मणिपुर दो शब्दों से बना है मणि और पुर मतलब हुआ
मणियों का नगर | तिब्बत के परम्परा में इसे मणिपद्म भी कहते हैं जिसका अर्थ हुआ
मणियों का कमल | मणिपुर सक्रियता , शक्ति ,इच्छा तथा उपलब्धियों का केंद्र है |
इसकी तुलना सूर्य के तेज गर्मी व् शक्ति से की जाती है जिसके अभाव में इस धरा पर
जीवन की कल्पना संभव नहीं | ठीक उसी तरह मणिपुर चक्र भी विभिन्न अवयवों ,
संस्थानों तथा जीवन की प्रक्रियाओं को नियमित करते तथा शक्ति प्रदान करते हुए
सम्पूर्ण शरीर में प्राण उर्जा के प्रवाह का जिम्मेदार है |
शक्ति की कमी होने पर
यह चक्र एक शक्तिशाली ज्वाला की भाँती न हो कर दहकते हुए एक लाल अंगार की तरह हो
जाता है | ऐसी स्थिति में व्यक्ति निष्क्रिय व् शक्तिहीन होता जाता है | ऐसा
व्यक्ति व्याधियों व् अवसाद से ग्रस्त हो जाता तथा उसमे प्रेरणा की कमी
एवं उतरदायित्वों के प्रति लापरवाही देखने को मिलती है | इसलिए मणिपुर का जागरण न
केवल साधक के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है वरन उनके लिए भी आवश्यक है जो जीवन के
सम्पूर्ण आनन्द की अनुभूति हेतु उत्सुक है
|
कुण्डलिनी
का मूल निवास मूलाधार , घर स्वधिस्थान और प्रथम जागरण का केंद्र मणिपुर है |
ॐ सत्यं परम धिमहि !
खूब
ध्यान कीजिये ध्यान
करने से कोई
हानि नहीं होती
बिना भयभीत हुए
ध्यान करें अगर
गुरु नहीं हैं तो
परमात्मा का हाथ आपके
उपर है इस
भाव को दृढ कर के
ध्यान में बैठे | परमात्मा के लिए ध्यान
में आंसू बहायें
| अच्छा संगीत सुनें instrumental बांसुरी , सितार , जलतरंग , संतूर आदि |
आगे जारी .................
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