Saturday 30 May 2015

आज्ञा चक्र – 5

आज्ञा प्रमुख रूप से मन का चक्र है जो चेतना के उच्च अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है | जब आप किसी चक्र पर ध्यान करते हैं चाहे मूलाधार , स्वधिस्थान या मणिपुर या फिर किसी लक्ष्य पर तब आज्ञा चक्र अवश्य प्रभावित होता है | ये सत्य है कि यह प्रभाव एकाग्रता के स्तर पर कम या ज्यादा हो सकता है | हमारे मानसदर्शन या स्वप्न में जो भी हमें दिखाई पड़ता है उसका माध्यम आज्ञा चक्र हीं है कैसे ! इस कैसे का  जबाब आप पर छोड़ता हूँ ताकि अगर आप इस स्तर पर प्रयासरत हैं तो इस कैसे प्रश्न के उतर में आपको बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है आवश्यकता मनन करने की है इसलिए ढूंढें जबाब | यदि आप खाते , सोते  या बात करते हुए सजग ( Aware ) नहीं हैं तो आपका आज्ञा चक्र जागृत नहीं है | किन्तु अगर आप बात कर रहें हैं और आपको मालूम है कि आप बात कर रहें हैं तो यह सजगता आपके  आज्ञा चक्र के कारण है   |  
       जब आज्ञा चक्र विकसित हो जाता है तब आपको वगैर इन्द्रियों ( पञ्च इन्द्रियां यथा आँख , नाक , कान , जिह्वा तथा त्वचा ) के हीं ज्ञान प्राप्त होने लगता है | क्या ये काल्पनिक बात है ! एक प्रयोग करें आँखें बंद कर लें और किसी वस्तु , व्यक्ति या स्थान की कल्पना करें कल्पना में ये चीजें सजीव हो जाती हैं और इनके दर्शन  होने लगते हैं , अब आप टिप्पणी में बताएं कि ये वस्तुएं जिनकी आपने कल्पना की किस इन्द्रिय के द्वारा दिखाई दिया अवश्य बताएं |  सामान्यतया सभी ज्ञान हमारे मष्तिष्क में इन्द्रियों के माध्यम से पहुंचतें हैं और वहां संग्रहित रहते हैं , संग्रहित मस्तिष्क में  अवश्य रहते हैं किन्तु इनका दिखाई देना कैसे संभव हुआ जबकि देखने के लिए आँखें आवश्यक हैं , किन्तु आपने तो अपनी आँखें बंद कर के कल्पना की है है न मजेदार बात क्या आपका ध्यान कभी इस ओर गया था |
       आज्ञा चक्र अगर क्रियाशील हो तब मान  लें की आकाश में बादल घिरे हें हैं और आप ये कह सकते हैं कि बारिश होगी किन्तु अगर आकाश में बादल मौजूद न हो और आप ये निश्चयपूर्वक  कह दें की थोड़ी देर में बारिश होगी और बारिश हो  जाए इसका मतलब यह हुआ कि आपका आज्ञा चक्र क्रियाशील है | यहाँ मैं वैज्ञानिक आधार पर मौसम की भविष्यवाणी की बात नहीं कर रहा |

       आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात मन की चंचलता समाप्त हो जाती है और बुध्धि शुद्ध हो जाती है  | आसक्ति जो अज्ञान और भेद का कारण है , समाप्त हो जाती है तथा संकल्प शक्ति बहुत बढ़ जाती है | यदि व्यक्तिगत धर्म के अनुसार कोई मानसिक संकल्प हो तो वह पूरा हो जाता है |
       आज्ञा ऐसा केंद्र  है जहाँ व्यक्ति मन तथा शरीर के अंदर घट रही प्रत्येक घटना सहित सभी अनुभवों को द्रष्टा भाव से देखता रहता है | यहाँ व्यक्ति के सजगता का इस तरह से विकास होता है कि उसमे दृश्य जगत के प्रत्येक छिपे हुए रहस्यों को जान सकने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है | जब आज्ञा चक्र का जागरण होने लगता है तब प्रत्येक प्रतीक का अर्थ एवं महत्व समझ में आने लगता है  |
       यह अतीन्द्रिय अनुभूतियों का स्थान है जहाँ व्यक्ति में उसके संस्कार और मानसिक प्रवृतियों के अनुसार अनेकानेक  सिद्धियाँ प्रकट होती है | ऐसा भी कहा जाता है  आज्ञा चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे उपर एक ग्रन्थि के रूप में स्थित है | तन्त्र के अनुसार इस ग्रन्थि को शिव ग्रन्थि कहतें हैं | यह साधक के उन नयी सिद्धियों से लगाव का प्रतीक है जो आज्ञा चक्र के जागरण से प्रकट होती  है | यह ग्रन्थि अध्यात्मिक विकास के मार्ग को तब तक अवरुद्ध रखती है जब तक सिद्धियों के प्रति लगाव समाप्त नहीं हो जाता तथा चेतना के मार्ग की बाधा समाप्त नहीं हो जाती |
       इस भाग के प्रस्तुती के बाद  एक या दो भाग और प्रेषित होंगे उसके बाद आज्ञा चक्र के जागरण हेतु कुछ ध्यान प्रयोग लिखित तथा Mp3  रूप में भी पोस्ट डालूँगा  ब्लॉग पर बने रहें  |

       

Wednesday 27 May 2015

आज्ञा चक्र - 4

आप प्राय : तस्वीरों में आज्ञा चक्र का स्वरुप देखते होंगे | आज्ञा चक्र का प्रतीक है दो पंखुड़ियों वाला कमल | शास्त्रों के अनुसार इसका रंग पीला हल्का भूरा तथा स्लेटी सा है | कुछ का अनुभव है की यह चन्द्रमा या चांदी जैसा सफ़ेद है परन्तु वस्तुतः इसका रंग दिखाई नहीं देता | एक बात   स्मरण करा दूं रंगों के सम्बन्ध में आप धारणाएं बना कर ध्यान में प्रवेश न करें बल्कि आपकी जो अनुभूति हो वह सर्वोपरी है |
       बायीं पंखुड़ी पर हं तथा दायीं पंखुड़ी पर क्षं अंकित है | हं और क्षं चमकीले सफ़ेद रंग में हैं और ये शिव शक्ति के बीज मन्त्र हैं | एक चन्द्रमा या इडा नाडी का तथा दूसरा सूर्य या पिंगला नाडी का प्रतीक है |इस चक्र के निचे परस्पर तीन नाड़ियाँ  आकर मिलती हैं जिसका वर्णन मैं कर चुका हूँ |
       कमल के अंदर एक पूर्ण  वृत  है जो शून्य का प्रतीक है | वृत के अंदर एक त्रिकोण है जो  शक्ति की रचनात्मकता तथा प्रकटीकरण का प्रतिनिधित्व करता है | त्रिकोण के उपर एक काला शिवलिंगम है | इस लिंग का स्वरुप लैंगिक नहीं है जैसा की सभी सोचते हैं | यह आपके सूक्ष्म शरीर का प्रतीक है | तंत्र और गुह्य शास्त्रों के अनुसार सूक्ष्म शरीर आपके व्यक्तित्व का प्रतीक है |
       मूलाधार में लिंगम ध्रूमवर्णी तथा अस्पस्ट है | इसे ध्रूम लिंगम भी कहा जाता है और इसकी तुलना चेतना के उस स्तर से करते हैं जिस स्तर का हम नैसर्गिक जीवन बिता रहे होते हैं | इस समय हम क्या हैं और कौन हैं इसका ज्ञान नहीं होता है | आज्ञा चक्र में स्थित काले लिंगम को इतराख्या लिंगम कहते है | आज्ञा चक्र में हम क्या हैं इसका स्वरुप बोध होता है | सहस्त्रार में चेतना प्रकाशित रहती है इसलिए आज्ञा चक्र का लिंगम भी प्रकाशित रहती है |
       जब कोई मानसिक रूप से अविकसित व्यक्ति ध्यान करता है तो उसे शिवलिंगम धुंवे की तरह दिखाई देता है |  यह प्रतीक बार बार ध्यान में आता जाता रहता है | गहरे ध्यान में जब मन शांत रहता है तो लिंगम काला दिखाई देता है | इस काले लिंगम पर ध्यान करने से प्रकाशमान सूक्ष्म चेतना में ज्योतिर्लिंगम प्रकट होता है | इसलिए आज्ञा चक्र का काला लिंगम जीवन के उच्च अध्यात्मिक क्षेत्रो की कुंजी है |

