Friday, 24 June 2016

Secret Himalayas 9 रहस्यमयी हिमालय 9

वह समाधि से जाग चूका था | योगी बाबा अभी भी ध्यानस्थ थे | नौजवान  सच्चिदानन्द का कोई पता नहीं था |
वह व्यक्ति अद्भुत खुमारी से भरा हुआ था | एक तृप्तिदायक अहसास उसके रोम रोम में मौजूद था | वह कभी तो  योगी अभेदानन्द के चेहरे को निहारता तो कभी उसका मन चकित सा उस  अहसास के बारे में सोचता |
तभी योगी बाबा की आवाज़ गूंजी उसके कानों में “ जाग गये |”
उसने कोई उतर नहीं दिया उसका जी  बोलने को नहीं कर रहा था | मौन में वह अद्भुत शान्ति मह्शूश कर रहा था |
फिर कुछ देर बाद उसने योगी बाबा से पुछा “ बाबा यह क्या था और इसके पहले ऐसा अहसास जीवन में कभी क्यों नहीं हुआ |”
“ तुम इस जीवन में कभी अपने भीतर उतरे हीं नहीं तो कैसे अहसास हो , मैं तो कारण मात्र हूँ जो कि माध्यम बन गया तुम्हें भीतर ले जाने को यधपि यह तुम्हारे हीं पूर्व जन्मों के संचित साधनाओं का फल है जो तुम इस अहसास को पा सके |” योगी बाबा ने कहा
“अपने भीतर उतरना ये कैसे होता है बाबा” उस व्यक्ति ने पूछा
“ अभी तुम जिस आनन्द में गोते खा रहे हो यह भीतर का आनन्द हीं है |” बाबा ने उतर दिया
“ देखो भौतिक जगत में तुम जीवित हो , तुम गति करते हो तुम्हारे भीतर संवेदनाएं उठती हैं , तुम सुख दुःख मह्शूश करते हो , तुम अपने जीवित होने का प्रमाण देते हो | कभी कोशिश की तुमने ये पता करने की कि ये सब कैसे संचालित होता है |” योगी बाबा ने कहा
“ नहीं किन्तु कभी कभी मेरे मन में ये प्रश्न अवश्य आते हैं |” उसने उतर दिया
“ तुम जीवित कैसे हो |” योगी बाबा ने उससे पूछा
“ भोजन , जल , वायु से |” उसने उतर दिया
“ वाह ! तब तो किसी मुर्दे के मुंह में भोजन , जल दे दिया  जाए और किसी युक्ति  से उसके अंदर हवा भरने लगा जाए तब तो वह जीवित हो जाएगा |” योगी अभेदानन्द ने मुस्कुराते हुए कहा |
उसे कोई उतर देते नहीं बना
योगी बाबा बोलने लगे
“देखो हमारा शरीर  जीवित हैं परमात्मा की शक्ति से आत्मा रूप में वही परमात्मा हमारे भीतर विराज कर हमें  जीवित रखे हुए है | और मन के माध्यम से भी वही संचालित करता है हमे | हमारा मन हमेशा बाहर की ओर दौड़ता है क्योंकि यह इसका स्वभाव है | हमारा मन वहीँ जाता है जहाँ हमारा अनुभव है | तुमने अपनी जिन्दगी में जो अनुभव नहीं किये या देखे हों  वहां यह मन कभी नहीं पहुँच पाता | हम बाहर के लोक से जुड़े हुए हैं अपनी पाँचों इन्द्रियों के माध्यम से | इन पाँचों इन्द्रियों की पांच  तन्मात्राएँ हैं जिसे यह मन बहुत कस के पकड़ता है |”
“ये पांच तन्मात्राएँ क्या हैं भगवन |” उसने बीच में हीं पूछा
“ आँख से सम्बन्धित  रूप , जिह्वा से सम्बन्धित  रस , घ्रानेंद्रिय ( नाक ) से सम्बन्धित  गंध , श्रोतेंद्रिय ( कान ) से सम्बन्धित  शब्द , और त्वचा से सम्बन्धित  स्पर्श कुल मिला कर जिन्दगी का यही अनुभव होता है रूप , रस , गंध , शब्द और स्पर्श | इन पाँचों तन्मात्राओं का सम्बन्ध पांच इन्द्रियों के अलावा पांच तत्वों से भी है | अनुभव और भी होते हैं जो इन्द्रिय से परे हैं जैसे जीवन में प्रेम | तो इन इन्द्रियों से तुम ईश्वर को नहीं पकड पाओगे अगर ईश्वर को पकड़ना है तो हृदय में उसके प्रति प्रेम पैदा हो तभी कुछ कुछ वह अनुभव में आता है |

मन की शक्ति अद्भुत है क्योंकि उसके पीछे परमात्मा की शक्ति है | भीतर उतरने के लिए इसी मन का सहारा लिया जाता है | देखो तुम्हारा मन इन्हीं पांच इन्द्रियों और  तन्मात्राओं के अनुभवगत तथ्यों में  तुम्हें   भटकाए हुए  रखता है  | तुम आँख बंद करते हो और तुम्हारा मन देखे हुए दृश्य उत्पन्न कर देता है | तुम समझ सकते हो मन की शक्ति | ठीक उसी युक्ति को भीतर उतरने में मदद ली जाती है तुम्हारा मन जब भीतर जाता है तब भीतर के दृश्यों को तुम्हारे सामने ले  कर आने  लगता है जिसे ध्यान का अनुभव कहते हैं | यह मन सम्पूर्ण शरीर के भीतर विचरण करता है और अंततः अपने स्त्रोत परमात्मा तक पहुँच जाता है | वहां पहुँचते हीं यह उसी में विलीन हो जाता है | यही है अपने भीतर उतरने या ध्यान  का विज्ञान |” योगी अभेदानन्द रहस्यों से पर्दा उठा रहे थे |
वह मन्त्र मुग्ध हो कर सुन रहा था |
“ पांच तन्मात्राओं का सम्बन्ध पांच तत्वों से कैसे है |” उसने पूछा
“ हमारा शरीर पञ्च तत्वों से बना हुआ है यथा पृथ्वी , अग्नि , वायु , जल और आकाश , पृथ्वी की तन्मात्रा गंध है इसके अंदर रूप, रस ,शब्द और स्पर्श भी मौजूद हैं | जल की तन्मात्रा रस है और  इसमें गंध अनुपस्थित है | अग्नि की तन्मात्रा रूप है और इसमें गंध और रस   अनुपस्थित है | वायु की तन्मात्रा स्पर्श है और इसमें रस ,रूप और गंध अनुपस्थित है | आकाश की तन्मात्रा शब्द है और इसमें शेष चारो अनुपस्थित हैं | आकाश से वायु , वायु से अग्नि , अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पति हुई है | इसी क्रम में उत्पति के कारण क्रमश : तन्मात्राओं का लोप या उपस्थिति अन्य तत्वों में है |
गूढ़ ज्ञान की वर्षा हो रही थी इसी बीच नवजवान साधक सच्चिदानन्द का प्रवेश गुफा में हुआ |


 जारी  ............

3 comments:

  1. Me indore ke paas agar me rahta hun dhyaan karna chahta hun par koi sikhane wala nahi he krupaya koi guru batae.

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    1. Bhai ashu meri bhi same condition h m bhi Indore me rhta hu....

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    2. Bhai ashu meri bhi same condition h m bhi Indore me rhta hu....

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