Tuesday 3 November 2015

ईश्वर की खुमारी

उसकी आज्ञा चक्र जागृत थी | वह देख सकता था वह सब कुछ जो घटित होने वाला था या घटित हो चुका था | बस परेशानी यह थी  कि यह  स्वयं उस पर लागू नहीं थी |  उसकी उम्र रही होगी कोई पचीस साल | अदभुत नौजवान गठीला बदन , घुंघराले बाल , उभरी हुई कपाल और कपाल पर अभूतपूर्व तेज़ | किन्तु मन अभी भी स्थिर नहीं था उसका |  बेचैनी की एक पतली सी लकीर अभी भी उसके चेहरे पर देखी  जा सकती थी | उसे सत्य की खोज थी बाल्यकाल से हीं |
ऋषिकेश में गंगा किनारे बालू ( रेत ) पर बैठ कर ध्यानमग्न था वह | अप्रतिम लोक का अवलोकन कर रहा था | उसके साँस लेने में लयबद्धता थी | नाप तौल कर साँस लेता था और छोड़ता था | प्राणायाम का अभ्यासी था वह | अपने हीं भीतर खोया हुआ भ्रूमध्य में ध्यान लगाये हुए एक अलग लोक में छलांग लगाने को तैयार था वह | अदभुत प्रकाश का अवलोकन कर रहा था वह |
अपने हीं मानस  लोक में विचरण कर रहा था वह की सघन प्रकाश के मध्य एक आकृति प्रगट  हुई उसके मनसपटल पर | आकृति धुंधली थी अभी ध्यान को और गहन करने की आवश्यकता थी | ध्यान गहन होता गया आकृति स्पष्ट होती जा रही थी | अब उसके मानस पटल पर साफ़ छवि उभर आई थी | लम्बा डीलडौल  कद , चांदी के मानिंद लम्बे धवल केश और दाढ़ी बिलकुल सफ़ेद | आँखों की पुतलियाँ काली किन्तु भौ का रंग बिलकुल श्वेत | उपर से निचे तक एक हीं सफ़ेद  कौपीन धारण किये वह शख्सियत किसी प्राचीन काल के ऋषि की याद दिला रहें थे |
वह मन हीं मन चौक गया , क्या यह उसकी कल्पना है या यथार्थ | तभी उस ऋषि के समान लगने वाले व्यक्ति ने कहा “ अपने मन को किंचित कष्ट न दो , मैं यथार्थ हीं हूँ |”
मन हीं मन वह उन ऋषि जैसे लगने वाले से बात करने लगा |

- “ आप कौन हैं |”
- मैं हिमालय में निवास करनेवाला एक साधक मात्र हूँ |” ऋषि के समान लगने वाले महापुरुष ने कहा |
- “आप मेरे लिए यथार्थ हैं या कल्पना |”
- “ मैं यथार्थ हूँ और किसी के भी मन: क्षेत्र में प्रवेश कर जाना मेरे लिए आसान है | तुम्हें व्यथित देख मैं तुम्हारे मन: क्षेत्र में आया हूँ | बोलो क्या चाहिए |”
- “आत्म ज्ञान ब्रह्म ज्ञान !” उसने उतर दिया
- “ओह्ह !  हो ! बहुत हीं शुभ विचार है किन्तु इसके लिए तो और जी तोड़ प्रयास की आवश्यकता है , वैसे मैं जहाँ तक अवलोकन कर पा रहा हूँ तुमने स्वयं अपनी साधना के बदौलत थोडा मार्ग तय कर रखा है   | तुम्हारी आज्ञा चक्र जागृत प्रतीत हो रही है मुझे | यह दिव्य लक्षण है तुम्हारे लिए | ”
- “जी ! क्या आप मुझे और  मार्ग सुझायेंगे |”
- “ जरुर , जहाँ तुम रहते हो और जिसके निर्देशन में अपनी साधना कर रहे हो वहां भी कुछ गलत नहीं निर्देशित हो रहा तुम्हारे लिए | मैं भी निर्देशन करूँगा तुम्हारे लिए  किन्तु अभी नहीं अभी मुझे आवश्यक कार्य से अपने साधना स्थली के तरफ जाना है , मैं तुमसे पुन : सम्पर्क करूँगा  | ” यह कह कर वह दिव्य व्यक्तित्व लीन हो गयी | और उस साधक के  भीतर रह गयी  एक मधुर और ताजगी देने वाली खुमारी | जैसे अभी अभी स्नान किया हो |
वह आँख मलते मलते उठा उसका ध्यान भंग हो चुका था , मानस में विचारें हिलोरें ले रहीं थी | उसने जो देखा था स्वप्न नहीं था यह तो कम से कम उसके साधना ने यह बता दिया था | फिर क्या था रहस्य इसका इस पर मनन करते हुए वह ऋषिकेश के गंगा किनारे आश्रम वाले उस कमरे की तरफ बढ़ चला जहाँ उसका निवास और साधना स्थली थी |

फिर हाज़िर होऊंगा _/\_ हाज़िर होता हीं रहूँगा _/\_

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