       शिवलिंगम के उपर परंपरागत प्रतीक ॐ है | ॐ आज्ञा चक्र का प्रतीक एवं बीज मन्त्र है |  परम शिव आज्ञा चक्र के देवता हैं तथा वे एक प्रकाश की माला की तरह चमकते हैं | देवी है हांकिनी जिनके छ : मुख हैं तथा जो अनेक चन्द्रमा की भाँती दिखाई देती हैं | एक बात याद दिला दूं ये कोरी कल्पनाएँ नहीं हैं बल्कि जब आप ध्यान में प्रवेश करते हैं तो ये हकीकत हो जातीं हैं और इसी तरह का  वास्तविक अनुभव प्राप्त होता है |
       प्रत्येक चक्र की अपनी अपनी तन्मात्राए  , ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ होती हैं | आज्ञा चक्र की तन्मात्राओं ,ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों सभी का रूप मन है | यहाँ मन को सूक्ष्म माध्यमों से ज्ञान व संकेत प्राप्त होते हैं न कि उन इन्द्रियों से जो अन्य चक्रों के लिए ज्ञानेन्द्रिय का कार्य करती है | आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात अंतर्ज्ञानी की छटवीं इन्द्रिय क्रियाशील हो जाती है |  जिससे मन को ज्ञान व दिशा निर्देश मिलता है | ये इन्द्रियां मन की ज्ञानेन्द्रियाँ हैं | इसी तरह मन बिना सूक्ष्म शरीर के अच्छी तरह काम कर सकता है | मन को आज्ञा चक्र का कर्मेन्द्रिय माना जाता है | बिलकुल ध्यान देने योग्य बात आज्ञा चक्र के जागरण का माध्यम एकदम मानसिक है अत: तन्मात्रा भी मन है | इसलिए आप ये नहीं कह सकते की मन आपका शत्रु है बल्कि मन हीं आपका  परम मित्र है जिसके सही प्रयोग से आप परम को पा सकते हैं और परम को पाने के बाद  मन की समाप्ति हो जाती है | विशुधि चक्र के साथ आज्ञा चक्र द्वारा विज्ञानमय कोष का निर्माण होता है जिससे अतीन्द्रिय विकास प्रारम्भ होता है |
       जो इस जागे हुए चक्र पर ध्यान करते हैं उन्हें एक जलता हुआ लैंप उगते हुए सूर्य की भाँती दिखाई देता है | जागे हुए चक्र पर ध्यान करने से परकाया प्रवेश की शक्ति आ जाती है मनुष्य भविष्यद्रष्टा बन जता है | ऐसे व्यक्ति सारे शास्त्रों और पुराणों का ज्ञाता बन जाता है | अलग अलग चक्रों पर ध्यान करने से जो अनुभूतियाँ होती हैं वे सभी अनुभूतियाँ इस चक्र पर ध्यान करने से होती हैं |
       शेष अगले भाग में ................

