Sunday, 25 June 2017

रहस्यमयी हिमालय 17

सभी साधकों के सामने पंच मकार का रहस्य खुल रहा था  | संध्या ढल चुकी थी रात्री ने अपने पाँव आगे बढ़ा दिए थे | गुफा के अंदर मंद मंद स्वनिर्मित पिला  प्रकाश बिखरा हुआ था | सम्पूर्ण गुफा में कभी चन्दन  कभी मोगरे की तो कभी गुलाब की खुशबू की लहर थोड़े थोड़े समय पर फ़ैल जाती थी |
महायोगी अभेदानन्द ने कहा
“ अच्छा आओ तुम सभी को कुछ दिखाता हूँ | यहाँ उपस्थित सभी व्यक्ति एक दुसरे का हाथ पकड लो फिर मुझे और स्वामी ब्रह्मानन्द को चारो तरफ से  घेर कर बैठ जाओ और आँखें बंद कर  लो |”
कुछ हीं क्षणों में सबने देखा कि वे जिस अवस्था में बैठे हुए थे उसी अवस्था में धरती के उपर उंचाई पर  हैं और अपने आप को सभी वायु के सामान हल्का मह्शूश कर रहें हैं |
सभी ने पाया की वे जिस जगह पर उपर अवस्थित हैं वहां से गंगा नदी में प्रकाश की झिलमिलाहट नजर आ रही थी  | चिताओं के जलने की लपट भी स्पष्ट नजर आ रही थी | उन्होंने देखा चिताओं के अगल बगल में कुछ लोग खड़े हैं कुछ चिताओं को जलाने की कोशिश कर रहें हैं | विचित्र बात ये थी की चिताओं के नजदीक कुछ मानव आकृतिनुमा श्वेत  धुंए के समान आकृतियाँ चिताओं के उपर चिताओं के चारो तरफ मंडरा रही थी |
योगी बाबा ने सबों को संबोधित करते हुए कहा
“अभी हम इस पृथ्वी के सबसे प्राचीन और पवित्र  नगरी काशी के उपर हैं और जो चिताएं तुम देख रहे हो वे मणिकर्णिका घाट तथा हरिश्चन्द्र घाट पर जल रहें हैं | ये काशी नगरी शिव को अत्यंत प्रिय है | यहाँ शिव निवास करते हैं |
तभी एक साधक ने पूछा
“ वहां निचे एक ख़ास स्थान से चांदी के समान हल्का प्रकाश निकल कर चारो तरफ बिखर रहा है ये क्या है |”
योगी बाबा ने कहा
“ वो जो तुम प्रकाश देख रहे वह जहाँ से निकल रहा है वहीँ बाबा काशी विश्वनाथ का प्रसिद्ध  शिवलिंग स्थापित है और वहां से निकल कर प्रकाश सर्वत्र बिखर रहा है | तुम सभी रात्री में उपर से मेरे यौगिक शक्ति के प्रवाह के कारण ये देख पा रहे हो | ये दृश्य सिर्फ सिद्ध साधकों के द्वारा या जिन पर सिद्ध साधकों की कृपा होती है वही देखते हैं | कोई भी सिद्ध साधक उपर से ये प्रकाश भारत में स्थित बारह के बारहों शिव लिंग से निकलता हुआ देख सकता है | इसलिए इन्हें ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है | वैसे तो इस परम जागृत शिव लिंग के ऊर्जा का अहसाह काशी नगरी में प्रवेश करने वाला प्रत्येक आम व्यक्ति भी करता है | काशी में प्रवेश करते हीं विशेष उर्जा का स्पंदन सभी कोई मह्शूश कर सकता है |
एक और साधक ने पुन : एक  सवाल पूछा
“ वहां चिताओं के अगल बगल और उपर उडती हुई धुंए के  सामान मानव आकृतियाँ क्या हैं क्योंकि वे तो मानव प्रतित नहीं  होती |”
महायोगी अभेदानन्द के चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी  दौड़ गयी | उन्होंने कहा
“ वे जो आकृतियाँ देख रहे हो वे उन्हीं चिताओं में जलते हुए लोगों की आत्माएं हैं | उन्हें  आत्मा  कहना भी उचित नहीं क्योंकि वे शरीर और आत्मा के बीच की कड़ी हैं | भेद सिर्फ इतना है कि उनका भौतिक शरीर अब नहीं है |  उनका शरीर और सगे सम्बन्धियों से  मोह कुछ ऐसा है कि मृत्यु के बाद भी अपने जलती हुई लाशों को देखने के वावजूद उस शरीर से मोह भंग नहीं हो रहा | वे वहां से तब तक नहीं हटेंगी जब तक की पूर्ण शरीर नहीं जल जाता | कुछ आत्माएं तो अपने सगे सम्बन्धियों के साथ अपने पूर्व के   घर तक भी जाते  हैं | किन्तु शरीर के अभाव  में  कोई चारा न चलते देख कर पुन : शरीर प्राप्ति हेतु पुनर्जन्म लेते हैं गर्भ में प्रवेश कर के एक नन्हे  शिशु के रूप में |”
रात्री के करीब दस बज रहें होंगे | घाटों की चहल पहल कुछ कम होती जा रही थी | हाँ किन्तु मणिकर्णिका और हरिश्चन्द्र घाट पर देर रात घिरते हीं चहल पहल बढ़ रही थी |

