Friday, 17 June 2016

Secret Himalayas रहस्यमयी हिमालय 7

शाम ने  रात्री से बाँहें छुड़ा ली थी वह आगे निकल चुकी थी | घना अँधेरा अपने पैर बढ़ा चूका था | रात्री आसमान में उगे तारों का स्वागत कर रही थी | चाँद भी पूर्वी  क्षितिज पर बादलों में  लुका छिपी कर रहा  था  | मद्धिम चांदनी बिखर रही थी | वह सप्तमी का चाँद था | गंगा  की लहरों पर   चाँद का प्रकाश चांदी के आभा जैसा टिमटिमा रहा था | पतितपावनी ममतामयी  माँ गंगा  जो युगों युगों से पूर्वजों को तारती चली आ रही है , कलकल करती हुई मैदानों में अपना वात्सल्य बिखेरने को दौड़ पड़ी थी |
योगी बाबा स्वामी अभेदानन्द अभी भी ध्यानस्थ थे | वे दोनों बाबा की गुफा में पहुंचे और कम्बल के बिछाए आसन पर निचे  बैठ गये |
योगी  बाबा ने आँखें खोली मंद मंद मुस्कान उनके चेहरे को और भी कांतिमय बना रहा था | गुफा में कोई प्रकाश का स्त्रोत नहीं था फिर भी जीरो वाट के प्रकाशित  बल्ब के जितना रजतमयी श्वेत प्रकाश गुफा में बिखरा हुआ था | ऐसा प्रतित हो रहा था कि ये प्रकाश योगी बाबा के शरीर से हीं निकल रहा हो | मंद मंद मीठी और दिव्य सुगंध मन को शीतलता प्रदान कर रहें थे |
तभी बाहर से  देवी सदृश एक  नवयुवती एक  हाथ में भोजन का थाल तथा दुसरे में फलों का एक डलिया ले कर गुफा में प्रवेश की | उसने महायोगी अभेदानन्द के चरणों में प्रणाम अर्पित कर सारी सामग्री उनके निकट रख दिया | और पुन : बाहर निकल गयी |
“ भूख लग गयी होगी |” योगी बाबा ने उस व्यक्ति से पूछा |
वह व्यक्ति कुछ बोला नहीं किन्तु उसका मौन स्वीकार का समर्थन कर था |
“ अच्छा जाओ गंगा में हाथ मुंह धो लो |” योगी बाबा का आदेश हुआ |
दोनों गुफा से निकल पड़े गंगा में हाथ मुंह धोया और वापस गुफा में आ कर अपने स्थान पर विराजित हुए  |
“ लो थाली पकड़ो भोजन कर लो |” बाबा ने उस व्यक्ति को थाली देते हुए कहा |
“सच्चिदान्द तुम भी कुछ भोजन कर लो |” योगी बाबा ने कहा
सच्चिदानन्द ने फलों की डलिया से एक दो फल निकाले और खाने लगें |
उस व्यक्ति ने भी  बाबा से थाली ले ली थी और भोजन की तैयारी करने लगा | थाली में दो कचौरी , दो तीन सब्जी , दो मिठाई , थोडा सा दही और शक्कर तथा एक चमचमाती हुई चमच थी |
“किन्तु बाबा जल तो है हीं नहीं भोजन के साथ आवश्यकता पड़ी तो बीच बीच में |” उस व्यक्ति ने उत्सुकतावश बाबा से पूछा |
योगी बाबा ने कहा “ भोजन के साथ साथ जल नहीं ग्रहण करना चाहिए यह यौगिक और आयुर्वेदिक  निर्देश है इससे जठराग्नि कमजोर होती है और पाचन सही नहीं होता | भोजन के  आधा एक घंटे बाद जल ग्रहण करना चाहिए |” ( यह सत्य है भोजन के एक घंटा पहले जल ग्रहण करना चाहिए  और भोजन के आधा एक घंटा बाद जल ग्रहण करना चाहिए  , बहुत आवश्यक हो तो बीच बीच में एक एक घूँट जल या छांछ लेना चाहिए  हैं वह भी  दो तीन बार से ज्यादा नहीं  )
दो कचौरियां देख कर तो उसका मन  खिन्न हो गया था और सभी वस्तुएं भी कम मात्रा  में हीं थी जबकि भूख उसे जोरों से लगा हुआ था | ( जब कोई सिद्ध  संत महात्मा प्रसाद में कुछ खाने को दे तो बिना संकोच ग्रहण कर लेना चाहिए जबकि इस व्यक्ति का मन खिन्न हो गया था )
योगी बाबा तब तक ध्यानस्थ हो चुके थे |

उस व्यक्ति ने  भोजन करना प्रारम्भ किया | दिव्य स्वाद  था उस भोजन का  अद्भुत जो उसने कभी  चखी न थी उसका भूख और दुगुना हो गया | वह एक तरफ तो भोजन कर रहा था तो दूसरी तरफ निरंतर महायोगी के आभामयी  चेहरे पर दृष्टि  गडाये हुए थे | वह निरंतर अपने हाथों से मुंह में कौर भी डाल रहा था और योगी बाबा के चेहरे से निकलती आभा को अपनी आँखों से पी भी रहा था | लगभग दस मिनट तक वह भोजन करता रहा | जब उसके भूख को तृप्ति मिली तो वह चौंका और अपनी थाली पर नजर डाली भोजन सामग्री अभी भी उसके थाली में मौजूद थी जबकि उसका पेट भोजन कर के जबाब दे चूका था | वह थोडा आश्चर्यचकित था किन्तु ज्यादा नहीं क्योंकि उसके लिए सबसे आश्चर्यचकित करने वाली घटना पहले घट चुकी थी उपर की उंचाई से हिमालय के दिव्य दर्शन करना |
भोजन समाप्त करने के बाद जो असल में समाप्त नहीं हुआ था किन्तु उसकी इच्छा तृप्त हो चुकी थी स्वामी सच्चिदानन्द की ओर अपना दृष्टिपात किया जो की अपना फल खा कर समाप्त कर चुके थे  |
सच्चिदानन्द ने उस व्यक्ति से पूछा “ भोजन कर चुके !”
“ जी अब और इच्छा नहीं है मैं तृप्त हो गया |” उस व्यक्ति ने कहा
“अच्छा बाहर चलो थाली ले कर बाहर गंगा में हाथ मुंह  धो लेना | बची हुई कोई सामग्री फेंकना नहीं | ”
बाहर निकलने के बाद सच्चिदानन्द ने एक चट्टान की ओर इशारा करते हुए उससे कहा “ थाली वहां रख दो |”
उसने वह थाली उस चट्टान पर रख दी
और दोनों गंगा की ओर बढ़ चले हाथ मुंह धोने |
हाँथ मुंह धोने के बाद लौटते वक्त उस व्यक्ति ने उस चट्टान की ओर नजर दौडाया जहाँ थाली राखी थी किन्तु अब थाली वहां मौजूद नहीं थी गायब हो चुकी थी |
वे दोनों  पुन: गुफा में आ कर योगी बाबा के निकट पूर्ववत बैठ गये |

जारी .........................

4 comments:

  1. बहुत अच्छा आध्यात्मिक कथा हैअ

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  2. आत्मा और मन क्या दोनो अलग है ?

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    1. मन जैसा कोई चीज नहीं होता मन भ्रम है जबकि आत्मा सत्य ।

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