       कृपया अपने विचारों से टिप्पणियों के माध्यम से अवगत कराएं कोई शंका हो तो बेझिझक टिप्पणी कर सकते हैं | औरों को भी इस ज्ञान के प्रति जागरूक करें पोस्ट शेयर करें |

Tuesday 26 May 2015

आज्ञा चक्र -3


आज्ञा चक्र -3

आज आज्ञा चक्र के स्थिति और वैज्ञानिकता पर थोडा प्रकाश डालता हूँ |आज्ञा चक्र मस्तिष्क में भ्रू मध्य के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के एकदम उपर मेरुरज्जु में स्थित है | प्रारम्भ में आज्ञा चक्र के स्थान को जानना थोडा कठिन है | इसलिए भ्रू मद्य में उसके क्षेत्रम पर ध्यान किया जाता  है मतलब ये है कि प्रारम्भिक अवस्था में ठीक आज्ञा चक्र पर ध्यान नहीं हो सकता क्यूंकि उसके स्थिति का पता नहीं चलता इसलिए उसके पुरे क्षेत्र पर ध्यान लगाया जाता है |चित्र देखें –


      



तस्वीर से आप सभी समझ गए होंगे आज्ञा चक्र और उसके क्षेत्र के सम्बन्ध में फिर समझाता हूँ आज्ञा चक्र के वास्तविक स्थित का पता लगाने के लिए पहले अनुमान से उसके क्षेत्र में प्रवेश कर के सम्पूर्ण क्षेत्र में ध्यान लगाते हैं फिर टटोलते टटोलते हमें आज्ञा चक्र के वास्तविक स्थिति का पता चलता है | निरंतर दो महीने ध्यान करने पर स्थिति ज्ञात की जा सकती है |
       भारत में भ्रू मध्य पर तिलक चंदन कुमकुम सिन्दूर आदि लगाने की परम्परा है | सिन्दूर में पारा होता है और उसे भ्रू मध्य  पर लगाते हैं तो वहां स्थित नाडी में लगातर उद्दीपन होता है जो नाडी सीधे भ्रू मध्य से मेरुरज्जु तक जाती है | आज तिलक टिके आदि लगाने के वास्तविक अर्थ को भुला जा रहा है और इसे पाखंड से जोड़ा जाता है जो की गलत है | ये ऐसे नुस्खे या माध्यम हैं जिससे आज्ञा चक्र के प्रति चेतन और अचेतन सजगता को निरंतर बनाए रखा जा सकता है |
       आज्ञा चक्र तथा पीनियल ग्रन्थि दोनों एक हीं चीज हैं | पियुषिका ग्रन्थि सह्त्रार चक्र है | पीनियल और पियुषिका ग्रन्थि में जो सम्बन्ध है ठीक वैसा सम्बन्ध  हीं आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र में हैं |  आहया चक्र सहस्त्रार तक पहुँचने का एक मार्ग है | आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात सहस्त्रार के जागरण को संभालना कठिन नहीं होता इसलिए सहस्त्रार जागृत हो इससे पूर्व आज्ञा चक्र को जागृत करना अनिवार्य है |
       पीनियल ग्रन्थि पियुषिका ग्रन्थि पर एक ताले की तरह काम करती है जिव बिज्ञान के जानकार इसे जानते होंगे | जब तक पीनियल ग्रन्थि स्वस्थ है तब तक पियुषिका ग्रन्थि का कार्यकलाप नियंत्रित रहता है |किन्तु लोगों मेर 8 – 10 के उम्र में हीं पीनियल ग्रन्थि का क्षरण होने लगता है इसके बाद  से पियुषिका कार्य करना प्रारम्भ करती है | जिससे विभिन्न प्रकार के हारमोन का स्त्राव प्रारम्भ हो जाता है , और यौन चेतना संवेदनाओं ,सांसारिक व्यक्तित्व को उभारने का काम करते हैं | और यही वह समय होता है जब  हम अध्यात्मिक जीवन  से दूर होने लगते हैं  | कुछ योगाभ्यास ऐसे त्राटक और शाम्भवी मुद्रा के द्वारा पीनियल ग्रन्थि का कायाकल्प संभव है |
शेष अगले भाग में .......
 विषय अगर कठिन प्रतित हो रहा हो तब टिप्पणियों के माध्यम से अपने विचारों से अवगत कराएं जिससे इसे  मैं और  सरल बनाने की कोशिश करूँगा |
अगर  कोई मित्र इन  लेखों  का अंग्रेजी अनुवाद कर सकते हैं तो उनका स्वागत है टिप्पणी कर के इच्छा जाहिर कर सकते हैं |

