Wednesday 22 February 2017

रहस्यमयी हिमालय 12

शाम ढल चुकी थी रात्री बाँहें पसार  चुकी थी |
नौजवान योगी सच्चिदानन्द ध्यान में मग्न थे | वह व्यक्ति गुफा के दिवार का सहारा ले कर पीठ के बल उठंग कर बैठा हुआ था | उसकी आँखें कहीं खोई हुई थी | देखने पर साफ़ पता चलता था कि वह उस गुफा में मौजूद हो कर भी मौजूद नहीं था | उसके चेहरे पर उदासी साफ़ झलक रही थी |
इसी बीच महायोगी अभेदानन्द ने ध्यान से निकल कर  अपनी आँखें खोली | उस व्यक्ति के चेहरे पर अपनी नजर टिकाते हुए उससे पूछा “ मैं देख रहा हूँ तुम यहाँ हो कर भी यहाँ  मौजूद नहीं हो |”
उसने सकपकाते हुए  कहा “ नहीं बाबा जी यहीं तो हूँ |”
“ मैं देख रहा हूँ तुम सशरीर यहाँ उपस्थित हो कर भी तुम अपने घर में अपने परिवार के बीच मौजूद हो | लगता है तुम्हें अपना घर बार , सगे सम्बन्धी , परिवार याद आ रहें हैं |”
उसकी आँखों से दो बूँदें लुढक आई | और मौन रह गया |
योगी बाबा ने उसे संबोधित करते हुए कहा “घर जाना चाहते हो |”
“नहीं नहीं बाबा जी मैं यहाँ खुश हूँ | अध्यात्मिक जीवन में मेरी उन्नति हो आपकी कृपा से  ऐसी आकांक्षा रखता हूँ |”
“ अच्छा आओ तुम्हें तुम्हारे घर पर ले चलूं |” योगी बाबा ने कहा
योगी अभेदानन्द ने उसके हाथ पकडे और उससे कहा “ आँखें बंद कर लो क्योंकि अब जिस गति से हम विचरण करेंगे वह विज्ञान के द्वारा भी किसी वाहन ने नहीं प्राप्त किया है | जब मैं कहूँ तभी आँखें खोलना |”
उसने अपनी आँखें बंद कर ली महायोगी अभेदानन्द ने उसका हाथ पकड़ा और वे दोनों सशरीर उसके घर के सामने उपस्थित थे |
योगी बाबा ने कहा “ आँखें खोलो|” 
उसके तो मारे प्रसन्नता के चेहरा खिल गया |
महायोगी ने कहा “ जाओ घर से हो आओ मैं तुम्हारा इन्तजार करूँगा | जब सभी से मिलना हो जाएगा तब मुझे याद करना मैं तुम्हारे  पास आ जाऊँगा  |”
“ आप मेरे घर नहीं आयेंगे |” उसने पूछा
“ अभी मेरा गृहस्ततों के घर में प्रवेश करना वर्जित है |” योगी बाबा ने कहा
अब उसकी तन्द्रा टूटी | उसने पूछा तो क्या हम सशरीर यहाँ मौजूद हैं क्या ये हम दोनों का सूक्ष्म शरीर नहीं है |”
योगी बाबा ने कहा “ हाँ हम सशरीर यहाँ मौजूद हैं | यह हम दोनों का भौतिक शरीर हीं है | योगी चाहे तो अपने साथ कई व्यक्तियों को अपनी मदद से जहाँ चाहें वहां पहुंचा सकते हैं सशरीर |”
अब उसके सामने एक नया  रहस्य मुंह बाए खड़ा था |
योगी बाबा ने कहा “ जाओ |”
वह अपने घर में प्रवेश किया पहले तो उसके परिवार वाले आश्चर्य से भर गये | अभी रात्री के समय ये यहाँ कैसे उपस्थित हो गया किन्तु ये भूल कर उसके परिवार वाले भावुक हो गये उसे देख कर | भावुक वह भी हो चला |
उसकी वृद्ध माँ ने उससे  कहा
“ बेटा तुम तो छुटियाँ गुजारने गये थे हिमालय की तरफ तुम्हारे साथ गये सभी लोग वापस आ गयें किन्तु तुम क्यों वापस नहीं आये | तुम्हारे मित्रगण कह रहे थे किसी साधू के पास तुम ठहरे हुए थे | खैर चलो अब वापस आ गये हो अपना काम धंधा संभालो |”
उसने अपनी माँ से कहा “ माँ मैं अब यहाँ नहीं रह पाऊंगा मुझे जीवन के ढेर सारे रहस्य जानने हैं और परमपिता परमात्मा की कृपा से मुझे बहुत हीं सिद्ध संत भी मिल गये हैं | उन बाबा जी कृपा हुई तो मैं हमेशा तुम लोगों के सम्पर्क में रहूँगा | मेरी चिंता न करना |”
उसकी माँ यह सुन कर रोने लगी | उसने बार बार चुप कराने की कोशिश की किन्तु वह देर तक रोती रही और वह अपनी माँ को कुतुहुलता से देखता रहा |
अपने परिवार के लोगों के द्वारा  बार बार जाने से  मना करने के बाद भी जब वह नहीं माना तब अंतत: उसकी माँ ने कहा “ जा बेटे जिसमे तेरी ख़ुशी “| ( अपने संतान के सुख के आगे माताएं हमेसा नतमस्तक हुईं हैं इतिहास गवाह है और यह अकाट्य सत्य है | माताओं ने  अपनी ख़ुशी की परवाह कभी नहीं की संतानों के आगे इसलिए भगवान के बाद का स्थान माँ का है  )



