Wednesday 8 August 2012

चैतन्य मन


चैतन्य मन

मन की रेशमी जाल में फंसा हुआ हूँ  मैं
जहाँ ममता , करुणा , दया ,
और न जाने कितने भाव ,
मंद शीतल समीर की नाई
आतें हैं |
शीतलता की फुहार दे कर न जाने कहाँ
चले जाते हैं
और मैं उनकी अतीत की यादों में
पुलकता ,तडपता रहता हूँ |
और हाँथ कुछ भी नहीं आता |
क्रोध , वासना , लालच , घृणा  के दानव भी
विकराल अग्नि से उतप्त 
आतें हैं |
और कलुषिता , द्वेष और  अजीब सी वेचैनी दे कर
चले जातें हैं |
किन्तु मेरा इनसे कोई नाता नहीं ,
मैं तो परम शून्य में आनंद पाता हूँ |
उस महामहिम परम सताधीस के आगोश में
खो जाता हूँ |
हाँ वहां "मैं" नहीं होता |
वहां कुछ भी नहीं होता
और सब कुछ होता है |

-आपका  सत्येन्द्र 

No comments:

Post a Comment