Sunday 24 May 2015

आज्ञा चक्र – 2

गतांक  से  आगे .........
       आज्ञा  संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है आदेश | आज्ञा चक्र का शाब्दिक अर्थ है नियन्त्रण केंद्र | ज्योतिष में आज्ञा चक्र वृहस्पति का का केंद्र है जो की गुरु का प्रतीक है | वृहस्पति देवताओं के गुरु हैं इसलिए इस चक्र को एक और नाम से जाना जाता है “गुरु चक्र ” |
       आज्ञा चक्र  एक ऐसा माध्यम है जिससे गुरु का हमेशा अपने शिष्य  से संपर्क बना हुआ रहता है | यह वह स्थान है जिससे दो व्यक्तियों का मन हीं मन सम्पर्क बन सकता है | इसी चक्र में बाह्य गुरु से सम्पर्क होता है | यह वह केंद्र है जहाँ ध्यान के गहन अवस्था में जब की बाह्य जगत से सम्पर्क टूट जाता है और शून्य की स्थिति आने पर   इसी केंद्र के माध्यम से आंतरिक गुरु का निर्देश प्राप्त होता रहता है |
       यह शून्य की एक ऐसी स्थिति है जब नाम आकृति विषय और उदेश्य किसी का भान नहीं होता है | इस पूर्णत : निश्चल स्थिति में मन बिलकुल प्रकाशहीन हो जाता है , चेतना अकर्मण्य हो जाती है और अहं का ध्यान भी नहीं रहता है | यह अनुभव मृत्यु की तरह होता है और इस अनुभव से परे जाने के लिए आज्ञा चक्र में आवाज़ सुनना आवश्यक हो जाता है | अब आप समझ गएँ होंगे गुरु क्यों महत्वपूर्ण है | इस अवस्था में आपसे गुरु के आलावा और कोई भी सम्पर्क नहीं साध सकता , ऐसी स्थिति में गुरु हीं आज्ञा चक्र के माध्यम से शिष्य को निर्देशित करते हैं |
       आध्यात्म के क्षेत्र में नए लोगों के साथ तो अभी ऐसी अवस्था नहीं आएगी किन्तु थोडा पारंगत होने पर ऐसी अवस्था में संभलना थोडा मुश्किल होता है | अगर ऐसी अवस्था आ जाये और गुरु भी न हों तो अपने अंदर के गुरु को सुनें और सभी कुछ ईश्वर पर समर्पित कर दें , शत प्रतिशत निदान मिलता है पक्का |
       

इसे अंतर्ज्ञान चक्षु के नाम से भी जाना जाता है ,यही वह मार्ग है जिसके माध्यम से व्यक्ति चेतना के सूक्ष्म और अतीन्द्रिय आयाम में पहुँचता है | इस चक्र का सबसे प्रसिद्ध नाम है तीसरा नेत्र या तीसरी आँख तथा प्रत्येक संस्कृति एवं सभ्यता में निहित गुह्य विद्याओं में इसकी चर्चा पाई जाती है | इसे एक ऐसे अतीन्द्रिय आँख के रूप में चित्रित किया जाता है जो दोनों आँखों के मध्य में है और बाहर की ओर न देख कर अंदर की ओर देख रहा हो ( याद करें शिव की तस्वीर ) |
       पुरुषों के अपेक्षा स्त्रियों का तीसरा नेत्र अधिक सक्रीय होता है इसीलिए स्त्रियाँ ज्यादा संवेदनशील , भावुक तथा ग्रहणशील प्रवृति की होती हैं | लेकिन ऐसा न समझें की पुरुषों का कम संवेदनशील होता है ये चक्र | एक प्रयोग करें अभी दोनों आँखें बंद कर लें और स्वयं या किसी दुसरे को  कहें की  आपके दोनों भ्रूमध्य के बिच ऊँगली लाये किन्तु स्पर्श बिलकुल न करे आप पायेंगे की बंद आँखों में भी ऊँगली की प्रतीति मह्शूश हो रही है |
       शेष अगले भाग में ........

