Tuesday 2 June 2015

आज्ञा चक्र -6 ( अंतिम भाग )

चक्रों के जागरण के पूर्व हमारी स्थिति भ्रमित रहती है | आसक्ति , द्वेष और इर्ष्या , दुःख और सुख , जीत और हार तथा और भी अनेक क्षेत्रों में हमारे दृष्टिकोण दोषपूर्ण होता है तथा मान्यताएं गलत होती है | यद्धपि आसक्ति उपर से दिखाई नहीं देती फिर भी वह हमारे भीतर है | विश्वाश करें हमारा मन एक सिमित दायरे में कार्य कर रहा है और हम उससे परे  नहीं हो सकते | जिस प्रकार रात्री में हम एक स्वप्न देखते हैं और स्वप्न में होने वाला अनुभव भी अपनी मन:स्थिति से सम्बन्धित है ठीक उसी तरह हम दिन में भी स्वप्न देख रहे हैं और यह भी अपने वर्तमान मन:स्थिति से सम्बन्धित है   | ठीक उसी प्रकार जब आज्ञा चक्र का जागरण होता है तो हम स्वप्नावस्था से जागृत अवस्था में आते हैं | तब  इस वर्तमान जीवन की वास्तविकता  और कारण तथा प्रभाव के बीच के सम्बन्ध को समझने लगते हैं |

अपने जीवन के सम्बन्ध में कारण और प्रभाव के नियम को समझना बहुत हीं आवश्यक है , अन्यथा हम निराश होने लगते हैं तथा जीवन की दुखद घटनाओं के प्रति मन दुखी होने लगता है | मान  लें एक बच्चे का जन्म होता है और तुरंत उसकी मृत्यु हो जाती है | अब सोचे ऐसा क्यूँ हुआ यह पहेली प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति के दिमाग में आएगी है की नहीं ! यदि जन्म के तुरंत बाद  बच्चे को मरना हीं था तो बच्चे ने जन्म क्यों लिया ? आप इस तथ्य को तभी समझ सकते हैं जब आप कारण और प्रभाव के नियमों को समझते हैं |
कारण और प्रभाव तुरंत  होने वाली घटनाएँ नहीं है , प्रत्येक कार्य कारण और प्रभाव दोनों हैं |यह वर्तमान जीवन एक प्रभाव है लेकिन इसका कारण क्या था ? आपको इसे खोजना है , तभी आप कारण और प्रभाव के बीच के सम्बन्ध को समझ सकते हैं | आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात हीं इन नियमों को जाना जा सकता है | उसके बाद  जीवन के प्रति विचारधारा तथा दार्शनिक दृष्टिकोण बदल जाता हैं  | तब किसी भी घटना से व्यक्ति दुष्प्रभावित नहीं होता और न हीं जीवन की आवंछित घटनाएँ उसे परेशान करती हैं | जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति सहज रूप से भाग लेता है परन्तु वह मात्र द्रष्टा हीं रह जाता है | जीवन एक तेज़ करेंट की तरह बहता रहता है और व्यक्ति उसके धरा के प्रति समर्पित हो कर बहता चला जाता है ||
एक बार आज्ञा चक्र के जागरण के बाद सहस्त्रार तक पहुंचना कठिन नहीं होता | ठीक उसी तरह जैसे आप दिल्ली पहुँच गयें फिर इंडिया गेट पहुंचना आपके लिए कठिन नहीं होगा | यहाँ आज्ञा चक्र को दिल्ली समझें तथा सहस्त्रार  को इंडिया गेट | इसी कारण वश मैंने आज्ञा चक्र पर इतनी श्रीन्ख्लायें प्रस्तुत की है ताकि आज्ञा चक्र के महत्व को समझा जाए | किसी और चक्र से शुरुआत के वनिस्पत आज्ञा चक्र से शुरुआत करना ज्यादा आसान और फलदायी होगा |
इति शुभ !
आगे  बिंदु  पर एक दो लेख  होगा  !
फिर  
आगे आज्ञा चक्र सम्बन्धित सरल  ध्यान प्रयोग  प्रस्तुत करूँगा कुछ लिखित में तथा कुछ Mp3 फोर्मेट में इसलिए ब्लॉग पर निरंतर बने रहें |