हिमालय का दिव्य वातावरण | चारो तरफ
बर्फ से ढके ऊँचे
ऊँचे पर्वत | चारो तरफ
की हवाओं में
एक दिव्य सुगंध
घुली हुई | मंद मंद बहता
समीर | कुल मिलाकर वातावरण
को दिव्य बना
रहे थे ऐसा
प्रतित हो रहा
था जैसे मन कह उठे
स्वर्ग यही तो
है |
बर्फ से
आच्छादित एक पर्वत में स्वामी ब्रह्मानन्द की गुफा | गुफा में एक आसन पर
स्वामी ब्रह्मानन्द विराज
रहे थे | गुफा में
मंद मंद प्रकाश बिखरी हुई थी | शीत या उष्णता के प्रभाव से यह
गुफा प्रभावित नहीं था ना तो वहां अत्यधिक ठंढ थी न हीं अत्यधिक गर्मी | निचे विभिन्न आसन बिछा कर
दस बारह साधक बैठे
हुए थे | स्वामी ब्रह्मानन्द उन
साधकों के साथ किसी
गहन विषय पर चर्चा कर रहे थे |
इसी बीच महायोगी अभेदानन्द ने साधक
सच्चिदानन्द , तरुण साधक बटुकनाथ
और उस व्यक्ति के साथ गुफा में प्रवेश किया |
स्वामी ब्रह्मानन्द और महायोगी अभेदानन्द की
प्रेमभरी दृष्टि आपस
में टकराई | दोनों
के चेहरे पर मुस्कान उभर आई | दोनों
ने एक दुसरे को सर झुका कर और हाथ जोड़ कर एक दुसरे का अभिवादन
किया | महायोगी के साथ
आये साधकों ने स्वामी ब्रह्मानन्द को शाष्टांग
प्रणाम किया वहां
उपस्थित साधकों ने
भी महायोगी अभेदानन्द को साष्टांग प्रणाम किया | स्वामी ब्रह्मानन्द ने आसन
से उठ कर महायोगी को
अपने आसन पर बगल
में बैठने का अनुरोध
किया | महायोगी उनके बगल
में विराजमान हो
गये | सभी साधकों
ने भी निचे
अपने अपने स्थान को ग्रहण कर
लिया |
स्वामी ब्रह्मानन्द
ने उस व्यक्ति पर
मुस्कुराते हुए दृष्टिपात
किया | उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे
मानो वे पूर्व
से हीं उस व्यक्ति को जानते
हों |
महायोगी अभेदानन्द स्वामी ब्रह्मानन्द की ओर उन्मुख
होते हुए बोल पड़ें
“ कहें
कैसे याद किया |”
“कुछ नहीं प्रभु
ये सभी तन्त्र के साधक
हैं और तंत्र के
क्षेत्र में दस
वर्ष साधना की है | आगे तन्त्र
में और
गहन यात्रा हेतु ,तन्त्र के द्वारा परमज्ञान प्राप्ति हेतु महाविद्या तारा
और महाविद्या बगलामुखी की दीक्षा लेना चाहते
हैं | किन्तु मुझे इनकी प्रकृति
समझ में नहीं आ रही इसलिए
इन्हें दीक्षित नहीं कर पा
रहा | इस
सम्बन्ध मे मेरा मार्गदर्शन करें |”
स्वामी ब्रह्मानन्द ने कहा |
महायोगी अभेदानन्द
ने उन साधकों पर
दृष्टिपात किया और आँखे बंद कर
के गहन ध्यान में चले गये |
स्वामी ब्रह्मानन्द और
वहां उपस्थित सभी साधक यहाँ तक की वह
व्यक्ति भी ध्यान की मुद्रा में आ
गया और
ध्यान करने लगे | ( जो ध्यान में सिद्धस्त
हो उसके निकट
बैठ कर मात्र
ध्यान का अभिनय
भी अगर कोई
करे तो सहज हीं
बिना प्रयास के
ध्यान लगने लगता
है बस ध्यान
की ईच्छा होनी
चाहिए )
घंटों ध्यान के
उपरान्त महायोगी अभेदानन्द ने ने
आँखें खोली | उनके साथ ध्यान कर रहे साधकों का
भी स्वत: आँखें खुल गयी | ( अगर
आप किसी के
सान्निध्य में ध्यान कर रहें
हो तो ऐसा होता
है जिसके सान्निध्य में आप ध्यान
कर रहें है
वे अगर ध्यान
से बाहर आते हैं तब
उसी समय आप भी ध्यान से बाहर
आते हैं 90 % मामलों में | शेष
10 % मामलों में ऐसा नहीं
होता बल्कि आगे भी
ध्यान जारी रहता
है अगर ध्यानकर्ता
सिद्धस्त हो तब | )
आगे
माहयोगी ने फिर से उन
साधकों का निरिक्षण किया और उनमे से तीन
साधकों के तरफ इशारा करते हुए कहा
“ ये तीन आगे गति नहीं कर पायेंगे इनके कर्म कटने अभी
बाकी हैं इन्हें और साधना की
आवश्यकता है | ये तीन अभी दीक्षा
के काबिल नहीं
हैं |”
“ जी
महराज जी इन तीनों में से
एक की
प्रकृति तो मुझे
पकड में आ रही
थी किन्तु इन
दोनों के बारे में
आश्वस्त नहीं था ध्यान
में इनकी सूक्ष्म प्रकृति अयोग्यता
के संकेत अवश्य दे रहे थे किन्तु थोडा अस्पष्ट था | इसलिए आपको
कष्ट दिया |” स्वामी
ब्रह्मानन्द ने कहा |
कुछ समय उपरान्त स्वामी ब्रह्मानन्द के द्वारा महायोगी
अभेदानन्द के समक्ष शेष नौ साधकों को दीक्षित किया गया जिसमे से पांच को बगलामुखी
महाविद्या की दीक्षा दी गयी शेष चार को
महाविद्या तारा की |
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