हिमालय का दिव्य वातावरण ! चारो तरफ बर्फ के सफ़ेद
चादर से ढके हुए विशाल पर्वत | सभी तरफ एक
सिहरन पैदा करने वाली शान्ति | पर्वतों के बिच कल कल करती हुई बहती मंदाकिनी | हरे
भरे घने देवदार के वृक्षों की दिव्य सुगंध चारो तरफ |
पर्वत
में एक छोटी सी गुफा | गुफा में दस बाई पन्द्रह फीट का जगह मात्र | गुफा के अंदर
छोटी छोटी शिलाओं को जोड़ कर बनाया गया चार बाई तीन का एक आसन | आसन पर कम्बल बिछा
हुआ है | उस आसन पर विराजमान एक योगी | गहन ध्यानस्थ समाधि अवस्था में | योगी के सर
पर काली काली जटाएं विराज रही हैं | भाल पर एक अद्भुत तेज | चेहरे पर शान्ति |
आँखें बंद अंदर के किसी लोक का दीदार करती हुई |
एक
अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो सैलानी था अपने दल से बिछड़ कर मार्ग भटक गया है | वह अंदर
से आकुल व्याकुल है | भटकता हुआ गुफा के पास से निकल रहा है पता नहीं उसके मं में
क्या सूझा वह गुफा के अंदर झांक बैठा | गुफा के अंदर एक ध्यानस्थ योगी को देख कर वह
आश्चर्यचकित हुआ तथा मन हीं मन उसे हिम्मत
भी आई सोचा चलो कोई तो मिला | अपने अंदर हिम्मत जुटा कर वह गुफा में प्रवेश कर गया
| गुफा के अंदर घुसते हीं उसे अजीब सी शान्ति ने तथा मस्ती ने घेर लिया |
ध्यानस्थ
योगी को टोकने की हिम्मत तो उसे नहीं हुई | वह चुपचाप वहीँ निचे पालथी लगा कर बैठ
गया |और अपलक उस योगी को निहारने लगा | मन हीं मन सोचने लगा मैंने अनेकों लोगों से सुना तथा अपने धर्म ग्रन्थों में पढ़ा भी है सिद्ध योगियों के बारे में कहीं ये भी उनमे से
एक तो नहीं | मन में तरह तरह के ख्याल आने लगे | उसने रामायण तथा महाभारत जैसे
धर्मग्रन्थों का हल्का अध्यन किया था | सोचने लगा कहीं ये रामायण काल के महर्षि वशिष्ठ तो नहीं या राजर्षि विश्वामित्र
तो नहीं | कौन है ये महापुरुष जिनके सान्निध्य मात्र से से रोम रोम में पुलकन का
आभास हो रहा है | ( आज के युग में अगर महापुरुषों , सिद्धों को पहचानने में दिक्कत
हो तो ये कसौटी है उनके समीप सिर्फ पहुँचने पर अद्भुत शांति और आनन्द का आभास होगा
उनके शरीर से निकलने वाली दिव्य उर्जा मात्र आपको तृप्त कर देगी )
उसका
मन हिरण की तरह कुलांचे मार रहा था घंटो वह बैठा रहा | चाह कर भी वहां से जाने की
इच्छा के वावजूद वह वहां से हिल न पाया जाने कौन सा आकर्षण उसे बांधे हुए था |
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