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कुण्डलिन के स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होने पर सभी अवशेष कार्य और
नकारत्मक संस्कार अभिव्यक्ति के माध्यम से बाहर निकल जाते हैं | इस समय क्रोध , डर
, यौन विकृतियाँ तथा अनेक प्रकार की इच्छाएं प्रकट हो सकती है सभी प्रकार की
तामसिक वृतियां तन्द्रा . अकर्मण्यता तथा निराशा आदि का प्रकटीकरण भी संभव है
व्यक्ति आलसीपन का शिकार हो सकता है बहुत ज्यादा निद्रा से ग्रसित हो सकता है (
किन्तु इसका मतलब ये नहीं की आलसी और ज्यादा सोने वालों का स्वाधिष्ठान चक्र जाग गया है ) | ऐसे समय में विचलित होने की बात नहीं है | ऐसा समय जब आवे तब मात्र साक्षी हो कर अपने भीतर के
दुर्गुणों को देखना चाहिए कर्ता नहीं बनना चाहिए | इसलिए समय समय पर मैं ध्यान
प्रयोग करने को कहता हूँ और तरह तरह का ध्यान विडियो के माध्यम से भी प्रेषित करता रहता हूँ | खैर ..... प्रत्येक साधक व संत को इस विशिष्ट अनुभूति के स्तर को जो जीवन के रहस्यों के अंतिम विस्फोट की भाँती होता
है इसे पार करना हीं पड़ता है |
गुरु की कृपा , संकल्प शक्ति , अध्यात्मिक मार्ग
में लगनशीलता , लक्ष्य के प्रति सजगता व शोधक अनुभूतियों को ठीक से समझ कर इस मार्ग की समस्याओं को झेला जा सकता है | और
असावधानी होने पर डरने की बात नहीं सिर्फ होगा ये की कुण्डलिनी शक्ति फिर से
मूलाधार चक्र पर आ जायेगी गिर कर | ऐसे स्थित में वैराग्य भाव बहुत मदद करता है |
जैसे मन में संकल्प चलना चाहिए की आज तक भोगों को भोग कर तुमने क्या पाया और
निष्कर्ष मन दिखा देता है की कुछ भी नहीं | इसलिए ऐसी स्थिति में तीव्र वासना का तूफ़ान जब आये तब वैराग्य भाव को
मजबूत करें |
पुन : चर्चा होगीध्यान के विडियो के लिए यूट्यूब लिंक
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