कुछ घंटे अपने परिवार के बीच  गुजारने के बाद  वह निकल पड़ा घर से | अब उसका मन जीवन के रहस्यों को समझना चाहता था |
घर से निकलने के बाद वह अपने मुहल्ले के नुक्कड़ पर आ गया था | वहां कई दुकानें थी चाय आदि के होटल भी जहाँ वह कभी दोस्तों के साथ चाय वगैरह पिया करता था | अभी  ज्यादा रात्री नहीं गुजरी थी | दुकानों पर अभी भी चहल पहल मौजूद थी | चाय की दूकान पर वह देखा उसके कई मित्र बैठ कर गप्प ठहाका लगा रहे थे | वह उनके बीच चला गया | उसके सभी मित्र उसे देख कर हतप्रभ रह गये | खुश भी हुए | उन मित्रों को यह पता था कि वह कहाँ था इतने दिन | उनमे से एक मित्र ने उससे पूछा
“ अब आ गये हो तुम जहाँ काम करते थे वहां के  मालिक को हमने मना कर रखा है वह इस बात पर राजी है कि अगर वह आ गया तो उसे काम पर रख लेंगे | कल चले जाना उसके पास |”
उसने कहा “ तुम मित्रों का बहुत बहुत अहसानमन्द हूँ मैं जो तुमलोगों ने मेरे बारे में सोचा किन्तु अब मेरे जीवन का कुछ और उदेश्य है | मैं ज्यदा देर यहाँ तुम लोगों के साथ नहीं रुक पाऊंगा मैं वहीँ जा रहा हूँ हिमालय के बीच |”
“तो तुमने पका निर्णय कर लिया है |” उसके एक मित्र ने पूछा
“हाँ ” कह कर वह  योगी बाबा का स्मरण करने लगा |
उसने सामने से देखा योगी बाबा चले आ रहें हैं | उसने अपने मित्रों से कहा “देखो सामने मेरे गुरु मेरे भगवान  चले आ रहें हैं |”
किन्तु उसके मित्रों को कोई सामने दिखाई नहीं दे रहा था | वह उनके बीच से निकल कर योगी बाबा के नजदीक चला गया |
योगी बाबा ने पूछा “ तो चलें |”
ऐसा कह कर योगी बाबा ने उसके हाथ पकड लिए और आँखें बंद करने को कहा |

दोनों पुन : गुफा में मौजूद थे |

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