*
जारी .....

रहस्यमयी हिमालय 16

दीक्षांत समारोह समाप्त हुआ
महायोगी अभेदानन्द ने बोलना प्रारम्भ किया
“ तंत्र कल्याण का विज्ञान है स्व कल्याण का | तन्त्र के माध्यम से योगी विभिन्न बिजमन्त्रों के द्वारा कुल कुण्डलिनी शक्ति को मूलाधार से उठा कर सहस्त्रार तक ले जाते हैं फिर सहस्त्रार  से पुन : मूलाधार पर ले आते हैं | तंत्र में पञ्च मकार सेवन का विधान है | ये पञ्च मकार हैं – मांस , मध् , मीन , मुद्रा और मैथुन |”
वहां उपस्थित सभी साधक बहुत हीं तल्लीनता से योगी बाबा की बातें सुनते हुए किसी दुसरे हीं लोक में खो गये थे ऐसी ओजस्विता थी उनकी वाणी में |
महायोगी ने आगे कहना प्रारम्भ किया |
"सोमधारा क्षरेद या तु ब्रह्मरंध्राद वरानने|
पीत्वानंदमयास्तां य: स एव मद्यसाधक:||
महायोगी ने रुद्रयामल तन्त्र का ये श्लोक सुनाया | फिर इसके बाद इसका अर्थ उन्होंने इस प्रकार बताया |
“जिह्वा मूल या तालू मूल में जिह्वाग्र ( जीभ का अगला भाग ) को सम्यकृत करके ब्र्ह्मारंध्र ( सिर के चोटी से ) से झरते हुए आज्ञा  (भ्रू मध्य ) चक्र  के चन्द्र मंडल से हो कर प्रवाहमान अमृतधारा को पान करने वाला मद्य साधक कहा जाता है |” 
 जिह्वाग्र ( जीभ का अगला  भाग ) को तालू में लगाना हीं खेचरी मुद्रा कहलाता है ( साधक बिना किसी योग्य गुरु के इस अभ्यास को न करें क्योंकि अमृत के साथ विष का भी स्त्राव उसी स्थान से होता है इसमें गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए )
यह वास्तविक मद्यपान कहलाता है |”
एक साधक ने पूछा
“ आज कल के साधक जो बाहरी  मदिरा पान करते हैं क्या ये उचित है मेरे प्रभु |”
महायोगी ने कहना प्रारम्भ किया
“ बाहरी मदिरा पान का भी एक साधक के दृष्टिकोण से महत्व है | कुण्डलिनी शक्ति के उर्ध्वगमन होने पर भारी मात्रा में उर्जा का बहाव शरीर में होता है जो कभी कभी सच्चे साधकों के लिए असहनीय हो जाता है इसी उर्जा के वेग का  प्रभाव कम मह्शूश हो इसलिए मदिरा के माध्यम से  मस्तिष्क को शिथिल करने के लिए यदा कदा उच्च किस्म के साधकों को मदिरापान करना पड़ता है | स्मरण रहे भोग के लिए मदिरापान करना पाप है | औषध रूप में इसका प्रयोग किया जाता है |
सभी तन्त्र साधकों को ये स्मरण रखना चाहिए देखा देखी बिना सोचे समझे तन्त्र मार्ग का हावाला दे कर कभी भी मदिरापान न करें हाँ जब साधना के क्रम  में आवश्यकता मह्शूश हो तब गुरु आज्ञा से हीं बाहरी मदिरा का पान करें |
किन्तु फिर भी साधक को ये प्रयास करना चाहिए कि बाहरी मदिरापान की आवश्यकता न हीं पड़े |
वास्तविक मदिरापान तो ब्रह्मारन्ध्र से गिरते हुए  अमृत को पीना हीं है इस मदिरापान के आनन्द को वर्णन नहीं किया जा सकता |”
योगी बाबा ने समझाया |
आगे योगी बाबा ने कहा
“ आम व्यक्ति एवं सभी जीवों में  जो अमृत ब्रह्मरन्ध्र के बिंदु से  क्षरित होता है वही मूलाधार में आ कर काम उर्जा का निर्माण करता है जिससे सृष्टि के सृजन का कार्य होता है | किन्तु हमारे पूर्वज योगियों ने ध्यान के द्वारा अपने स्वयं के शरीर में प्रवेश कर इसके मर्म को इसके विज्ञान को समझा और युक्तिपूर्वक  एक नए विज्ञान का आविष्कार किया | योगियों के स्व साधना के क्षेत्र में जो भी अविष्कार हुए वे सभी ध्यान की गहरी अवस्था में हुए इसलिए वर्तमान विज्ञान को इसे पकड पाना कठिन है |”
महा योगी के इस ओजमयी ज्ञान का पान वहां उपस्थित सभी साधक तल्लीनता पूर्वक कर रहे थे |  

