Saturday 20 July 2013

ध्यान (Meditation)




पिछले कई दिनों से ध्यान (Meditation) पर काम कर रहा हूँ | बहुत हीं मनोयोग पूर्वक और काफी मेहनत करके मैंने ध्यान से सबंधित दो ऑडियो बनाये हैं , जो की आप लोगों के अव्लोकानार्थ रख रहा हूँ | कृपया अपना सहयोग दें इस ऑडियो को सुनें और अपने विचारों से अवगत कराएं | आपके विचार हमारे लिए बेशकीमती होंगे | भविष्य में इस तरह के और प्रयास करता रहूँगा |


ऑडियो इस लिंक पर सुनें आप इस लिंक पर अकाउंट बना कर ऑडियो डाउनलोड भी कर सकते हैं |

https://soundcloud.com/satya-90/bb

ऑडियो को आप इस पृष्ठ के निचले हिस्से में भी सुन सकते हैं !



Monday 8 April 2013

सर्वे भवन्तु सुखिनः



आज के इस अशांति भरे वातावरण में जहाँ हर कोई परेशां है हर किसी को कोई न कोई तकलीफ है , अधिकांश लोग दुखी हैं , ऐसे में आइये मिलकर सबके  कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना करे | कहते हैं एक स्वर में की गयी प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है | एक स्वर में हम उसे याद करेंगे तो वह जरुर सुनेगा |

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।

हे परम पिता परमेश्वर हम आपके हीं बच्चे हैं हम पर कृपा करो नाथ | इस सृष्टि में बनाये गये सकल जड़ और चेतन आपके हीं है प्रभु | हम तुच्छ प्राणियों पर कृपा करो प्रभु | इस माया के जगत में आ कर हम मति भ्रमित हो जातें हैं नाथ अत : हमें माफ़ कर दो  नाथ | हम भूल गये हैं नाथ की की हम आपके संतान हैं और इसी कारण कष्ट पाते हैं | हम तुझे भूल कर मेरा तेरा के चक्कर में पड़ जातें हैं प्रभु इस लिए कष्ट उठाते हैं |
इस जगत में बहुत कष्टों को हमने झेला है मेरे प्रभु ! नाथ कृपा करो ! हम तुच्छ अज्ञानी प्राणी है प्रभु हमारी मति तुम्हे समझ सकने में असमर्थ है भगवन , हमारे लिए जो उचित हो वही तुम करो मेरे  प्रभु | नाथ अब कृपा करो ! अब कृपा करो ! अब कृपा करो ! हमें क्षमा कर दो भगवन ! अपनी नादान ओर अल्प मति के कारण हमने बहुत कष्ट उठाये प्रभु अब तो क्षमा कर दो मेरे प्रभु |
सारे पृथ्वी के जीवों को कष्टों से निजात दो दाता | सबके कष्टों का हरण करो दयालु नाथ | सभी दुखी प्राणियों का दुःख हरण करो दयालु | तुम सा दयालु कोई नहीं है मेरे मालिक | तुम हीं तो इस जगत में व्याप्त हो फिर भी हम कष्ट पातें हैं प्रभु अपने तुच्छ मति के कारण किन्तु हमारे कृत्यों को तुम क्षमा नहीं करोगे तो कौन करेगा मेरे दाता तुम हीं तो हमारे पिता हो नाथ | कृपा करो प्रभु !

कृपा करो प्रभु ! कृपा करो प्रभु ! कृपा करो प्रभु ! दया करो ! दया करो ! दया करो !

आइये हृदय में भाव भर कर इस प्रार्थना को हम बार बार दुहरायें परम कृपालु हमारे कष्टों को जरुर दूर करेंगे !

Monday 18 March 2013

तन्त्र विज्ञान :



सनातन धर्म की खासियत में एक खासियत है 
तन्त्र  विद्या | यह विद्या और किसी धर्म में नहीं पायी जाती | तन्त्र के द्वारा सारी सुख सुविधाओं को भोगते हुए अंतत: परमात्मा को पाना तन्त्र विद्या का सार है | तन्त्र सिध्हियों के द्वारा सारे भौतिक सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं | मैथुन , मध , मांस , मत्स्य और मुद्रा इन पांचो पर टिका है तन्त्र !
पंच मकार : मैथुन , मध , मांस , मत्स्य और मुद्रा इन पांचो पर टिका है तन्त्र !

मैथुन क्या है ! खुद का परमात्मा में रमण करना हीं  मैथुन है | आज इसे गलत रूप में दिखाया या समझाया जा रहा है | तन्त्र का गहन  अध्यन करने वाले आगम शास्त्रों और अपने अनुभव के आधार पर मैथुन का यही अर्थ बताते हैं , हमेशा परमात्मा के साथ  रमण का सुख भोगना हीं मैथुन है | | वर्तमान में मैथुन   का भी गलत अर्थ लगाया जाता है |


मध है हमेशा परमात्मा रूपी शराब का नशा करना | आगम तंत्रों के अनुसार मष्तिष्क में बिंदु रूपी स्थान से हमेशा अमृत बरसता रहता है योगी लोग उसी का पान अनवरत करते हैं जो मध से लाख गुना बेहतर और आनन्दायक होता है | वर्तमान में मध का अर्थ भी गलत लगाया जाता है |

मांस आगम तंत्रों के अनुसार मौन को मांस कहा गया है | मौन में अदभुत शक्ति है | मौन  स्वयं से साक्षात्कार कराने में सहायक  है | स्वयं में परमात्मा का दीदार होता है | मौन की महता समझने के लिए दो चार दिन मौन रह कर अवश्य देखें | वर्तमान में  मांस का भी गलत अर्थ लगाया जाता है |

मत्स्य आगम तंत्रों के अनुसार इडा ( बायाँ नासिका ) और पिंगला ( दायाँ नासिका ) से स्वास का लेना  हीं ये दो मत्स्य हैं | योगिगन इन दोनों नासिकाओं के स्वांसो का विलय कर के सुषुम्ना नाडी ( दोनों नासिकाओं से साँसों का साथ साथ चलना )  को चलाते हैं जिससे कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने में मदद मिलती है | इसका भी वर्तमान में गलत अर्थ लिया जाता है |


मुद्रा हांथो की उंगलियों से तथा विभिन्न भाव भंगिमाओं के द्वारा मुद्रा का प्रदर्शन होता है | इसका भी गूढ़ अर्थ है | विशेष मुद्राओं से इष्ट प्रसन्न होतें हैं | इसमें अभी विकृति नहीं आई है जो  की प्रसन्नता की बात है |
तन्त्र एक वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित एक  गूढ़ विद्या है जिसका उल्लेख किसी अन्य धर्म में मेरे देखे सुने नहीं मिलता है |