वर्तमान
युग और तुलसीदास की प्रसांगिकता - 1
तुलसीदास जी ने अपनी लेखनी चलाई
है और खूब चलाई है | सवाल
यह है की आज के युग में तुलसीदास जी कहाँ खड़े हैं | तुलसीदास जी पर यदा कदा प्रश्न
चिन्ह लगते रहें है और यह कहाँ तक सार्थक है | इस विषय पर अवश्य हीं बहस होनी चाहिए | आईये तुलसीदास जी पर विचार विमर्श करें | तुलसीदास जी पर सबसे ज्यादा
ब्राहमण वाद का पक्षधर होने का आरोप लगता है | गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस के बाल कांड में लिखतें है "
बंदऊँ प्रथम महिसुर (मही =पृथ्वी , सुर = देवता ) चरणा |" अर्थात सर्वप्रथम पृथ्वी के देवता ब्राहमण की बंदना करता हूँ जरा रुकिए फिर
दूसरी पंक्ति में कहते हैं ," मोह जनित संशय सब हरना || " मतलब मोह से उत्पन्न सारे संशयों को जो
दूर कर दे |लीजिये ब्राहमण की परिभाषा
तुलसीदास जी ने सपस्ट कर दी जांच लीजिये कौन ब्राहमण है समाज में जो इस परिभाषा पर
खरा उतरता है |
दूसरा आरोप तुलसीदास पर निम्नलिखित पदों
के कारण लगता है " ढोल गंवार शुद्र पशु नारी | सकल ताड़ना के अद्धिकारी || अब ढोल को पीटने पर तो किसी को
कोई आपति नहीं है , नहीं
है न |फिर गंवारो की बारी आती है जिसके
अन्दर जिव है उस किसी को पीटना मुनासिब नहीं यहाँ ताड़ना का अर्थ भय दिखा कर
मार्ग पर लाने से है | और हाँ फिर
भी बात न बने तो एकाध झापड़ लगाने से कोई गुरेज नहीं करेगा हाँ लेकिन एकाधे झापड़
ज्यादा नहीं |
बच्चो को शिक्षक जैसे लगातें हैं
लगातें है की नहीं ? हाँ
अब ऐसा नहीं पिट देना चाहिए की उसकी जान पर बन आये | फिर बारी आती है शूद्र की अभी ऊपर
मैंने ब्राहमण की परिभाषा तुलसीदास के अनुसार लिखा | ब्राहमण कौन जिनका मन मोह से जनित
संसय युक्त न हो तो , शूद्र
भी वही जिसका मन मोह जनित संसय से युक्त हो | पहले तो ये परिभाषा मन में अपने विवेक के द्वारा निष्कर्ष कर बिठा
लेना चाहिए |
यहाँ भी शूद्रों के लिए ताड़ना का
अर्थ भी उपरोक्त हीं
होगा |
नारियों के
सन्दर्भ में भी ताड़ना का अर्थ यही होगा लेकिन सवाल यह है की क्या सभी नारी ताड़ना
का अधिकारी है | नहीं
| और फिर स्त्रियों के लिए
क्यों कहा गया पुरुष तो इस मामले में दो कदम आगे हैं
हीं इनको तो कदम कदम पर ताड़ना की आवश्यकता है | रामायण की पात्र मन्थरा और कैकेयी
के बारे में आपका क्या ख्याल है | नारी जहाँ माँ के रूप में इश्वर का दर्जा पाती है वहीँ द्रौपदी के रूप में महाभारत भी करा सकती
है | नारी मन जरा हठी होता है खास कर
पत्नी ,भाभी ,ननद ,सास के रूप में | आप लोगों को भी व्यक्तिगत जिंदगी
में अनुभूति हुई होगी |बात सिर्फ
स्त्रियों की हीं क्यों करें इस सन्दर्भ में क्योंकि स्त्री को हमने हमेसा
सुह्रिद्या प्रेम और करुणा से ओत प्रोत पाया है | प्रथम साक्षात्कार स्त्री के रूप में
माँ से होता है | जीवन
में आने वाली अन्य स्त्र्यिओं
से भी हम ऐसा ही अपेक्षा कर लेतें है और माँ जैसा व्यवहार न पाकर अपेक्षित
मन किसी तुलसीदास का विद्रोह वश ऐसा लिख देता है आप कहेंगे तुलसीदास जी का माँ का निधन बचपन
में हीं उनको जन्म देने के बाद हो गया था |अरे भाई !पत्नी से भी उन्होंने वैसा हीं माँ के जैसा प्रेम पाया था और बाद में
प्रताड़ित हुएँ थे | क्रमश :
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