शाम ढल चुकी थी रात्री बाँहें
पसार चुकी थी |
नौजवान योगी सच्चिदानन्द
ध्यान में मग्न थे | वह व्यक्ति गुफा के दिवार का सहारा ले कर पीठ के बल उठंग कर
बैठा हुआ था | उसकी आँखें कहीं खोई हुई थी | देखने पर साफ़ पता चलता था कि वह उस
गुफा में मौजूद हो कर भी मौजूद नहीं था | उसके चेहरे पर उदासी साफ़ झलक रही थी |
इसी बीच महायोगी अभेदानन्द ने
ध्यान से निकल कर अपनी आँखें खोली | उस
व्यक्ति के चेहरे पर अपनी नजर टिकाते हुए उससे पूछा “ मैं देख रहा हूँ तुम यहाँ हो
कर भी यहाँ मौजूद नहीं हो |”
उसने सकपकाते हुए कहा “ नहीं बाबा जी यहीं तो हूँ |”
“ मैं देख रहा हूँ तुम सशरीर
यहाँ उपस्थित हो कर भी तुम अपने घर में अपने परिवार के बीच मौजूद हो | लगता है तुम्हें
अपना घर बार , सगे सम्बन्धी , परिवार याद आ रहें हैं |”
उसकी आँखों से दो बूँदें लुढक
आई | और मौन रह गया |
योगी बाबा ने उसे संबोधित
करते हुए कहा “घर जाना चाहते हो |”
“नहीं नहीं बाबा जी मैं यहाँ
खुश हूँ | अध्यात्मिक जीवन में मेरी उन्नति हो आपकी कृपा से ऐसी आकांक्षा रखता हूँ |”
“ अच्छा आओ तुम्हें तुम्हारे
घर पर ले चलूं |” योगी बाबा ने कहा
योगी अभेदानन्द ने उसके हाथ
पकडे और उससे कहा “ आँखें बंद कर लो क्योंकि अब जिस गति से हम विचरण करेंगे वह
विज्ञान के द्वारा भी किसी वाहन ने नहीं प्राप्त किया है | जब मैं कहूँ तभी आँखें
खोलना |”
उसने अपनी आँखें बंद कर ली
महायोगी अभेदानन्द ने उसका हाथ पकड़ा और वे दोनों सशरीर उसके घर के सामने उपस्थित
थे |
योगी बाबा ने कहा “ आँखें
खोलो|”
उसके तो मारे प्रसन्नता के
चेहरा खिल गया |
महायोगी ने कहा “ जाओ घर से
हो आओ मैं तुम्हारा इन्तजार करूँगा | जब सभी से मिलना हो जाएगा तब मुझे याद करना
मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगा |”
“ आप मेरे घर नहीं आयेंगे |”
उसने पूछा
“ अभी मेरा गृहस्ततों के घर
में प्रवेश करना वर्जित है |” योगी बाबा ने कहा
अब उसकी तन्द्रा टूटी | उसने
पूछा तो क्या हम सशरीर यहाँ मौजूद हैं क्या ये हम दोनों का सूक्ष्म शरीर नहीं है
|”
योगी बाबा ने कहा “ हाँ हम
सशरीर यहाँ मौजूद हैं | यह हम दोनों का भौतिक शरीर हीं है | योगी चाहे तो अपने साथ
कई व्यक्तियों को अपनी मदद से जहाँ चाहें वहां पहुंचा सकते हैं सशरीर |”
अब उसके सामने एक नया रहस्य मुंह बाए खड़ा था |
योगी बाबा ने कहा “ जाओ |”
वह अपने घर में प्रवेश किया
पहले तो उसके परिवार वाले आश्चर्य से भर गये | अभी रात्री के समय ये यहाँ कैसे
उपस्थित हो गया किन्तु ये भूल कर उसके परिवार वाले भावुक हो गये उसे देख कर |
भावुक वह भी हो चला |
उसकी वृद्ध माँ ने उससे कहा
“ बेटा तुम तो छुटियाँ
गुजारने गये थे हिमालय की तरफ तुम्हारे साथ गये सभी लोग वापस आ गयें किन्तु तुम
