वह व्यक्ति आँखें बंद करके गहन चिन्तन में चला गया | बचपन से अभी तक की कुछ स्मृतियाँ मानस पटल पर उभरने लगी | वह अपने भीतर हीं अनुसंधान करने लगा | वह टटोलने की कोशिश करने लगा कि बचपन से ले कर अभी तक कौन सी चीज
उसमे नहीं बदली है |
घंटों अंदर टटोलने के बाद सहसा उसके
मन में एक बात कौंधी | अरे ! अपने भीतर यह टटोल कौन रहा है
| बचपन से ले कर आज तक की घटनाओं को मन के पटल पर देख कौन रहा है | अरे ! यह तो मैं ( अहंकार और मन युक्त नहीं ) हूँ | मैं हीं तो हर क्षण मौजूद हूँ साक्षी बन के सारी घटनाओं का | जीवन के उतार चढाव को यह मैं हीं देखता रहा | यह मैं मेरे सुख का भी गवाह है और मेरे दुखों का भी | जब तक मेरा शरीर जागृत रहता हूँ यही हर क्षण मौजूद रहता है | यह बदलता नहीं | यह सब कुछ देखता
रहता है किन्तु इसे मैं ( अहंकार और मन युक्त ) देख नहीं पाता | यही तो है अपरिवर्तनशील | सुखों और दुखों , जीवन के प्रत्येक
घटनाओं का यही तो गवाह है | यह देखता रहता है बिना प्रभावित हुए
भावनाओं या किसी अन्य गुणों के | ( यह एक ध्यान
प्रयोग भी है इसे करें )
कुछ देर बाद उसकी आँखें खुली | उसने योगी बाबा पर दृष्टिपात किया प्रसन्नता पूर्वक मानों कोई
खजाना उसके हाथ लगा हों |
महायोगी अभेदानन्द भी ध्यान से बाहर
आ गये | और मुस्कुराते हुए उसे देखा | बिना उसके कुछ बोले हीं योगी बाबा ने कहा
“हाँ तुम ठीक हो यह तुम्हारे अंदर की
शास्वतता हीं है जो कभी नहीं बदलती जिसे भाषा की अभाव में अभी भी मैं कह रहे हो
वही कभी नहीं बदलता | किन्तु यह अहसास जो तुम कर रहे हो यह बिलकुल छोटा अहसास है इस कड़ी को पकड कर
तुम उस विराट में प्रवेश कर सकते हो | यह अहसास तो सिर्फ समुद्र किनारे की सीपियाँ हैं असली रत्नों का
संसार तो आगे की यात्रा तय करने पर प्राप्त होगा |”
उसकी आँखें महायोगी अभेदानन्द के
प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रही थी |
तभी गुफा के अंदर बारह तेरह वर्ष के एक तरुण ने प्रवेश किया |
योगी बाबा ने उससे मुखातिब होते हुए उससे पूछा “ हाँ बटुकनाथ कहो कैसे आना हुआ |”
उस तरुण का नाम बटुकनाथ था उसने कहा
“ कुछ नहीं प्रभु वह आपको पूज्य गुरु स्वामी ब्रह्मानन्द ने याद किया है |”
“हाँ वह तो महायोगी ब्रह्मानन्द के
मानसिक तरंगों से मुझे ये सूचना मिल चुकी है किन्तु तुम यहाँ ! ” योगी बाबा ने कहा
“प्रभु आपके दर्शनों की अभिलाषा भी
हो रही थी सोचा चल कर दर्शन कर लूं |” बटुकनाथ के ये शब्द निकलते हुए उसकी आँखें गीली थी |
“ किन्तु कुछ हीं समयोपरांत मैं तो
स्वयं महा योगी ब्रह्मानन्द के समक्ष उपस्थित होने
हीं वाला था |
देखो तुम्हें आकाश गमन विद्या सिद्ध
हो चूका है इसका ये मतलब नहीं कि तुम मात्र मानसिक आनन्द और जिज्ञासा वश इसका उपयोग करो |”
योगी बाबा ने थोड़ी कठोरता से मीठी झिडकी लगाईं बटुकनाथ नामक उस तरुण सन्यासी को |
योगी बाबा ने उस व्यक्ति के तरफ
उन्मुख होते हुए कहा
“ यह तरुण साधक बटुकनाथ है | आठ वर्ष की उम्र में यह मुझे मिला था हिमालय के जंगलों में | यह राह भटक कर वीरान
जंगल में खो चूका था | क्रन्दन करते हुए अवस्था में मैंने
इसे जंगलों में पाया था | इसके माता पिता नहीं हैं | अपने जीवन के पांच वर्षों में इसने काफी साधनाएं की हैं | बटुक भैरव की इसपे बहुत अधिक कृपा है इसलिए इसका नाम बटुक नाथ रख
दिया गया |
“ चलो चलते हैं |”
योगी बाबा ने उस व्यक्ति के तरफ
उन्मुख होते हुए कहा