योगी बाबा अपने आसन पर
विराजमान हो चुके थे | वह व्यक्ति अभी भी अपने घर परिवार सगे सम्बन्धियों के
बीच कहीं खोया हुआ था |
महा योगी अभेदानन्द ने उसको
संबोधित करते हुए कहा “ अभी भी घर परिवार के बीच
में हीं हो |”
वह मौन रह गया योगी बाबा को
अपलक निहार रहा था |
“ अच्छा बताओ तुम्हें अपने घर
परिवार की याद क्यों आई और अभी भी उसमे खोये हुए हो | बता सकते हो इसका कारण |”
उसने कहा “ उनसे जुडी
स्मृतियों के कारण मोह भी इसका कदाचित कारण है प्रभु |”
योगी बाबा ने कहा “ ये सही है
कि तुम जिनके साथ अच्छे बुरे दिन गुजारते हो उनके साथ की वो स्मृतियाँ तुम्हें
उदास या खुश कर जाती हैं | अपने प्रियों
का याद आना उनके प्रेम और मोह दोनों के
कारण होता है | तुम अगर मनन करोगे तो पाओगे तुम्हारा मन जो उदास है सिर्फ तुम्हारे
मानस पटल पर चल रहे भूत काल के स्मृति छवियीओं के कारण , जबकि उनका वजूद हैं हीं
नहीं | तुम क्या याद कर के दुखी हो रहे वही जिनका वजूद हीं नहीं |”
बात उसके पले नहीं आ रही थी
वह उन स्मृतियों में हीं खोया हुआ था |
“ अच्छा बताओ ये समय जो गुजर
रहा है इसे कैसे परिभाषित करोगे |”
“ वर्तमान समय |” उसने कहा
“किन्तु जिस क्षण में तुमने
जबाब दिया वह तो देखते हीं देखते भूत काल हो गया ! समय के सूक्ष्मता को पहचान कर
तुम आत्मा तक पहुँच सकते हो | समय अपरिवर्तन शील है बदलती सिर्फ बाहरी परिस्थियाँ
है | सूर्य , चन्द्र , पृथ्वी सभी गतिशील एवं परिवर्तित होते रहते हैं इनकी
गतियों से हीं मनुष्य समय का निर्धारण करता है | समय स्थिर और स्थिर है | ”
वह ध्यान पूर्वक महायोगी के
कथनों को समझने की कोशिश कर रहा था |
“हमारे मन का स्वभाव है या तो
यह भूत काल में रहेगा या फिर भविष्य काल में जबकि मौजूद सिर्फ वर्तमान काल हीं है
यह आश्चर्य का विषय है | किन्तु यह मन वर्तमान काल में ठहरता हीं नहीं | वर्तमान
काल मतलब स्थिर समय | स्थिर समय में परमात्मा से संयोग का अवसर होता है अगर मन
वर्तमान में ठहर जाए | समय के सूक्ष्म आयाम को पहचान कर इसमें ठहर जाओ |”
वह सिर्फ योगी बाबा के रूप को
निहार रहा था रूप निहारने के क्रम में उसका मन कुछ क्षणों के लिए वर्तमान में ठहर
गया था | परिणामस्वरूप आंनद ने उसके मष्तिष्क में कुछ क्षणों के लिए डेरा
जमाया |
“ अच्छा ये बताओ तुमने कभी ये
गौर किया कि बचपन से ले कर तुममे अभी तक कौन सी वस्तु कभी नहीं बदला जरा मनन करने
के बाद जबाब दो |”
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