इस ब्लॉग से अधिक से अधिक  लोग को जोड़ें और स्वयं भी सदस्य बनें मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है ॐ 

Saturday 23 May 2015

आज्ञा चक्र

आज्ञा  चक्र वह स्थान है जहाँ तीन प्रमुख नाड़ियाँ इडा ( बायाँ  नासिका से स्वास का संचालन ) पिंगला ( दाहिना नासिका से स्वास का संचालन )और शुषुमना ( दोनों नासिकाओं से सामान स्वास संचालन ) का मिलन बिन्दु है | तथा वहां से तीनों नाड़ियाँ एक प्रवाह में चेतना के सर्वोच्च बिन्दु सहस्त्रार तक पहुँचती हैं | शास्त्रों के अनुसार तीन पवित्र नदियाँ गंगा , यमुना और सरस्वती तीनों तीन नाड़ियों  का प्रतिक हैं और तीनों का मिलन स्थल है संगम ( इलाहाबाद ) | बारहवें वर्ष लगने वाले कुम्भ में स्नान करने से तन और मन दोनों पवित्र हो जाता है | संगम का यह स्थल आज्ञा चक्र का प्रतीक है |

       आज्ञा चक्र यानी दोनों भौं ( भ्रू मध्य ) के मध्य में  मन को स्थिर करने पर मनुष्य के व्यक्तित्व और चेतना  में परिवर्तन होना प्रारम्भ हो जाता है | अहं व्यक्तिगत चेतना में सर्वोच्च स्थान पर होता है और इसी अहं के कारण द्वैत का बोध होता है ( ये मैं और ये तुम द्वैत दो का भास  ) | द्वैत जब तक है तब तक समाधि असम्भव है क्योंकि समाधि मतलब हुआ परम चेतना से एकाकार हो जाना | समाधि में कोई नहीं बचता बस सर्वोच्च सता परमात्मा हीं रह जाता है |
       आज्ञा चक्र के पूर्व अन्य चक्रों के जागरण  से बहुत हीं दुर्लभ अनुभव अवश्य होतें हैं किन्तु दुर्लभ अनुभूतियों के अलावा स्व आस्तित्व का बोध बना रहता है | किन्तु इडा , पिंगला और शुषुमना के आज्ञा चक्र पर मिलन के बाद अपने आस्तित्व का बोध समाप्त हो जाता है | इसका अर्थ ये कतई नहीं की व्यक्ति अचेत हो जाता है बल्कि उसकी चेतना का विस्तार हो जाता है इस अवस्था में व्यक्तिगत चेतना लुप्त हो जाती है और द्वैत समाप्त हो जाता है | आज्ञा  चक्र अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र है और मन को पवित्र बनाने हेतु इस चक्र पर अवश्य ध्यान करना चाहिए |
       दुसरे चक्र के जागरण में अनेकों समस्याएं हो सकती है जिसका कारण अलग अलग चक्रों में अलग अलग नकारात्मक तथा सकारात्मक   संस्कारों का संचयन है | किसी भी चक्र के जागरण से ये संस्कार चेतना के बाह्य स्तर पर उभरते हैं और हर व्यक्ति इससे निपटने को तैयार नहीं है | सिर्फ तार्किक और समझदार प्रवृति के लोग इससे निपट सकते हैं |
       इसलिए महत्वपूर्ण है कि चक्रों के जागरण शुरू हों और शक्ति का प्राकट्य हो उससे पूर्व मन को इसी मिलन बिन्दू पर पवित्र कर लिया जाए |तब शुद्ध मन से आप दुसरे चक्र को भी जगा सकते हैं | इसलिए चक्रों के जागरण और उसकी अनुभूतियों के लिए शुरुआत आज्ञा चक्र से हीं करें तो बेहतर होगा |

