Thursday 2 June 2016

swadhisthana chakra 4 स्वाधिष्ठान चक्र – 4

स्वाधिष्ठान का सम्बन्ध स्थूल शरीर में प्रजनन तथा मूल संस्थान से है , परन्तु शारीरिक रूप से यह प्रोटेस्टेंट के स्नायुओं से सम्बन्धित है | स्वाधिष्ठान चक्र रीढ़ के हड्डी के निचे काक्सिस के स्तर पर स्थित है | यह हड्डियों के एक छोटे बल्ब की तरह है जो गुदाद्वार के ठीक उपर है | शरीर क्रियाविज्ञान के दृष्टिकोण से यह पुरुषों और स्त्रियों दोनों के मूलाधार चक्र के अत्यंत नजदीक है |
स्वाधिष्ठान का रंग काला है क्योंकि यह मूल अज्ञान का प्रतीक है | किन्तु पारम्परिक रूप से इसे छ : पंखुड़ियों के सिंदूरी कमल के रूप में चित्रित किया जाता है | हर पंखुड़ी पर बं , भं ,मं , यं ,रं और लं चमकीले रंगों में अंकित है | इस चक्र का तत्व जल है जिसका प्रतीक है – कमल के अंदर एक सफ़ेद अर्ध चन्द्र | यह अर्ध चन्द्र दो वृतों से मिल कर बना है जिनसे दो यंत्रों की संरचना होती है | बड़े वृत्त से बाहर की और पंखुडियां निकलती हुई दिखाई देती है जो भोतिक चेतना का प्रतीक है | अर्ध चन्द्र के अंदर वाले छोटे वृत में उसी  प्रकार की पंखुडियां हैं पर वे केंद्र की और मुड़ी हुई हैं | यह अकार विभिन्न कर्मो  के भंडार गृह का प्रतीक है | 

अर्ध चन्द्र के अंदर इन दो यंत्रों को सफ़ेद रंग का एक मगर अलग अलग करता है | यह मगर अचेतन जीवन की सम्पूर्ण मनोलीला का माध्यम है अर्थात सुप्त कर्मों का प्रतीक है | मगर के उपर स्वाधिष्ठान चक्र का बीज मन्त्र ‘ वं ’ अंकित है |
       मंत्र के बिंदु के अंदर देव विष्णु और देवी राकिनी का निवास है | विष्णु के चार हाथ हैं और उनका रंग चमकीला है | उनके वस्त्र पीले एवं अत्यंत हीं सुंदर हैं | राकिनी का रंग नीले कमल की तरह है एवं वे दिव्य वस्त्र एवं आभूषणों से सजी हुईं हैं | अपने उपर उठे हाथों में उन्होंने अनेक शस्त्र धारण कर रखें हैं | अमृतपान करने से उनका मन  आनन्दित है | वे वनस्पतियों की देवी हैं | स्वाधिष्ठान चक्र का सम्बन्ध वनस्पतियों से है | अत : कुण्डलिनी  के साधक को निरामिष हीं रहना चाहिए |
       स्वाधिष्ठान का लोक भुव: है जो अध्यात्मिक जागृति का मध्य स्तर है | इस चक्र से स्वाद की तन्मात्रा या संवेदना सम्बन्धित है | ज्ञानेन्द्रियाँ जिह्वा , कर्मेन्द्रियाँ यौन अवयव ,किडनी तथा मूत्र संस्थान हैं | स्वाधिष्ठान की मुख्य वायु व्यान है जो पुरे शरीर में स्थित है | स्वाधिष्ठान और मणिपुर चक्र प्राणमय कोष के निवास स्थान हैं |

       स्वाधिष्ठान पर ध्यान लगाते रहने से मनुष्य अपनी आंतरिक दुष्प्रवृतियों जैसे काम , क्रोध , लोभ आदि से तुरंत मुक्त होने लगता है | उसकी वाणी अमृत की तरह तथा काव्यमय एवं ज्ञानयुक्त होती है | 

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