चक्रों के जागरण के पूर्व हमारी स्थिति
भ्रमित रहती है | आसक्ति , द्वेष और इर्ष्या , दुःख और सुख , जीत और हार तथा और भी
अनेक क्षेत्रों में हमारे दृष्टिकोण दोषपूर्ण होता है तथा मान्यताएं गलत होती है |
यद्धपि आसक्ति उपर से दिखाई नहीं देती फिर भी वह हमारे भीतर है | विश्वाश करें
हमारा मन एक सिमित दायरे में कार्य कर रहा है और हम उससे परे नहीं हो सकते | जिस प्रकार रात्री में हम एक
स्वप्न देखते हैं और स्वप्न में होने वाला अनुभव भी अपनी मन:स्थिति से सम्बन्धित
है ठीक उसी तरह हम दिन में भी स्वप्न देख रहे हैं और यह भी अपने वर्तमान मन:स्थिति
से सम्बन्धित है | ठीक उसी प्रकार जब आज्ञा चक्र का जागरण होता
है तो हम स्वप्नावस्था से जागृत अवस्था में आते हैं | तब इस वर्तमान जीवन की वास्तविकता और कारण तथा प्रभाव के बीच के सम्बन्ध को समझने
लगते हैं |
अपने जीवन के सम्बन्ध में कारण और प्रभाव
के नियम को समझना बहुत हीं आवश्यक है , अन्यथा हम निराश होने लगते हैं तथा जीवन की
दुखद घटनाओं के प्रति मन दुखी होने लगता है | मान लें एक बच्चे का जन्म होता है और तुरंत उसकी
मृत्यु हो जाती है | अब सोचे ऐसा क्यूँ हुआ यह पहेली प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति
के दिमाग में आएगी है की नहीं ! यदि जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मरना हीं था तो बच्चे ने जन्म क्यों
लिया ? आप इस तथ्य को तभी समझ सकते हैं जब आप कारण और प्रभाव के नियमों को समझते
हैं |
कारण और प्रभाव तुरंत होने वाली घटनाएँ नहीं है , प्रत्येक कार्य
कारण और प्रभाव दोनों हैं |यह वर्तमान जीवन एक प्रभाव है लेकिन इसका कारण क्या था
? आपको इसे खोजना है , तभी आप कारण और प्रभाव के बीच के सम्बन्ध को समझ सकते हैं |
आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात हीं इन नियमों को जाना जा सकता है | उसके बाद जीवन के प्रति विचारधारा तथा दार्शनिक दृष्टिकोण
बदल जाता हैं | तब किसी भी घटना से
व्यक्ति दुष्प्रभावित नहीं होता और न हीं जीवन की आवंछित घटनाएँ उसे परेशान करती
हैं | जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति सहज रूप से भाग लेता है परन्तु वह मात्र
द्रष्टा हीं रह जाता है | जीवन एक तेज़ करेंट की तरह बहता रहता है और व्यक्ति उसके
धरा के प्रति समर्पित हो कर बहता चला जाता है ||
एक बार आज्ञा चक्र के जागरण के बाद
सहस्त्रार तक पहुंचना कठिन नहीं होता | ठीक उसी तरह जैसे आप दिल्ली पहुँच गयें फिर
इंडिया गेट पहुंचना आपके लिए कठिन नहीं होगा | यहाँ आज्ञा चक्र को दिल्ली समझें
तथा सहस्त्रार को इंडिया गेट | इसी कारण
वश मैंने आज्ञा चक्र पर इतनी श्रीन्ख्लायें प्रस्तुत की है ताकि आज्ञा चक्र के
महत्व को समझा जाए | किसी और चक्र से शुरुआत के वनिस्पत आज्ञा चक्र से शुरुआत करना
ज्यादा आसान और फलदायी होगा |
इति शुभ !
आगे बिंदु पर एक दो लेख होगा !
फिर
आगे बिंदु पर एक दो लेख होगा !
फिर
आगे आज्ञा चक्र सम्बन्धित सरल ध्यान प्रयोग
प्रस्तुत करूँगा कुछ लिखित में तथा कुछ Mp3 फोर्मेट में इसलिए ब्लॉग पर निरंतर बने
रहें |
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