एक नवयुवक एक महात्मा के पास गया | महात्मा भी थे उच्च कोटि के उम्र
लगभग नब्बे के करीब | युवक महात्मा के पास पहुँच कर उनके सामने हाँथ जोड़ कर विनती की | उसने कहा – “ महात्मन
ध्यान क्या है , समाधि क्या है , परमात्मा क्या है |” युवक के आँखों में प्यास थी
| उसकी जिज्ञासा और प्यास देख कर महात्मा ने कहा – “ इसमें देर किस बात की लो जान
लो |” ऐसा कह कर महात्मा ने अपने पैर के दायें अंगूठे से युवक के सर के चोटी ( जहाँ
ब्राह्मण चुटिया रखते हैं , सहस्त्रार ) पर स्पर्श कराया | युवक निढाल हो कर गिर
पड़ा | उसे अपनी सुध बुध न थी | घंटों वह उस अवस्था में पड़ा रहा | जब उसकी चेतना
वापस आयी तब महात्मा उसके आँखों में देख कर मुस्कुरा रहे थे | युवक भाव शून्य
नेत्रों से महात्मा को निहारता रहा घंटों |
कुछ
देर बाद महात्मा ने युवक से पूछा और कुछ ? युवक ने अपने हाथ जोड़ कर कहा नहीं | फिर
युवक के मन का कीड़ा कुलबुला गया और महात्मा से पूछ बैठा - “यह क्या था |” महात्मा ने कहा मैंने – “ अपने
तपो बल से तुम्हारे उपर क्षणिक शक्तिपात किया था ताकि तुम परमात्मा की शक्ति को
मह्शूश कर सको | अब तुम एकांत रहते हुए सदा मौन तथा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने दोनों भ्रू मध्यों के बीच आज्ञा चक्र पर
ध्यान लगाते रहना | जब तुम आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाओगे तब मैं तुम्हारे सम्पर्क
में रहूँगा |” इतना कह कर महात्मा ने युवक को जाने का इशारा किया | युवक वहां से
प्रस्थान कर गया |
करीब
आधी रात्री को वह युवक गंगा के किनारे बैठ कर महात्मा के कहे अनुसार ध्यान लगाने
लगा | कुछ देर तो कुछ भी पता न चला सिर्फ अन्धकार हीं अन्धकार दिखे | किन्तु थोडा
प्रयास के बाद एक छोटा सा प्रकाश का बिंदु उसे नजर आया | वह उसी बिंदु पर ध्यान
केन्द्रित करने लगा | वह देखता है कि वह छोटा प्रकाश पुंज कभी तो बिलकुल छोटा और
कभी बढ़ कर सिक्के के अकार का हो जाए बिलकुल श्वेत चांदी के रंग का प्रकाश | वह यह
खेल को घंटो देखता रहा | एकाएक वह छोटा प्रकाश पुंज बढ़ कर बड़ा अकार ले लिया और
उसमे महात्मा का चेहरा नजर आया | महात्मा ने उस प्रकाश पुंज के अंदर से पूछा – “
क्यों सब ठीक चल रहा है न !”
उस
युवक का गला रुन्द्द आया कुछ भी बोलते न बन पड़ा | वह रोता रहा घंटो रोता रहा |
उसका ध्यान कब टूट गया उसे पता हीं नहीं चला |
- कल्पना पर आधारित
किन्तु सत्य से ओत प्रोत कथा
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