Tuesday 26 June 2012

प्रेम है जिसका स्वभाव वह है हिन्दू

प्रेम है जिसका स्वभाव वह है हिन्दू   


क्या है हिन्दू होने का मतलब , माथे पर तिलक लगाना ,हाँथ में सूता बंधना ,ढोगी बाबाओं से आशीर्वाद लेना, मंदिर जाना , जातिवाद का ढोंग फैलाना , अपनी संस्कृति को छोड़ कर पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण  करना  क्या यही है  हिंदुत्व ?

हिन्दू की परिभाषा

हिंदू शब्द कि उत्पति का इतिहास सिंधु नदी के नाम से जुड़ा हुआ है | प्राचीन काल में सिंधु नदी के पार के वासियों को इरान वासी हिंदू कहतें थें | वे का उच्चारण करते थे | हिंदू शब्द के जुड़ने के पहले यह धर्म सनातन धर्म कहलाता था |
सनातन मतलब शाश्वत या हमेशा बने रहने वाला होता है |
हिंदू कि परिभाषा क्या कि जाए , मेरे हिसाब से जिस धर्म के अनुआयी ब्रह्म  को जानतें हों हिंदू कहलाने के योग्य हैं | ब्रह्म यानी जहाँ तक अपनी कल्पना न जाए सिर्फ अनुभव हीं शेष रह जाए | पूर्ण शून्यता का अनुभव | ब्रह्म ज्ञान अर्थात अपने अहंकार को विस्तृत कर देना यानी परमात्मा में विसर्जित कर देना या यूँ कहें अपने अहंकार को समाप्त कर देना , अपने होने के आस्तित्व को भूला देना | ब्रह्म शब्द को परिभाषित नहीं किया जा सकता क्यों? क्योंकि इसके अंदर कल्पना का जगत तो आ हीं  जाता है कल्पनातीत जगत भी आ जाता है | ब्रह्म ज्ञान जैसा दुर्लभ ज्ञान अन्य किसी धर्म  में नहीं |
प्रेम है जिसका स्वभाव वह है हिन्दू   
जितने भी सच्चे  ब्रह्म ज्ञानी हुएं सबने प्रेम को महता दी है और सबने एक सुर में प्रेम को हीं परमात्मा के मार्ग में प्रथम सोपान बतलाया है | ब्रह्म को जानने वालों का कहना है ब्रह्म ज्ञानी मनुष्य  पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों से एकात्म मह्शूश करता है यानी सभी जीवों को अपना अंग समझता है , अपने से भिन्न नहीं समझता  पेड पौधें सभी से जुडाव मह्शूश करता है  | सबसे एकात्म मह्शूश करने वाला किसी को अपने से अलग न मानने वाला मनुष्य  सबसे प्रेम न करेगा भला |  
प्रेम के कारण था भारत कभी विश्व गुरु
अरे कुछ तो बात हो भारत के हिन्दूओं में ताकि विश्व के कोने कोने में बसे लोग यहाँ के हिन्दूओं के प्रेम से खींचे चलें आये और इनकी प्रेम गाथा पुरे विश्व में प्रसिद्ध हो | और प्रेम हीं ऐसा मंत्र है जिसकी बदौलत भारत फिर से एक बार सदा के लिए विश्व गुरु बन सकता है | प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु क्यों था ? सम्पूर्ण विश्व के लोग यहाँ के ज्ञान के कारण यहाँ खींचे चले आते थें | प्राचीन काल में  शिक्षा का सर्वोच्च केन्द्र तक्षशिला ,नालंदा , विक्रमशिला विश्वविद्यालय  भारत में थें | कौन सा ज्ञान दिया जाता था यहाँ तत्व ज्ञान या कहें ब्रह्म ज्ञान | ब्रह्म ज्ञानी कौन जिसके नस नस में प्रेम दौड़े |
'जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें मानव के लिए प्यार नहीं |'
-मैथली शरण गुप्त
नोट मूल पंक्ति में मानव के स्थान पर स्वदेश तथा के लिए के स्थान पर काशब्द का प्रयोग हुआ है |  यथा जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं


हिंदू था  ज्ञान का खान
ऐसा नहीं कि सिर्फ प्रेम के कारण विश्व गुरु था यह देश बल्कि एक से बढ़ कर वैज्ञानिक भी थे प्राचीन काल में | चौंकिए नहीं भारतीय ऋषि , मुनि, मनीषी क्या थे | एक से बढ़ कर एक विद्याओं के धनी थे ये लोग | आयुर्वेद ,सर्जन चिकित्सा ,रस सिद्धांत विज्ञान, सूर्य विज्ञान ,कुण्डलिनी विज्ञान, गणित का ज्ञान (शून्य का आविष्कार), पातंजली का योग सूत्र  और न जाने क्या क्या | क्या नहीं है हमारे पास हमारे वेदों उपनिषदों पुराणों में  | आज भी विदेश से लोग दुर्लभ ज्ञान के तलाश में भारत खिंचे चले आतें हैं | किन्तु रसातल में जा रहा है यह सब अपनी विद्याओं अपनी संस्कृति का इज्जत नहीं है दिल में पाश्चात्य संस्कृति के पीछे भागम भाग मचा हुआ है और छाती ठोंक कर कहेंगे कि हम हिंदू हैं |


हिंदुत्व प्रसिद्ध है अपनी संस्कृति ,अपने त्यौहार ,अपने संस्कारों, अपने शुद्धतम  खान पान, अपने आदर्श परिवारवाद ,अपने सर्वोच्च नैतिकता  के लिए | किन्तु दुखद अब इनका ह्रास होता जा रहा है |
पारिवारिक रिश्तों के लिए यह धर्म मिशाल था | पिता पुत्र का धर्म , माता पिता के लिए पुत्र का उतरदायी  होना , भाई भाई का प्रेम , इस धर्म कि खासीयत थी | अतिथि देवो भव: आदर्श वाक्य हुआ करता था कभी भारत में  |
हमें अपनी संस्कृति को पुन: स्थापित करना होगा अन्यथा पूरा  मनुष्य जाती एक दुर्लभ और अति मूल्यवान धरोहर  से वंचित रह जायेगी | 


4 comments:

  1. संक्षिप्त मे आपने बहुत कुछ लिखा है - बहुत अच्छी कोशिस की है. लिखते रहे...

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  2. You are great sir

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