Monday 18 March 2013

तन्त्र विज्ञान :



सनातन धर्म की खासियत में एक खासियत है 
तन्त्र  विद्या | यह विद्या और किसी धर्म में नहीं पायी जाती | तन्त्र के द्वारा सारी सुख सुविधाओं को भोगते हुए अंतत: परमात्मा को पाना तन्त्र विद्या का सार है | तन्त्र सिध्हियों के द्वारा सारे भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं | मैथुन , मध , मांस , मत्स्य और मुद्रा इन पांचो पर टिका है तन्त्र !
पंच मकार : मैथुन , मध , मांस , मत्स्य और मुद्रा इन पांचो पर टिका है तन्त्र !

मैथुन क्या है ! खुद का परमात्मा में रमण करना हीं  मैथुन है | आज इसे गलत रूप में दिखाया या समझाया जा रहा है | तन्त्र का गहन  अध्यन करने वाले आगम शास्त्रों और अपने अनुभव के आधार पर मैथुन का यही अर्थ बताते हैं , हमेशा परमात्मा के साथ  रमण का सुख भोगना हीं मैथुन है | | वर्तमान में मैथुन   का भी गलत अर्थ लगाया जाता है |


मध है हमेशा परमात्मा रूपी शराब का नशा करना | आगम तंत्रों के अनुसार मष्तिष्क में बिंदु रूपी स्थान से हमेशा अमृत बरसता रहता है योगी लोग उसी का पान अनवरत करते हैं जो मध से लाख गुना बेहतर और आनन्दायक होता है | वर्तमान में मध का अर्थ भी गलत लगाया जाता है |

मांस आगम तंत्रों के अनुसार मौन को मांस कहा गया है | मौन में अदभुत शक्ति है | मौन  स्वयं से साक्षात्कार कराने में सहायक  है | स्वयं में परमात्मा का दीदार होता है | मौन की महता समझने के लिए दो चार दिन मौन रह कर अवश्य देखें | वर्तमान में  मांस का भी गलत अर्थ लगाया जाता है |

मत्स्य आगम तंत्रों के अनुसार इडा ( बायाँ नासिका ) और पिंगला ( दायाँ नासिका ) से स्वास का लेना  हीं ये दो मत्स्य हैं | योगिगन इन दोनों नासिकाओं के स्वांसो का विलय कर के सुषुम्ना नाडी ( दोनों नासिकाओं से साँसों का साथ साथ चलना )  को चलाते हैं जिससे कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने में मदद मिलती है | इसका भी वर्तमान में गलत अर्थ लिया जाता है |


मुद्रा हांथो की उंगलियों से तथा विभिन्न भाव भंगिमाओं के द्वारा मुद्रा का प्रदर्शन होता है | इसका भी गूढ़ अर्थ है | विशेष मुद्राओं से इष्ट प्रसन्न होतें हैं | इसमें अभी विकृति नहीं आई है जो  की प्रसन्नता की बात है |
तन्त्र एक वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित एक  गूढ़ विद्या है जिसका उल्लेख किसी अन्य धर्म में मेरे देखे सुने नहीं मिलता है |