रहस्यमयी हिमालय - 15

हिमालय का दिव्य वातावरण | चारो  तरफ  बर्फ  से  ढके ऊँचे  ऊँचे  पर्वत | चारो  तरफ  की  हवाओं  में  एक  दिव्य  सुगंध  घुली  हुई | मंद मंद  बहता  समीर | कुल  मिलाकर  वातावरण  को  दिव्य  बना  रहे  थे  ऐसा  प्रतित  हो  रहा  था  जैसे मन  कह उठे   स्वर्ग  यही  तो  है  |
बर्फ  से आच्छादित एक पर्वत  में  स्वामी ब्रह्मानन्द  की गुफा | गुफा में एक  आसन  पर स्वामी  ब्रह्मानन्द  विराज  रहे  थे | गुफा  में  मंद  मंद प्रकाश  बिखरी हुई थी | शीत या उष्णता के प्रभाव से यह गुफा प्रभावित नहीं था ना तो वहां अत्यधिक ठंढ थी न हीं अत्यधिक गर्मी |  निचे विभिन्न आसन  बिछा कर  दस  बारह  साधक बैठे  हुए थे | स्वामी  ब्रह्मानन्द  उन  साधकों  के  साथ किसी  गहन विषय पर चर्चा कर रहे थे |
इसी  बीच  महायोगी अभेदानन्द ने  साधक  सच्चिदानन्द , तरुण  साधक  बटुकनाथ  और उस व्यक्ति के साथ गुफा में  प्रवेश किया |
स्वामी ब्रह्मानन्द और महायोगी अभेदानन्द की प्रेमभरी  दृष्टि  आपस  में  टकराई  | दोनों  के  चेहरे  पर मुस्कान उभर  आई | दोनों  ने एक  दुसरे को सर झुका  कर और हाथ जोड़ कर एक दुसरे का  अभिवादन  किया | महायोगी  के  साथ  आये  साधकों ने स्वामी   ब्रह्मानन्द को  शाष्टांग  प्रणाम  किया  वहां  उपस्थित  साधकों  ने  भी  महायोगी  अभेदानन्द को साष्टांग प्रणाम  किया | स्वामी ब्रह्मानन्द  ने आसन  से  उठ कर महायोगी  को  अपने  आसन पर  बगल  में  बैठने  का अनुरोध  किया | महायोगी  उनके  बगल  में  विराजमान  हो  गये  | सभी  साधकों  ने  भी  निचे  अपने अपने स्थान को  ग्रहण  कर  लिया  |
स्वामी ब्रह्मानन्द  ने उस  व्यक्ति  पर  मुस्कुराते  हुए  दृष्टिपात  किया | उनके  चेहरे  पर ऐसे भाव थे  मानो  वे  पूर्व  से हीं उस व्यक्ति  को  जानते  हों |
महायोगी अभेदानन्द   स्वामी ब्रह्मानन्द की ओर  उन्मुख  होते हुए बोल पड़ें
“ कहें  कैसे  याद  किया |”
