Friday 6 November 2015

ईश्वर की खुमारी - 2

गतांक से आगे ........
शाम ढलने को आई थी  वह ध्यान लगाने के लिए तत्पर था | कुश  आसन बिछा कर उस पर पद्मासन लगाये ध्यान को नासिकाग्र पर स्थिर करते हुए प्राणायाम का अभ्यास कर रहा था वह | किन्तु ध्यान लग नहीं रहा था | ख्याल में बार बार वही ऋषि जैसे दिखने वाले महात्मन का ख्याल आ जाता था | (पूरी कथा के लिए पढ़ें पिछला भाग ब्लॉग पर जा कर  )
लाख प्रयत्नों के वावजूद आज ध्यान नहीं लग रहा था | अंतत उठ कर उपरी मंजिल के  कमरे से होते हुए बालकनी में आया | वहां से गंगा की कल कल ध्वनी सुनाई दे रही थी  और बाहर का  वातावरण बिलकुल हीं मनमोहक लगने लगा उसे | आराम कुर्सी ( Rest Chair ) पर पीठ टिकाये न जाने किस क्षण उसकी आँख झपक गयी | ध्यान जैसी तन्द्रा अवस्था में पुन : उसके मन: क्षेत्र में उन महापुरुष का आगमन हो चुका था | लगा कुछ क्षण के लिए  हजारों वाट का बल्ब जल गया हो | किन्तु कुछ क्षणों में हीं पिला मद्धिम प्रकाश रह गया मन: क्षेत्र में | इस बार पीली रेशमी कुर्ते और पीली रेशमी धोती पहने नजर आये वे |

-    “किन ख्यालों में हो |” महात्मन ने पूछा
-    “नहीं मैं सोच रहा था आप कौन हैं |” उसने कहा
-    “समय आने पर सब बता दूंगा | मैं साफ़ देख रहा हूँ तुम्हारे भीतर आत्म ज्ञान तथा ब्रह्म ज्ञान पाने की आतुरता हिलोरें ले रहीं है | ” महात्मन ने कहा
-    “जी निसंदेह आप मेरे  मन: क्षेत्र में हैं और आपसे मेरे  मन की कोई बात नहीं छिपी हुई है |” उसने कहा
-    हूँन्न्न्न............ और वे मंद मंद मुस्काने लगे |
-    “अच्छा बताओ तो जरा मैं और तुम तुम्हारे खोपड़ी के जिस भाग में हैं उस क्षेत्र को क्या कहतें हैं |” उन्होंने पूछा |
-    “जी मेरी मति तो कहती है ये चिदाकाश है |” उसने कहा |
-    सत्य है ! चिदाकाश चित का आकाश जहाँ  एकाग्र होने पर चित यानी मन की गतिविधियाँ विचार आदि  दिखाई देने लगती है और तुम साक्षी बन जाते हो |” ऋषि जैसे दिखने वाले महापुरुष ने कहा |
-    “ जी |” उसने कहा 
-    “अच्छा आओ मेरे पीछे पीछे जरा तुम्हारे शरीर का भीतर से निरिक्षण करूँ |” महा पुरुष ने कहा
कुछ हीं क्षणों में सम्पूर्ण शरीर में भ्रमण के बाद दोनों शरीर के भीतर हीं एक बिंदु पर खड़े थे |
-    “क्या दिखाई देता है ?” महात्मन ने पूछा |
-    “जी  पाँव से सर के चोटी तक केवल भवंर ( चक्र ) हीं भंवर नजर आ रहे हैं | प्रतीत होता है इन भंवरों  से शक्ति बाहर निकल कर सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त हो रही है |” उसने अपने आज्ञा चक्र वाले चक्षु से देख कर कहा |
महापुरुष के चेहरे पर मंद मुस्कान उभर आयी


आगे जारी है .......

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