र ने पूछा
“हाँ ” कह कर वह  योगी बाबा का स्मरण करने लगा |
उसने सामने से देखा योगी बाबा चले आ रहें हैं | उसने अपने मित्रों से कहा “देखो सामने मेरे गुरु मेरे भगवान  चले आ रहें हैं |”
किन्तु उसके मित्रों को कोई सामने दिखाई नहीं दे रहा था | वह उनके बीच से निकल कर योगी बाबा के नजदीक चला गया |
योगी बाबा ने पूछा “ तो चलें |”
ऐसा कह कर योगी बाबा ने उसके हाथ पकड लिए और आँखें बंद करने को कहा |

दोनों पुन : गुफा में मौजूद थे |

Saturday 4 February 2017

Rahasyamayi Himalaya ( Audio Video ) रहस्यमयी हिमालय ( ऑडियो विडिओ )

अभी तक आपने रहस्यमयी हिमालय श्रीन्खला पढ़ा आगे की कड़ियाँ भी जल्द प्रकाशित की जायेगी |
लीजिये अब रहस्यमयी हिमालय श्रीन्खला सुनें Youtube पर