“कुछ नहीं प्रभु  ये सभी तन्त्र  के  साधक  हैं  और तंत्र  के  क्षेत्र  में  दस  वर्ष  साधना की है | आगे तन्त्र में  और  गहन यात्रा  हेतु ,तन्त्र के  द्वारा परमज्ञान   प्राप्ति हेतु महाविद्या  तारा  और  महाविद्या  बगलामुखी की दीक्षा लेना  चाहते  हैं  | किन्तु मुझे  इनकी प्रकृति  समझ  में नहीं  आ रही इसलिए  इन्हें  दीक्षित नहीं कर पा रहा  | इस  सम्बन्ध मे  मेरा मार्गदर्शन करें |” स्वामी ब्रह्मानन्द  ने कहा |
महायोगी अभेदानन्द  ने उन  साधकों  पर  दृष्टिपात किया और   आँखे  बंद  कर के गहन ध्यान में  चले  गये |
स्वामी ब्रह्मानन्द और  वहां उपस्थित सभी  साधक  यहाँ तक की  वह  व्यक्ति  भी ध्यान की मुद्रा  में  आ गया  और  ध्यान करने लगे | ( जो  ध्यान  में सिद्धस्त  हो  उसके  निकट  बैठ  कर  मात्र  ध्यान  का  अभिनय  भी  अगर  कोई  करे  तो सहज  हीं  बिना  प्रयास  के  ध्यान  लगने  लगता  है  बस  ध्यान  की  ईच्छा  होनी  चाहिए  )
घंटों  ध्यान के उपरान्त महायोगी अभेदानन्द ने   ने आँखें  खोली | उनके साथ ध्यान  कर  रहे  साधकों का  भी स्वत: आँखें खुल गयी | ( अगर  आप  किसी  के  सान्निध्य  में ध्यान  कर रहें  हो  तो ऐसा  होता  है जिसके सान्निध्य में  आप  ध्यान  कर  रहें  है  वे  अगर  ध्यान  से  बाहर आते  हैं  तब उसी समय  आप भी ध्यान  से बाहर  आते  हैं 90 % मामलों  में | शेष  10 % मामलों  में ऐसा  नहीं  होता  बल्कि आगे  भी  ध्यान  जारी  रहता  है  अगर  ध्यानकर्ता  सिद्धस्त  हो  तब | )
आगे  माहयोगी  ने फिर  से उन  साधकों का निरिक्षण किया और उनमे से तीन  साधकों के तरफ इशारा करते हुए कहा
“ ये तीन आगे गति नहीं कर पायेंगे इनके कर्म कटने अभी बाकी हैं इन्हें और साधना  की आवश्यकता  है | ये तीन अभी  दीक्षा  के  काबिल  नहीं  हैं |”
“ जी  महराज  जी इन तीनों  में  से एक  की  प्रकृति  तो  मुझे  पकड  में  आ रही  थी  किन्तु  इन  दोनों के  बारे  में  आश्वस्त  नहीं  था ध्यान  में  इनकी सूक्ष्म प्रकृति अयोग्यता के संकेत अवश्य  दे रहे थे किन्तु  थोडा अस्पष्ट था | इसलिए  आपको  कष्ट  दिया |” स्वामी ब्रह्मानन्द  ने  कहा |

कुछ समय उपरान्त स्वामी ब्रह्मानन्द के द्वारा महायोगी अभेदानन्द के समक्ष शेष नौ साधकों को दीक्षित किया गया जिसमे से पांच को बगलामुखी महाविद्या की दीक्षा दी गयी शेष चार  को महाविद्या तारा की |

