उसकी आज्ञा चक्र जागृत थी | वह देख सकता
था वह सब कुछ जो घटित होने वाला था या घटित हो चुका था | बस परेशानी यह थी कि यह स्वयं
उस पर लागू नहीं थी | उसकी उम्र रही होगी
कोई पचीस साल | अदभुत नौजवान गठीला बदन , घुंघराले बाल , उभरी हुई कपाल और कपाल पर
अभूतपूर्व तेज़ | किन्तु मन अभी भी स्थिर नहीं था उसका | बेचैनी की एक पतली सी लकीर अभी भी उसके चेहरे पर
देखी जा सकती थी | उसे सत्य की खोज थी
बाल्यकाल से हीं |
ऋषिकेश में गंगा किनारे बालू ( रेत ) पर
बैठ कर ध्यानमग्न था वह | अप्रतिम लोक का अवलोकन कर रहा था | उसके साँस लेने में
लयबद्धता थी | नाप तौल कर साँस लेता था और छोड़ता था | प्राणायाम का अभ्यासी था वह
| अपने हीं भीतर खोया हुआ भ्रूमध्य में ध्यान लगाये हुए एक अलग लोक में छलांग
लगाने को तैयार था वह | अदभुत प्रकाश का अवलोकन कर रहा था वह |
अपने हीं मानस लोक में विचरण कर रहा था वह की सघन प्रकाश के
मध्य एक आकृति प्रगट हुई उसके मनसपटल पर |
आकृति धुंधली थी अभी ध्यान को और गहन करने की आवश्यकता थी | ध्यान गहन होता गया आकृति
स्पष्ट होती जा रही थी | अब उसके मानस पटल पर साफ़ छवि उभर आई थी | लम्बा डीलडौल कद , चांदी के मानिंद लम्बे धवल केश और दाढ़ी
बिलकुल सफ़ेद | आँखों की पुतलियाँ काली किन्तु भौ का रंग बिलकुल श्वेत | उपर से
निचे तक एक हीं सफ़ेद कौपीन धारण किये वह
शख्सियत किसी प्राचीन काल के ऋषि की याद दिला रहें थे |
वह मन हीं मन चौक गया , क्या यह उसकी
कल्पना है या यथार्थ | तभी उस ऋषि के समान लगने वाले व्यक्ति ने कहा “ अपने मन को
किंचित कष्ट न दो , मैं यथार्थ हीं हूँ |”
मन हीं मन वह उन ऋषि जैसे लगने वाले से
बात करने लगा |
- “ आप कौन हैं |”
- मैं हिमालय में निवास करनेवाला एक साधक
मात्र हूँ |” ऋषि के समान लगने वाले महापुरुष ने कहा |
- “आप मेरे लिए यथार्थ हैं या कल्पना |”
- “ मैं यथार्थ हूँ और किसी के भी मन:
क्षेत्र में प्रवेश कर जाना मेरे लिए आसान है | तुम्हें व्यथित देख मैं तुम्हारे मन:
क्षेत्र में आया हूँ | बोलो क्या चाहिए |”
- “आत्म ज्ञान ब्रह्म ज्ञान !” उसने उतर
दिया
- “ओह्ह ! हो ! बहुत हीं शुभ विचार है किन्तु इसके लिए तो
और जी तोड़ प्रयास की आवश्यकता है , वैसे मैं जहाँ तक अवलोकन कर पा रहा हूँ तुमने
स्वयं अपनी साधना के बदौलत थोडा मार्ग तय कर रखा है |
तुम्हारी आज्ञा चक्र जागृत प्रतीत हो रही है मुझे | यह दिव्य लक्षण है तुम्हारे
लिए | ”
- “जी ! क्या आप मुझे और मार्ग सुझायेंगे |”
- “ जरुर , जहाँ तुम रहते हो और जिसके
निर्देशन में अपनी साधना कर रहे हो वहां भी कुछ गलत नहीं निर्देशित हो रहा
तुम्हारे लिए | मैं भी निर्देशन करूँगा तुम्हारे लिए किन्तु अभी नहीं अभी मुझे आवश्यक कार्य से अपने
साधना स्थली के तरफ जाना है , मैं तुमसे पुन : सम्पर्क करूँगा | ” यह कह कर वह दिव्य व्यक्तित्व लीन हो गयी |
और उस साधक के भीतर रह गयी एक मधुर और ताजगी देने वाली खुमारी | जैसे अभी
अभी स्नान किया हो |
वह आँख मलते मलते उठा उसका ध्यान भंग हो
चुका था , मानस में विचारें हिलोरें ले रहीं थी | उसने जो देखा था स्वप्न नहीं था
यह तो कम से कम उसके साधना ने यह बता दिया था | फिर क्या था रहस्य इसका इस पर मनन
करते हुए वह ऋषिकेश के गंगा किनारे आश्रम वाले उस कमरे की तरफ बढ़ चला जहाँ उसका
निवास और साधना स्थली थी |
फिर हाज़िर होऊंगा _/\_ हाज़िर होता हीं
रहूँगा _/\_
जय गुरु देव
ReplyDelete