स्वाधिष्ठान को व्यक्ति के अस्तित्व का अधार माना
गया है | मष्तिष्क में इसका रूप अचेतन मन है ,जो संस्कारों का भंडारगृह भी है |
ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक कर्म , पिछला जन्म , पिछले अनुभव , मानव व्यक्तित्व का सबसे बड़ा पक्ष अचेतन सभी का प्रतीक
स्वाधिष्ठान चक्र को माना जाता है | अचेतन मन संस्कारों का जमा होने का केंद्र है
| तथा यही इस चक्र के स्तर पर अनुभव की जानेवाली अनेक नैसर्गिक अनुभूतियों का
उद्गम भी है |
तन्त्र
में पशु तथा पशु का नियन्त्रण जैसी एक धारणा है | संस्कृत में पशु का अर्थ है
जानवर और पति का मतलब है नियंत्रक | पशुपति का अर्थ है – सभी पाशविक प्रवृतियों का
नियन्त्रणकर्ता | यह भगवान शिव का एक नाम तथा स्वाधिष्ठान चक्र का एक गुण भी है |
पौराणिक मान्यता के अनुसार पशुपति पूर्णत: अचेतन हैं | मानव विकास के प्रथम स्तर पर
यह मूलाधार चक्र तथा पाशविक प्रवृतियों का नियन्त्रणकर्ता है |
जब शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में प्रवेश करती है तो
हमारे अचेतन स्थिति का एक शक्तिशाली अनुभव होता है | मतलब अचेतन की चीजें उभर उभर
कर सामने आने लगती हैं | अचेतन मन में संसार और कर्म बीज रूप में सुप्त पड़े रहते
हैं |
आगे जारी है .....
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