Wednesday, 22 February 2017

रहस्यमयी हिमालय 14 Secret Himalaya 14

वह व्यक्ति आँखें बंद करके गहन चिन्तन में चला गया | बचपन से अभी तक की कुछ स्मृतियाँ मानस पटल पर उभरने लगी | वह अपने भीतर हीं अनुसंधान करने लगा | वह टटोलने की कोशिश करने लगा कि बचपन से ले कर अभी तक कौन सी चीज उसमे नहीं बदली है |
घंटों अंदर टटोलने के बाद सहसा उसके मन में एक बात कौंधी | अरे ! अपने भीतर यह टटोल कौन रहा है | बचपन से ले कर आज तक की घटनाओं को मन के पटल पर देख कौन रहा है | अरे ! यह तो मैं ( अहंकार और मन युक्त नहीं ) हूँ | मैं हीं तो हर क्षण मौजूद हूँ साक्षी बन के सारी घटनाओं का | जीवन के उतार चढाव को यह मैं हीं देखता रहा | यह मैं मेरे सुख का भी गवाह है और मेरे दुखों का भी | जब तक मेरा शरीर जागृत रहता हूँ यही हर क्षण मौजूद रहता है | यह बदलता नहीं | यह सब कुछ देखता रहता है किन्तु इसे मैं ( अहंकार और मन युक्त ) देख नहीं पाता | यही तो है अपरिवर्तनशील | सुखों और दुखों , जीवन के प्रत्येक घटनाओं का यही तो गवाह है | यह देखता रहता है बिना प्रभावित हुए भावनाओं या किसी अन्य गुणों के | ( यह एक ध्यान प्रयोग भी है इसे करें )
वह प्रसन्न था | चिन्तन चल रहा था |

कुछ देर बाद उसकी आँखें खुली | उसने योगी बाबा पर दृष्टिपात किया प्रसन्नता पूर्वक मानों कोई खजाना उसके हाथ लगा हों |
महायोगी अभेदानन्द भी ध्यान से बाहर आ गये | और मुस्कुराते हुए उसे देखा | बिना उसके कुछ बोले हीं योगी बाबा ने कहा
हाँ तुम ठीक हो यह तुम्हारे अंदर की शास्वतता हीं है जो कभी नहीं बदलती जिसे भाषा की अभाव में अभी भी मैं कह रहे हो वही कभी नहीं बदलता | किन्तु यह अहसास जो तुम कर रहे हो यह बिलकुल छोटा अहसास है इस कड़ी को पकड कर तुम उस विराट में प्रवेश कर सकते हो | यह अहसास तो सिर्फ समुद्र किनारे की सीपियाँ हैं असली रत्नों का संसार तो आगे की यात्रा तय करने पर प्राप्त होगा |”
उसकी आँखें महायोगी अभेदानन्द के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रही थी |
तभी गुफा के अंदर बारह तेरह वर्ष के एक तरुण ने प्रवेश किया |
योगी बाबा ने उससे मुखातिब होते हुए उससे पूछा हाँ बटुकनाथ कहो कैसे आना हुआ |”
उस तरुण का नाम बटुकनाथ था उसने कहा कुछ नहीं प्रभु वह आपको पूज्य गुरु स्वामी ब्रह्मानन्द ने याद किया है |”
हाँ वह तो महायोगी ब्रह्मानन्द के मानसिक तरंगों से मुझे ये सूचना मिल चुकी है किन्तु तुम यहाँ ! योगी बाबा ने कहा
प्रभु आपके दर्शनों की अभिलाषा भी हो रही थी सोचा चल कर दर्शन कर लूं |” बटुकनाथ के ये शब्द निकलते हुए उसकी आँखें गीली थी |
किन्तु कुछ हीं समयोपरांत मैं तो स्वयं महा योगी ब्रह्मानन्द के समक्ष उपस्थित होने हीं वाला था |
देखो तुम्हें आकाश गमन विद्या सिद्ध हो चूका है इसका ये मतलब नहीं कि तुम मात्र मानसिक आनन्द और जिज्ञासा वश इसका उपयोग करो |”
योगी बाबा ने थोड़ी कठोरता से मीठी झिडकी लगाईं बटुकनाथ नामक उस तरुण सन्यासी को |
योगी बाबा ने उस व्यक्ति के तरफ उन्मुख होते हुए कहा
यह तरुण साधक बटुकनाथ है | आठ वर्ष की उम्र में यह मुझे मिला था हिमालय के जंगलों में | यह राह भटक कर वीरान जंगल में खो चूका था | क्रन्दन करते हुए अवस्था में मैंने इसे जंगलों में पाया था | इसके माता पिता नहीं हैं | अपने जीवन के पांच वर्षों में इसने काफी साधनाएं की हैं | बटुक भैरव की इसपे बहुत अधिक कृपा है इसलिए इसका नाम बटुक नाथ रख दिया गया |
चलो चलते हैं |”

