तभी एक नौजवान सा सन्यासी योगी बाबा के गुफा में
प्रवेश किया | काली काली जटाएं , गठीला बदन , ऊँची कद काठी करीब छ: फीट के लगभग |
ललाट पर एक अद्भुत चमक | आँखों में तेज |
उसने प्रवेश करते हीं योगी बाबा के पैरों पर
शाष्टांग प्रणाम किया | तभी उसने दृष्टि वहां बैठे उस व्यक्ति पर डाली | वहां “ आदित्य गुफा के नजदीक एक शहरी दल दो तीन दिनों से पड़ाव डाले हुए है | उस
दल का कोई व्यक्ति वहां उस दल से बिछड़ गया है लोग उसी की तलाश और इन्तजार कर रहें
हैं | तुम उसी दल के भटके हुए वह व्यक्ति
हो मैं यह सूचना देने तुम्हें आया हूँ | “ नवजवान
साधक ने कहा
योगी बाबा उस व्यक्ति के तरफ इंगित करते हुए कहें
“ इसे इसके दल के पास ले जाओ | इसे दल से मिलवा दो |”
और हाँ बेटा दल को सूचना दे कर तुम फिर यहाँ आ
जाना | अब जाओ |” योगी बाबा ने उस व्यक्ति से कहा |
“जी जैसा आदेश | “ यह कह कर वह व्यक्ति उस नवजवान
साधक के साथ निकल पड़ा |
वहां से चार पांच किलोमीटर पर आदित्य गुफा था
जहाँ दल ने पड़ाव डाला था | दूर से लोगों ने उस व्यक्ति को नवजवान साधक के साथ आते
हुए देखा | दल में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी | वह व्यक्ति दल के सभी लोगों के साथ मिला
| और बाद में आने का आश्वासन दे कर फिर से उस नवजवान साधक के साथ योगी बाबा के
गुफा की ओर चल पड़ा | जैसे उसके पैरों में पंख लगे हुए थे |
“ तुम आ गये |” योगी बाबा ने उसे संबोधित करते
हुए कहा |
“ जी प्रभु |” उस व्यक्ति ने जबाब दिया |
“ सच्चिदानन्द
जरा इसे भ्रमण करा लाओ |” उस नवजवान साधक के नाम को संबोधित करते हुए योगी बाबा ने
उसे आदेश दिया |
वह व्यक्ति योगी सच्चिदानन्द के साथ भ्रमण को
निकल पड़ा |
रास्ते में चलते चलते उस व्यक्ति ने योगी बाबा के
बारे में योगी सच्चिदानन्द से पूछा “ ये बाबा कौन हैं |”
सच्चिदानन्द उस व्यक्ति के तरफ देख कर मुस्कुराए
और कहा | “ यहाँ इस हिमालय में बहुत से स्थल हैं जो की गुप्त हैं , जो साधारण
व्यक्तियों के लिए दृश्य नहीं हैं | वहां सदियों सदियों से ऋषि महर्षि अपनी साधना
करते हैं | कुछ साधनाएं तो उस अदृश्य लोक में हो सकती है किन्तु कुछ साधनाओं के
लिए यह दृश्य लोक आवश्यक है | तुम जिस संत के बारे में पूछ रहे हो वे उसी अदृश्य
लोक के महासंत स्वामी अभेदानन्द हैं | अभी दृश्य लोक में इस स्थान पर रह कर इस
गुफा में साधना कर रहें हैं लेकिन कोई सांसारिक व्यक्ति उन्हें नहीं देख सकता |
तुम पर उनकी अगाध कृपा है इसलिए तुम उन्हें देख पाए |” सच्चिदानन्द ने कहा
“क्या मैं उस अदृश्य लोक के साधकों का दर्शन कर
सकता हूँ |” उस व्यक्ति ने पूछा
“ तुम तो उस लोक के साधकों का दर्शन अपने सूक्ष्म
शरीर से प्रकाश रूप में कर चुके हो महासंत अभेदानन्द की मदद से |”
उस नवजवान साधक का उतर सुन कर वह व्यक्ति अवाक रह
गया और मन हीं मन सोचने लगा इसे कैसे मालूम हुआ |
जारी .........................
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