योगी बाबा ने आँखें खोली और
उस व्यक्ति से कहा “ भोजन कर लिया तुमने |”
“ जी भगवन |” उस व्यक्ति ने
कहा
“ देखो तुम्हारा जो ये शरीर
है न ! कभी विचार किया तुमने ये किसलिए है
|” योगी बाबा ने पूछा
“ जी कभी कभी ये विचार आता है
मेरे मन में कभी कभी ये भी सोचता हूँ कि
मैं कौन हूँ |” उस व्यक्ति ने कहा
“ यूँ हीं नहीं आता सबके मन
में ऐसे विचार इसका सम्बन्ध पूर्व जन्म से है | तुम पूर्व जन्म में एक उच्च कोटि
के साधक थे किन्तु महामाया की बिछाई जाल में तुम फंस गये और अपने को संभाल नहीं
सके | तुम पथभ्रष्ट हो गये |” योगी बाबा ने कहा
“पूर्वजन्म ...”
“हाँ पूर्वजन्म ! पूर्वजन्म
एक सत्य है समय आने पर मैं तुम्हे तुम्हारे पूर्वजन्म में भी ले जाऊँगा |” योगी
बाबा ने कहा
बगल में बैठा हुआ नौजवान साधक
सच्चिदानन्द बहुत हीं तल्लीनता से दोनों की बातें सुन रहा था |
“देखो ये शरीर जो है न
परमात्मा का दिया हुआ अचूक वरदान है मनुष्यों को | किन्तु परमात्मा के द्वारा
प्राप्त मिले इस वरदान के बावजूद भी मनुष्य न जाने परमात्मा से और क्या क्या
अपेक्षाएं रखता है | शास्त्रों में एक बात कही गयी है ‘ यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे
’ अर्थात जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है | तुम्हें तुम्हारा ये शरीर इसलिए
मिला हुआ है ताकि तुम भी इस शरीर को माध्यम बना कर परमात्मा हो जाओ और क्या
कहूँ | मनुष्य शरीर छोड़ कर किसी और शरीर
में ये संभवाना नहीं |” योगी बाबा ने कहा |
“ किन्तु हे महात्मन मैं इस
शरीर से उस परमात्मा को कैसे जानूँ ?” उस व्यक्ति ने पूछा
“ साधना , ध्यान , भगवत भक्ति
के द्वारा आत्मतत्व परमात्मतत्व को जाना जा सकता है | इसके लिए गुरु की कृपा भी
आवश्यक है |” ऐसा कह कर योगी बाबा अभेदानन्द ने अपने हाथ के अंगूठे को उसके सर के चोटी पर थोडा स्पर्श करा
दिया |
वह व्यक्ति ध्यान में चला गया
|
ध्यानावस्था में उसे योगी
बाबा की आवाज़ सुनाई दी |
“ तुम क्या देख रहे हो |”
योगी बाबा ने पूछा
“ सुनहला और दिव्य प्रकाश
भगवन |” उसने मन हीं मन दोहराया |
“ अपना ध्यान और प्रगाढ़ करो
|” योगी बाबा ने कहा
“ योगी बाबा आप !! मेरे शरीर
में |” वह व्यक्ति अपने आज्ञा चक्र पर प्रकाश पुंज के अंदर योगी बाबा अभेदानन्द का
चेहरा देख कर चौंक गया |
“योगी किसी के भी शरीर में
प्रवेश कर सकते और उचित निर्देशन कर सकते हैं अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा चाहे वे
शरीर में हों या न हों |” योगी बाबा ने कहा
“अच्छा अपनी दृष्टि और
सूक्ष्म करो और ध्यान लगाओ क्या दिखाई देता है तुम्हें तुम्हारे शरीर में प्रकाश के
अलावा |” योगी बाबा ने कहा |
वह व्यक्ति और गहरे ध्यानस्थ
हो गया |और अपने शरीर की यात्रा करने लगा |
“ बाबा... बाबा ”ख़ुशी से चहक
कर मन हीं मन बोल उठा | “ मुझे अपने शरीर में अनगिनत उर्जा के चक्र नजर आ रहें हैं सर से पाँव तक |”
“ठीक है अब
प्रमुख रूप से शक्तिशाली उर्जा के
कितने चक्र तुम्हें दिखाई
देते हैं इसकी खोज करो |”
“ बाबा जी मुझ पर अजीब सी मस्ती छा रही है मैं बता नहीं सकता |
मैं धीरे धीरे किसी अनजान लोक में खोता जा रहा हूँ मेरे प्रभु | मेरी सारी चेतना
सिमट कर सर के उपरी भाग पर चली जा रही है | योगी बाबबबबब.......|”
पूरी तरह बाबा को पुकार भी
नहीं पाया अपनी चेतना में डूब गया था वह |
“सच्चिदानन्द यह समाधिस्थ हो
चूका है लाओ इसे यहाँ लेटा दो |” योगी बाबा ने नौजवान साधक को संबोधित करते हुए
कहा |
“जी गुरुवर |” कह कर उस
व्यक्ति को सच्चिदानन्द ने बाबा के आसन पर बाबा के बगल में लिटा दिया |
जारी .............
जारी .............
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