योगी बाबा ने उस व्यक्ति के तरफ उन्मुख होते हुए कहा

रहस्यमयी हिमालय 13

योगी बाबा अपने आसन पर विराजमान हो चुके थे | वह व्यक्ति अभी भी अपने घर परिवार सगे सम्बन्धियों के बीच  कहीं खोया हुआ था |
महा योगी अभेदानन्द ने उसको संबोधित करते हुए कहा “ अभी भी घर परिवार के बीच  में हीं हो |”
वह मौन रह गया योगी बाबा को अपलक निहार रहा था |
“ अच्छा बताओ तुम्हें अपने घर परिवार की याद क्यों आई और अभी भी उसमे खोये हुए हो | बता सकते हो इसका कारण |”
उसने कहा “ उनसे जुडी स्मृतियों के कारण मोह भी इसका कदाचित कारण है प्रभु |”
योगी बाबा ने कहा “ ये सही है कि तुम जिनके साथ अच्छे बुरे दिन गुजारते हो उनके साथ की वो स्मृतियाँ तुम्हें उदास या खुश  कर जाती हैं | अपने प्रियों का याद आना उनके प्रेम  और मोह दोनों के कारण होता है | तुम अगर मनन करोगे तो पाओगे तुम्हारा मन जो उदास है सिर्फ तुम्हारे मानस पटल पर चल रहे भूत काल के स्मृति छवियीओं के कारण , जबकि उनका वजूद हैं हीं नहीं | तुम क्या याद कर के दुखी हो रहे वही जिनका वजूद हीं  नहीं |”
बात उसके पले नहीं आ रही थी वह उन स्मृतियों में हीं खोया हुआ था |
“ अच्छा बताओ ये समय जो गुजर रहा है इसे कैसे  परिभाषित करोगे |”
“ वर्तमान समय |” उसने कहा
“किन्तु जिस क्षण में तुमने जबाब दिया वह तो देखते हीं देखते भूत काल हो गया ! समय के सूक्ष्मता को पहचान कर तुम आत्मा तक पहुँच सकते हो | समय अपरिवर्तन शील है बदलती सिर्फ बाहरी  परिस्थियाँ  है | सूर्य , चन्द्र , पृथ्वी सभी गतिशील एवं परिवर्तित होते रहते हैं इनकी गतियों से हीं मनुष्य समय का निर्धारण करता है | समय स्थिर और स्थिर है |  ”
वह ध्यान पूर्वक महायोगी के कथनों को समझने की कोशिश कर रहा था |
“हमारे मन का स्वभाव है या तो यह भूत काल में रहेगा या फिर भविष्य काल में जबकि मौजूद सिर्फ वर्तमान काल हीं है यह आश्चर्य का विषय है | किन्तु यह मन वर्तमान काल में ठहरता हीं नहीं | वर्तमान काल मतलब स्थिर समय | स्थिर समय में परमात्मा से संयोग का अवसर होता है अगर मन वर्तमान में ठहर जाए | समय के सूक्ष्म आयाम को पहचान कर इसमें ठहर जाओ |”
वह सिर्फ योगी बाबा के रूप को निहार रहा था रूप निहारने के क्रम में उसका मन कुछ क्षणों के लिए वर्तमान में ठहर गया था | परिणामस्वरूप आंनद ने उसके मष्तिष्क में कुछ क्षणों के लिए डेरा जमाया  |

“ अच्छा ये बताओ तुमने कभी ये गौर किया कि बचपन से ले कर तुममे अभी तक कौन सी वस्तु कभी नहीं बदला जरा मनन करने के बाद जबाब दो |” 

