आराम से सुखासन में
बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी हो |
दो चार लम्बी गहरी
साँसें लें और छोड़ दें | आराम से आहिस्ता आहिस्ता |
आँखें बंद हों |
ध्यान को आज्ञा चक्र
( दोनों भौं के बीच में ) पर ले आयें |
तीन से पांच मिनट तक
आज्ञा चक्र पर मन को ठहराए रहें |
अब इसके बाद
ध्यान को विशुद्धि
चक्र ( कंठ में एक हड्डी उभरी हुई है वहां पर ) पर ले आयें |
अब मन हीं मन हं (
HAM ) मन्त्र
का उच्चारण करें | ध्यान रहे जाप मानसिक हो बिलकुल बोल कर नहीं |
20 से 25 मिनट तक
कंठ पर यानी विशुद्धि चक्र पर ध्यान को
रखें |
पुनः ध्यान को आज्ञा
चक्र पर ले आयें | दो मिनट तक ध्यान को आज्ञा चक्र पर रखें |
इसके बाद ध्यान से
बाहर आ सकते हैं |
इस ध्यान प्रयोग के
सतत अभ्यास से वाणी में मधुरता आती है | जो व्यक्ति संगीत का अभ्यास करते हैं
उन्हें ये ध्यान प्रयोग अवश्य करना चाहिए | साधक को भूख प्यास पर विजय मिलने लगती
है | ऐसा विशुद्धि चक्र के निकट स्थित कूर्म नाडी के सक्रीय होने से होता है भूख प्यास पर
विजय | विशुद्धि चक्र के निकट एक और केंद्र है जिसका कार्य एक रेडिओ की तरह होता
है आम स्थिति में यह केंद्र सक्रीय नहीं होता किन्तु विशुद्धि चक्र पर ध्यान
केन्द्रित करने से यह केंद्र सक्रीय होने लगता है | यह चक्र जब सक्रीय होने लगे तो
आप दुसरे के मन की बात समझने लगते हैं | दूसरा क्या सोच रहा है आप जान सकते हैं
किन्तु यह अवस्था लम्बे अभ्यास के बाद आता है |
देखने में यह प्रयोग
साधारण है किन्तु इसका अभ्यास कर के खुद
इस प्रयोग की महिमा जान सकते हैं |
इति सत्यम ! इति शुभम |
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