क्यों वापस नहीं आये | तुम्हारे मित्रगण कह रहे थे किसी साधू के पास तुम ठहरे हुए
थे | खैर चलो अब वापस आ गये हो अपना काम धंधा संभालो |”
उसने अपनी माँ से कहा “ माँ
मैं अब यहाँ नहीं रह पाऊंगा मुझे जीवन के ढेर सारे रहस्य जानने हैं और परमपिता
परमात्मा की कृपा से मुझे बहुत हीं सिद्ध संत भी मिल गये हैं | उन बाबा जी कृपा
हुई तो मैं हमेशा तुम लोगों के सम्पर्क में रहूँगा | मेरी चिंता न करना |”
उसकी माँ यह सुन कर रोने लगी
| उसने बार बार चुप कराने की कोशिश की किन्तु वह देर तक रोती रही और वह अपनी माँ
को कुतुहुलता से देखता रहा |
अपने परिवार के लोगों के
द्वारा बार बार जाने से मना करने के बाद भी जब वह नहीं माना तब अंतत:
उसकी माँ ने कहा “ जा बेटे जिसमे तेरी ख़ुशी “| ( अपने संतान के सुख के आगे माताएं
हमेसा नतमस्तक हुईं हैं इतिहास गवाह है और यह अकाट्य सत्य है | माताओं ने अपनी ख़ुशी की परवाह कभी नहीं की संतानों के आगे
इसलिए भगवान के बाद का स्थान माँ का है )
कुछ घंटे अपने परिवार के
बीच गुजारने के बाद वह निकल पड़ा घर से | अब उसका मन जीवन के
रहस्यों को समझना चाहता था |
घर से निकलने के बाद वह अपने
मुहल्ले के नुक्कड़ पर आ गया था | वहां कई दुकानें थी चाय आदि के होटल भी जहाँ वह
कभी दोस्तों के साथ चाय वगैरह पिया करता था | अभी
ज्यादा रात्री नहीं गुजरी थी | दुकानों पर अभी भी चहल पहल मौजूद थी | चाय
की दूकान पर वह देखा उसके कई मित्र बैठ कर गप्प ठहाका लगा रहे थे | वह उनके बीच
चला गया | उसके सभी मित्र उसे देख कर हतप्रभ रह गये | खुश भी हुए | उन मित्रों को
यह पता था कि वह कहाँ था इतने दिन | उनमे से एक मित्र ने उससे पूछा
“ अब आ गये हो तुम जहाँ काम
करते थे वहां के मालिक को हमने मना कर रखा
है वह इस बात पर राजी है कि अगर वह आ गया तो उसे काम पर रख लेंगे | कल चले जाना
उसके पास |”
उसने कहा “ तुम मित्रों का
बहुत बहुत अहसानमन्द हूँ मैं जो तुमलोगों ने मेरे बारे में सोचा किन्तु अब मेरे
जीवन का कुछ और उदेश्य है | मैं ज्यदा देर यहाँ तुम लोगों के साथ नहीं रुक पाऊंगा
मैं वहीँ जा रहा हूँ हिमालय के बीच |”
“तो तुमने पका निर्णय कर लिया
है |” उसके एक मित्र ने पूछा
“हाँ ” कह कर वह योगी बाबा का स्मरण करने लगा |
उसने सामने से देखा योगी बाबा
चले आ रहें हैं | उसने अपने मित्रों से कहा “देखो सामने मेरे गुरु मेरे भगवान चले आ रहें हैं |”
किन्तु उसके मित्रों को कोई
सामने दिखाई नहीं दे रहा था | वह उनके बीच से निकल कर योगी बाबा के नजदीक चला गया
|
योगी बाबा ने पूछा “ तो चलें
|”
ऐसा कह कर योगी बाबा ने उसके
हाथ पकड लिए और आँखें बंद करने को कहा |
दोनों पुन : गुफा में मौजूद
थे |
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