रहस्यमयी हिमालय 12

शाम ढल चुकी थी रात्री बाँहें पसार  चुकी थी |
नौजवान योगी सच्चिदानन्द ध्यान में मग्न थे | वह व्यक्ति गुफा के दिवार का सहारा ले कर पीठ के बल उठंग कर बैठा हुआ था | उसकी आँखें कहीं खोई हुई थी | देखने पर साफ़ पता चलता था कि वह उस गुफा में मौजूद हो कर भी मौजूद नहीं था | उसके चेहरे पर उदासी साफ़ झलक रही थी |
इसी बीच महायोगी अभेदानन्द ने ध्यान से निकल कर  अपनी आँखें खोली | उस व्यक्ति के चेहरे पर अपनी नजर टिकाते हुए उससे पूछा “ मैं देख रहा हूँ तुम यहाँ हो कर भी यहाँ  मौजूद नहीं हो |”
उसने सकपकाते हुए  कहा “ नहीं बाबा जी यहीं तो हूँ |”
“ मैं देख रहा हूँ तुम सशरीर यहाँ उपस्थित हो कर भी तुम अपने घर में अपने परिवार के बीच मौजूद हो | लगता है तुम्हें अपना घर बार , सगे सम्बन्धी , परिवार याद आ रहें हैं |”
उसकी आँखों से दो बूँदें लुढक आई | और मौन रह गया |
योगी बाबा ने उसे संबोधित करते हुए कहा “घर जाना चाहते हो |”
“नहीं नहीं बाबा जी मैं यहाँ खुश हूँ | अध्यात्मिक जीवन में मेरी उन्नति हो आपकी कृपा से  ऐसी आकांक्षा रखता हूँ |”
“ अच्छा आओ तुम्हें तुम्हारे घर पर ले चलूं |” योगी बाबा ने कहा
योगी अभेदानन्द ने उसके हाथ पकडे और उससे कहा “ आँखें बंद कर लो क्योंकि अब जिस गति से हम विचरण करेंगे वह विज्ञान के द्वारा भी किसी वाहन ने नहीं प्राप्त किया है | जब मैं कहूँ तभी आँखें खोलना |”
उसने अपनी आँखें बंद कर ली महायोगी अभेदानन्द ने उसका हाथ पकड़ा और वे दोनों सशरीर उसके घर के सामने उपस्थित थे |
योगी बाबा ने कहा “ आँखें खोलो|” 
उसके तो मारे प्रसन्नता के चेहरा खिल गया |
महायोगी ने कहा “ जाओ घर से हो आओ मैं तुम्हारा इन्तजार करूँगा | जब सभी से मिलना हो जाएगा तब मुझे याद करना मैं तुम्हारे  पास आ जाऊँगा  |”
“ आप मेरे घर नहीं आयेंगे |” उसने पूछा
“ अभी मेरा गृहस्ततों के घर में प्रवेश करना वर्जित है |” योगी बाबा ने कहा
अब उसकी तन्द्रा टूटी | उसने पूछा तो क्या हम सशरीर यहाँ मौजूद हैं क्या ये हम दोनों का सूक्ष्म शरीर नहीं है |”
योगी बाबा ने कहा “ हाँ हम सशरीर यहाँ मौजूद हैं | यह हम दोनों का भौतिक शरीर हीं है | योगी चाहे तो अपने साथ कई व्यक्तियों को अपनी मदद से जहाँ चाहें वहां पहुंचा सकते हैं सशरीर |”
अब उसके सामने एक नया  रहस्य मुंह बाए खड़ा था |
योगी बाबा ने कहा “ जाओ |”
वह अपने घर में प्रवेश किया पहले तो उसके परिवार वाले आश्चर्य से भर गये | अभी रात्री के समय ये यहाँ कैसे उपस्थित हो गया किन्तु ये भूल कर उसके परिवार वाले भावुक हो गये उसे देख कर | भावुक वह भी हो चला |
उसकी वृद्ध माँ ने उससे  कहा
“ बेटा तुम तो छुटियाँ गुजारने गये थे हिमालय की तरफ तुम्हारे साथ गये सभी लोग वापस आ गयें किन्तु तुम क्यों वापस नहीं आये | तुम्हारे मित्रगण कह रहे थे किसी साधू के पास तुम ठहरे हुए थे | खैर चलो अब वापस आ गये हो अपना काम धंधा संभालो |”
उसने अपनी माँ से कहा “ माँ मैं अब यहाँ नहीं रह पाऊंगा मुझे जीवन के ढेर सारे रहस्य जानने हैं और परमपिता परमात्मा की कृपा से मुझे बहुत हीं सिद्ध संत भी मिल गये हैं | उन बाबा जी कृपा हुई तो मैं हमेशा तुम लोगों के सम्पर्क में रहूँगा | मेरी चिंता न करना |”
उसकी माँ यह सुन कर रोने लगी | उसने बार बार चुप कराने की कोशिश की किन्तु वह देर तक रोती रही और वह अपनी माँ को कुतुहुलता से देखता रहा |
अपने परिवार के लोगों के द्वारा  बार बार जाने से  मना करने के बाद भी जब वह नहीं माना तब अंतत: उसकी माँ ने कहा “ जा बेटे जिसमे तेरी ख़ुशी “| ( अपने संतान के सुख के आगे माताएं हमेसा नतमस्तक हुईं हैं इतिहास गवाह है और यह अकाट्य सत्य है | माताओं ने  अपनी ख़ुशी की परवाह कभी नहीं की संतानों के आगे इसलिए भगवान के बाद का स्थान माँ का है  )



