सभी साधकों के सामने पंच मकार का रहस्य खुल रहा था | संध्या ढल चुकी थी रात्री ने अपने पाँव आगे
बढ़ा दिए थे | गुफा के अंदर मंद मंद स्वनिर्मित पिला प्रकाश बिखरा हुआ था | सम्पूर्ण गुफा में कभी
चन्दन कभी मोगरे की तो कभी गुलाब की खुशबू
की लहर थोड़े थोड़े समय पर फ़ैल जाती थी |
महायोगी अभेदानन्द ने कहा
“ अच्छा आओ तुम सभी को कुछ दिखाता हूँ | यहाँ उपस्थित
सभी व्यक्ति एक दुसरे का हाथ पकड लो फिर मुझे और स्वामी ब्रह्मानन्द को चारो तरफ
से घेर कर बैठ जाओ और आँखें बंद कर लो |”
कुछ हीं क्षणों में सबने देखा कि वे जिस अवस्था में
बैठे हुए थे उसी अवस्था में धरती के उपर उंचाई पर
हैं और अपने आप को सभी वायु के सामान हल्का मह्शूश कर रहें हैं |
सभी ने पाया की वे जिस जगह पर उपर अवस्थित हैं वहां से
गंगा नदी में प्रकाश की झिलमिलाहट नजर आ रही थी
| चिताओं के जलने की लपट भी स्पष्ट नजर आ रही थी | उन्होंने देखा चिताओं के
अगल बगल में कुछ लोग खड़े हैं कुछ चिताओं को जलाने की कोशिश कर रहें हैं | विचित्र
बात ये थी की चिताओं के नजदीक कुछ मानव आकृतिनुमा श्वेत धुंए के समान आकृतियाँ चिताओं के उपर चिताओं के
चारो तरफ मंडरा रही थी |
योगी बाबा ने सबों को संबोधित करते हुए कहा
“अभी हम इस पृथ्वी के सबसे प्राचीन और पवित्र नगरी काशी के उपर हैं और जो चिताएं तुम देख रहे
हो वे मणिकर्णिका घाट तथा हरिश्चन्द्र घाट पर जल रहें हैं | ये काशी नगरी शिव को
अत्यंत प्रिय है | यहाँ शिव निवास करते हैं |
तभी एक साधक ने पूछा
“ वहां निचे एक ख़ास स्थान से चांदी के समान हल्का
प्रकाश निकल कर चारो तरफ बिखर रहा है ये क्या है |”
योगी बाबा ने कहा
“ वो जो तुम प्रकाश देख रहे वह जहाँ से निकल रहा है
वहीँ बाबा काशी विश्वनाथ का प्रसिद्ध शिवलिंग स्थापित है और वहां से निकल कर प्रकाश
सर्वत्र बिखर रहा है | तुम सभी रात्री में उपर से मेरे यौगिक शक्ति के प्रवाह के
कारण ये देख पा रहे हो | ये दृश्य सिर्फ सिद्ध साधकों के द्वारा या जिन पर सिद्ध
साधकों की कृपा होती है वही देखते हैं | कोई भी सिद्ध साधक उपर से ये प्रकाश भारत
में स्थित बारह के बारहों शिव लिंग से निकलता हुआ देख सकता है | इसलिए इन्हें
ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है | वैसे तो इस परम जागृत शिव लिंग के ऊर्जा का अहसाह
काशी नगरी में प्रवेश करने वाला प्रत्येक आम व्यक्ति भी करता है | काशी में प्रवेश
करते हीं विशेष उर्जा का स्पंदन सभी कोई मह्शूश कर सकता है |
एक और साधक ने पुन : एक सवाल पूछा
“ वहां चिताओं के अगल बगल और उपर उडती हुई धुंए के सामान मानव आकृतियाँ क्या हैं क्योंकि वे तो
मानव प्रतित नहीं होती |”
महायोगी अभेदानन्द के चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी दौड़ गयी | उन्होंने कहा
“ वे जो आकृतियाँ देख रहे हो वे उन्हीं चिताओं में जलते
हुए लोगों की आत्माएं हैं | उन्हें
आत्मा कहना भी उचित नहीं क्योंकि
वे शरीर और आत्मा के बीच की कड़ी हैं | भेद सिर्फ इतना है कि उनका भौतिक शरीर अब
नहीं है | उनका शरीर और सगे सम्बन्धियों
से मोह कुछ ऐसा है कि मृत्यु के बाद भी
अपने जलती हुई लाशों को देखने के वावजूद उस शरीर से मोह भंग नहीं हो रहा | वे वहां
से तब तक नहीं हटेंगी जब तक की पूर्ण शरीर नहीं जल जाता | कुछ आत्माएं तो अपने सगे
सम्बन्धियों के साथ अपने पूर्व के घर तक
भी जाते हैं | किन्तु शरीर के अभाव में कोई
चारा न चलते देख कर पुन : शरीर प्राप्ति हेतु पुनर्जन्म लेते हैं गर्भ में प्रवेश
कर के एक नन्हे शिशु के रूप में |”
रात्री के करीब दस बज रहें होंगे | घाटों की चहल पहल
कुछ कम होती जा रही थी | हाँ किन्तु मणिकर्णिका और हरिश्चन्द्र घाट पर देर रात
घिरते हीं चहल पहल बढ़ रही थी |
*
जारी .....