                                                                           क्रमशः  

ध्यान अनुभव

ध्यान !
जो अनुभव करता हूँ लिखता हूँ !
जब हम ध्यान के लिए आँखें बंद करते हैं तब सबसे पहला साक्षात्कार होता है अँधेरे से ! ये अँधेरा ज्यादा दिन नहीं रहने वाला जल्द हीं प्रकाश में बदल जायेगा धैर्य रखें ! फिर हमें दिखाई देतें हैं अपने विचार ये विचार हर तरह के हो सकते हैं प्रीतिकर अप्रीतिकर सभी तरह के ! यहाँ हमें थोड़ी सावधानी बरतनी होगी बरना ये विचार ऐसे होतें हैं की हम इन्हीं में खो जायेंगे ! ये विचार अपनी कल्पना होती है मधुर कल्पना या अमधुर कल्पना ! 

अब यहाँ सावधानी क्या बरतनी है इस पर गौर करतें हैं ! हमें इन विचारों में खोना नहीं है बल्कि इन्हें देखना है जैसे कोई चलचित्र चल रहा हो मतलब की हमें इस पर जोर देना है कि इन विचारों को देखने वाला दूसरा हीं कोई और है ! आनन्द आएगा कर के देखें ! ऐसा भाव आते हीं आप देखेंगे कि कुछ दिनों में विचारों पर नजर रखने पर विचार गायब होने लगे ! ये आपने एक छलांग लगा ली ! इसके बाद धीरे धीरे प्रयास के द्वारा गहरी शून्यता उतरती जायेगी और रहस्य खुलते जायेंगे !
ध्यान का कोई रहस्य ले कर पुन : हाज़िर होऊंगा धन्यवाद !

Friday 22 May 2015

ध्यान अमृत


मैं ध्यान पर इतना जोर क्यों देता हूँ !

भैया अध्यात्म के मार्ग में अपना ये शरीर हीं प्रयोग करने का equipment बन सकता है | यहाँ हाथों हाथ लेना और देना होता है शरीर सारे अनुभूतियों का साक्षी होता है | तो ध्यान शुरू करते हैं खुद से और लगे हाथ अनुभूतियाँ भी होती है | अनुभूतियाँ हमारे भीतर रूचि पैदा करती हैं परमात्मा के प्रति | अध्यात्म में और कोई भी ऐसा मार्ग नहीं जो हाथो हाथ रिजल्ट दे | ध्यान तवरित परिणाम देता है बस ध्यान करने की जरूरत है | और एक बात लोग कभी कभी कुछ अनुभूतियों से डर भी जाते हैं मैं आश्वस्त करता हूँ आपको की डरने की कोई आवश्यकता नहीं है | आज तक ध्यान से किसी का कोई नुक्सान नहीं हुआ है | तो ध्यान करें और हाथो हाथ परिणाम मिलेगा इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है |


कुछ मित्र मुझसे पूछते हैं ध्यान कैसे करें !

भाई कुछ नहीं करना है !
आँखें बंद करके अपने भीतर खोने का अभ्यास करें !
प्रथम अवस्था में मन में चल रही आपकी कल्पनाओं का साक्षात्कार होगा !
आप देखेंगे कि मन क्या क्या कल्पना करता है और किन किन कल्पनाओं में खोया रहता है !
कुछ न करें बस कल्पनाओं को देखते रहें कल्पनाओं के प्रति सजग रहें |
सजग मात्र होने से हीं कल्पनाएँ शांत होने लगती है |
फिर विचारों को देखें मतलब विचारों के प्रति भी सजग हो जाएँ |
ये भी गायब हो जायेंगी धीरे धीरे |
फिर धीरे धीरे अपने भीतर उतरें |
गहन अन्धकार में | गहन शान्ति में ! गहन आनन्द में !