आज्ञा प्रमुख रूप से मन का चक्र है जो चेतना के
उच्च अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है | जब आप किसी चक्र पर ध्यान करते हैं चाहे
मूलाधार , स्वधिस्थान या मणिपुर या फिर किसी लक्ष्य पर तब आज्ञा चक्र अवश्य
प्रभावित होता है | ये सत्य है कि यह प्रभाव एकाग्रता के स्तर पर कम या ज्यादा हो
सकता है | हमारे मानसदर्शन या स्वप्न में जो भी हमें दिखाई पड़ता है उसका माध्यम
आज्ञा चक्र हीं है कैसे ! इस कैसे का जबाब
आप पर छोड़ता हूँ ताकि अगर आप इस स्तर पर प्रयासरत हैं तो इस कैसे प्रश्न के उतर
में आपको बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है आवश्यकता मनन करने की है इसलिए ढूंढें जबाब
| यदि आप खाते , सोते या बात करते हुए सजग
( Aware ) नहीं
हैं तो आपका आज्ञा चक्र जागृत नहीं है | किन्तु अगर आप बात कर रहें हैं और आपको
मालूम है कि आप बात कर रहें हैं तो यह सजगता आपके आज्ञा चक्र के कारण है |
जब
आज्ञा चक्र विकसित हो जाता है तब आपको वगैर इन्द्रियों ( पञ्च इन्द्रियां यथा आँख
, नाक , कान , जिह्वा तथा त्वचा ) के हीं ज्ञान प्राप्त होने लगता है | क्या ये
काल्पनिक बात है ! एक प्रयोग करें आँखें बंद कर लें और किसी वस्तु , व्यक्ति या
स्थान की कल्पना करें कल्पना में ये चीजें सजीव हो जाती हैं और इनके दर्शन होने लगते हैं , अब आप टिप्पणी में बताएं कि ये
वस्तुएं जिनकी आपने कल्पना की किस इन्द्रिय के द्वारा दिखाई दिया अवश्य बताएं
| सामान्यतया सभी ज्ञान हमारे मष्तिष्क
में इन्द्रियों के माध्यम से पहुंचतें हैं और वहां संग्रहित रहते हैं , संग्रहित
मस्तिष्क में अवश्य रहते हैं किन्तु इनका
दिखाई देना कैसे संभव हुआ जबकि देखने के लिए आँखें आवश्यक हैं , किन्तु आपने तो
अपनी आँखें बंद कर के कल्पना की है है न मजेदार बात क्या आपका ध्यान कभी इस ओर गया
था |
आज्ञा
चक्र अगर क्रियाशील हो तब मान लें की आकाश
में बादल घिरे हें हैं और आप ये कह सकते हैं कि बारिश होगी किन्तु अगर आकाश में
बादल मौजूद न हो और आप ये निश्चयपूर्वक कह
दें की थोड़ी देर में बारिश होगी और बारिश हो जाए इसका मतलब यह हुआ कि आपका आज्ञा चक्र
क्रियाशील है | यहाँ मैं वैज्ञानिक आधार पर मौसम की भविष्यवाणी की बात नहीं कर रहा
|
आज्ञा चक्र के जागरण के पश्चात मन की चंचलता समाप्त हो जाती है और बुध्धि शुद्ध हो जाती है | आसक्ति जो अज्ञान और भेद का कारण है , समाप्त
हो जाती है तथा संकल्प शक्ति बहुत बढ़ जाती है | यदि व्यक्तिगत धर्म के अनुसार कोई
मानसिक संकल्प हो तो वह पूरा हो जाता है |
आज्ञा
ऐसा केंद्र है जहाँ व्यक्ति मन तथा शरीर
के अंदर घट रही प्रत्येक घटना सहित सभी अनुभवों को द्रष्टा भाव से देखता रहता है |
यहाँ व्यक्ति के सजगता का इस तरह से विकास होता है कि उसमे दृश्य जगत के प्रत्येक
छिपे हुए रहस्यों को जान सकने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है | जब आज्ञा चक्र का जागरण होने लगता है तब प्रत्येक प्रतीक
का अर्थ एवं महत्व समझ में आने लगता है |
यह अतीन्द्रिय
अनुभूतियों का स्थान है जहाँ व्यक्ति में उसके संस्कार और मानसिक प्रवृतियों के
अनुसार अनेकानेक सिद्धियाँ प्रकट होती है
| ऐसा भी कहा जाता है आज्ञा चक्र रीढ़ की
हड्डी के सबसे उपर एक ग्रन्थि के रूप में स्थित है | तन्त्र
के अनुसार इस ग्रन्थि को शिव ग्रन्थि कहतें हैं | यह साधक के उन नयी
सिद्धियों से लगाव का प्रतीक है जो आज्ञा चक्र के जागरण से प्रकट होती है | यह ग्रन्थि अध्यात्मिक विकास के मार्ग को
तब तक अवरुद्ध रखती है जब तक सिद्धियों के प्रति लगाव समाप्त नहीं हो जाता तथा
चेतना के मार्ग की बाधा समाप्त नहीं हो जाती |
इस
भाग के प्रस्तुती के बाद एक या दो भाग और
प्रेषित होंगे उसके बाद आज्ञा चक्र के जागरण हेतु कुछ ध्यान प्रयोग लिखित तथा
Mp3 रूप में भी पोस्ट डालूँगा ब्लॉग पर बने रहें |