बौद्ध
तथा अनेक तांत्रिक परम्पराओं में कुण्डलिनी का वास्तविक जागरण मणिपुर चक्र से हीं
माना जाता है न कि मूलाधार से |कई तांत्रिक परम्पराओं में मूलाधार तथा स्वाधिष्ठान
की चर्चा तक नहीं की गयी है | क्योंकि उनके अनुसार ये चक्र पशु जीवन के उच्च
स्तरों से सम्बन्धित है | मतलब हुआ पशु जीवन में चक्र जागरण का
सबसे ऊँचा स्तर स्वाधिष्ठान चक्र है , पशुओं के लिए सहस्त्रार जागरण दुर्लभ है |
यहीं इसी बात से मानव जीवन और मानवीय शरीर
की महता सिद्ध होती है | और हमें समझ में आता है कि मानवीय शरीर क्यों आवश्यक है | तो प्रथम जागरण
का केंद्र मणिपुर हीं है ऐसा इसलिए कि इस चक्र के जागरण के बाद अधोगामी होने की
संभावना नहीं रहती | यहाँ तक जिस किसी भी साधक का चक्र जागृत हो गया हो तो उसके
बाद अब कुण्डलिनी निचे नहीं गिर सकती | जबकि स्वाधिष्ठान तक पहुँच कर कुण्डलिनी के
फिर से निचे गिरने की संभावना रहती है |
मणिपुर तक जागरण पहुँचने के बाद जागरण
सुनिश्चित होता है | मणिपुर में सजगता को स्थिर रखना तथा जागरण को जारी रखना थोडा
कठिन होता है | इसलिए साधक को यहाँ पहुँच कर साधक को अपने प्रयास में लगनशील होना
तथा दृढप्रतिज्ञ होना आवश्यक है | यदि सांसारिक कार्यों को करते हुए भी आपका जीवन
अध्यात्मिक है , आप वगैर किसी संकोच के रूचि लेते हुए योगाभ्यास और ध्यान करते हैं
| और उच्चतर जीवन के प्राप्ति हेतु गहरी प्यास है और इसके लिए गुरु की तलाश कर
रहें हैं तो अब आपकी कुण्डलिनी मूलाधार में नहीं है | बल्कि वह एक उच्च केंद्र
मणिपुर तक पहुँच गयी है |
आगे
जारी .................
ध्यान करते रहें अपने नित्य दैनिक के कर्मों में
से सिर्फ पैंतालिस मिनट , एक घंटा निकाल
कर आप ध्यान करते हैं तो आपको स्वाद आने लगेगा , रस मिलने लगेगा अध्यात्म का | और
स्वाद आने भर की देर है फिर उसके बाद तो बाकी कार्य परमात्मा सम्पन्न करेगा | ॐ के
जाप से ध्यान का रस मिलना प्रारम्भ हो जाता है |
ॐ
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