Tuesday, 31 May 2016

स्वाधिष्ठान चक्र

स्वाधिष्ठान चक्र 
संस्कृत में स्व का अर्थ होता है अपना और अधिष्ठान का अर्थ होता है रहने का स्थान | स्वाधिष्ठान का शाब्दिक अर्थ हुआ अपने रहने का स्थान | मूलाधार के ठीक उपर का चक्र स्वाधिष्ठान चक्र है | कुछ कुण्डलिनी विद्वानों का मानना है कि पहले कुण्डलिनी स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित थी किन्तु बाद में मूलाधार में गिर गयी | प्राचीन काल सतयुग , त्रेता और द्वापर युगों के मनुष्यों की कुण्डलिनी स्वाधिष्ठान में थी | अब इसमें कितनी सच्चाई है ये पता नहीं किन्तु इस चक्र का नाम तो कुछ ऐसा हीं संकेत देता है | तो एक मान्यता यह भी है कि अगर कुण्डलिनी स्वाधिष्ठान पर पहुँच गयी हो तो पुन : मूलाधार पर भी आ सकती है | दैनिक जीवन और साधना में एकाएक खूब आनन्द और फिर दुःख का यह भी एक कारण है | देखो तुम साधना करो न करो किन्तु कुण्डलिनी तुम्हारे नित्य जीवन में अपने अनुभव देती रहती है जरूरत है जागरूक होने का | संगीत में तुम खूब तल्लीन हो सारा सुध बुध खो चुके हो तो उस घड़ी तक कुण्डलिनी मूलाधार पर फन उठा कर ( सजग हो कर ) कर स्वाधिष्ठान की ओर देख रही होती है और परिणाम आनन्द | अपने दैनिक जीवन में सजग होने पर ये अनुभूतियाँ मह्शूश की जा सकती है | अब कुछ अच्छे वक्ता है जिनको सुन कर जनता मुग्ध हो जाती है उस वक्त वक्ता का विशुद्धि चक्र सजग होने लगता है , ध्यान रहे स्वाधिष्ठान चक्र जाग नहीं जाता सिर्फ थोडा सजग होता है |
आगे इस पर और बातें करूँगा

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