कुछ घंटे अपने परिवार के बीच  गुजारने के बाद  वह निकल पड़ा घर से | अब उसका मन जीवन के रहस्यों को समझना चाहता था |
घर से निकलने के बाद वह अपने मुहल्ले के नुक्कड़ पर आ गया था | वहां कई दुकानें थी चाय आदि के होटल भी जहाँ वह कभी दोस्तों के साथ चाय वगैरह पिया करता था | अभी  ज्यादा रात्री नहीं गुजरी थी | दुकानों पर अभी भी चहल पहल मौजूद थी | चाय की दूकान पर वह देखा उसके कई मित्र बैठ कर गप्प ठहाका लगा रहे थे | वह उनके बीच चला गया | उसके सभी मित्र उसे देख कर हतप्रभ रह गये | खुश भी हुए | उन मित्रों को यह पता था कि वह कहाँ था इतने दिन | उनमे से एक मित्र ने उससे पूछा
“ अब आ गये हो तुम जहाँ काम करते थे वहां के  मालिक को हमने मना कर रखा है वह इस बात पर राजी है कि अगर वह आ गया तो उसे काम पर रख लेंगे | कल चले जाना उसके पास |”
उसने कहा “ तुम मित्रों का बहुत बहुत अहसानमन्द हूँ मैं जो तुमलोगों ने मेरे बारे में सोचा किन्तु अब मेरे जीवन का कुछ और उदेश्य है | मैं ज्यदा देर यहाँ तुम लोगों के साथ नहीं रुक पाऊंगा मैं वहीँ जा रहा हूँ हिमालय के बीच |”
“तो तुमने पका निर्णय कर लिया है |” उसके एक मित्र ने पूछा
“हाँ ” कह कर वह  योगी बाबा का स्मरण करने लगा |
उसने सामने से देखा योगी बाबा चले आ रहें हैं | उसने अपने मित्रों से कहा “देखो सामने मेरे गुरु मेरे भगवान  चले आ रहें हैं |”
किन्तु उसके मित्रों को कोई सामने दिखाई नहीं दे रहा था | वह उनके बीच से निकल कर योगी बाबा के नजदीक चला गया |
योगी बाबा ने पूछा “ तो चलें |”
ऐसा कह कर योगी बाबा ने उसके हाथ पकड लिए और आँखें बंद करने को कहा |

दोनों पुन : गुफा में मौजूद थे |

Saturday, 4 February 2017

Rahasyamayi Himalaya ( Audio Video ) रहस्यमयी हिमालय ( ऑडियो विडिओ )

अभी तक आपने रहस्यमयी हिमालय श्रीन्खला पढ़ा आगे की कड़ियाँ भी जल्द प्रकाशित की जायेगी |
लीजिये अब रहस्यमयी हिमालय श्रीन्खला सुनें Youtube पर