वह अपने हीं शरीर का अवलोकन कर स्तब्ध था | इसके
पूर्व उसने अपने हीं शरीर की ऐसी यात्रा कभी नहीं की थी | वाह ईश्वर ! वाह ! अदभुत
है तेरी कृति | मन हीं मन वह विचारने लगा |सम्पूर्ण शरीर में भाँती भाँती के अदभुत
प्रकाश जिसे उसे अपनी बाहरी दुनिया में कभी नहीं देखा था सभी दिखाई दे रहे थे |
उसने तो शरीर में सात चक्रों के बारे में सुन रखा था यहाँ तो शरीर के भीतर सर से पाँव तक
अनेकों अनेक चक्र दिखाई दे रहे थे उसे |
वह स्तब्ध हो कर मनीषी से पूछा - “ यहाँ तो अनेकों चक्र हैं शरीर के भीतर |”
-
“ हाँ |” मनीषी ने जबाब दिया
-
“ दरअसल यही सारे चक्र मनुष्यों के शरीर का
संचालन करते हैं दिव्य ईश्वरीय तरंगो के द्वारा | सूर्य का प्रकाश भी इसमें सहायक
है | ये चक्र पृथ्वी पर मौजूद प्रत्येक प्राणियों में स्थित है यहाँ तक की पेड़
पौधों में भी | तुम्हें क्या लगता है कि तुम सिर्फ भोजन ,जल एवं वायु से हीं जीवित
हो ” मनीषी ने कहा |
-
“अच्छा इधर आओ यहाँ देखो जनेंन्द्रिय से थोडा
पीछे रीढ़ की अंतिम हड्डी से थोडा आगे दोनों के मध्य में क्या दिखाई देता है ?
मनीषी ने पूछा |
वह गौर से उस ओर देखने लगा जहाँ मनीषी ने निर्देशित किया था
-
“अदभुत ! अदभुत ! यहाँ तो अदभुत सुगंध व्याप्त है
जैसा की बाह्य जगत में नहीं |” उसके मन
में गूँज उठा
-
“यहाँ तो पीले प्रकाश की अदभुत छटा है और दिव्य
सुगंध भी |” उसने कहा
-
“प्रकाश के पार देखो | अपने दृष्टि और सूक्ष्म
करो |” मनीषी ने कहा |
-
“ओह्ह हो ! यहाँ तो मुझे कमल की चार पंखुडियां
नजर आ रही है जो की बाहरी जगत में दिखने वाले लाल रंग सी प्रतीत हो रहीं हैं फिर
भी रंगों की कोई तुलना भी की जा सकती | ” उसने
कहा |
-
“दृष्टि को और सूक्ष्म करो |” मनीषी ने निर्देश
दिया और उसका हाथ अपने हाथों में पकड लिया | हाथ मनीषी के हाथ में आते हीं उसकी
दृष्टि और खुल गयी |
-
“अह्ह्ह ! अदभुत ! मेरे भगवन ! इन प्रत्येक पंखुड़ियों पर तो एक एक अक्षर खुदे हुए हैं जिनका
रंग अदभुत सुनहला है |” उसने कहा
-
“निरिक्षण करते जाओ |” मनीषी ने आदेशात्मक लहजे
में कहा |
-
“अरे ये क्या यहाँ तो एक वर्गाकार आकृति है इसका
रंग पिला है | पिला प्रकाश तो यहीं से फूट रहा है | इस पीले प्रकाश , वर्ग , और
कमल के चार पंखुड़ियों का क्या रहस्य है भगवन ! यह क्या है |”
-
“ तुम जहाँ स्थित हो इस वक्त यह मूलाधार चक्र है
| इस चक्र का तत्व पृथ्वी है इसलिए यहाँ पीले रंग की प्रधानता हैऔर सुगंध बिद्यमान
है | इस चक्र की तन्मात्रा गंध है | दरअसल यहाँ की प्रधान तन्मात्रा गंध है | पृथ्वी तत्व में और
तन्मात्राओं की भी विशेषता होती है जैसे रूप , रस , स्पर्श , शब्द | और उपर यात्रा करने पर ये भी दृश्य होंगे |
प्रधान तन्मात्रा गंध होने के कारण तुम्हें सुगंध मह्शूश हुआ | मानव मूलाधार चक्र
के स्तर पर हीं जीता है | इसलिए इस चक्र के गुण उसे खींचते हैं | पाँचों
तन्मात्राएँ सक्रीय होने के कारण मनुष्य इन तन्मात्राओं के गुण की ओर आकर्षित होता
है | अर्थात गंध , रूप , रस , स्पर्श तथा
शब्द से मनुष्य आकर्षित होता है और काम (वासना ) का निर्माण होता है मनुष्यों में
|प्रत्येक इन्द्रिय एक एक तन्मात्राओं से जुडी हुईं हैं | बाह्य जगत से ये चक्र
हीं अपने स्वभावनुसार गुणों को खींचकर
इन्द्रियाँ के माध्यम से मनुष्य में उथल पुथल मचाते हैं(मनीषी के चेहरे पर
मुस्कुराहट थी) ऐसा इसलिए क्योंकि ये चक्र जागृत नहीं हैं |
-
“जागृत नहीं हैं तो फिर ये कार्य कैसे कर रहें
हैं जैसा आपने बताया |” उसने प्रश्न दागा |
-
“ कहने का तात्पर्य ये है कि ये चक्र अपने
स्वाभाविक अवस्था में कार्य कर रहें है जागृत या अधिक उर्जावान हो कर नहीं |”
-
“ क्या वर्ग की आकृति वैसी हीं है जैसा तुम बाह्य
जगत में देखते हो |” मनीषी ने पूछा |
-
“ नहीं यह वर्ग तो अदभुत है इसके चारों कोनों पर
भाले की नोक जैसी आकृति बनी हुई है | और वर्ग के चारो भुजाओं के मध्य में भी
नुकीली आकृति दृश्यमान है नुकीली आकृति का रंग भी अदभुत सुहला है |” उसने कहा |
मनीषी मन हीं मन मुस्कुराए और कहा – और
आगे दृष्टिपात करो |
जारी ........